PNN24 न्यूज़ चुनावी चर्चा – बड़ा छलावा एग्जिट पोल, नही बन रही एनडीए की सरकार, जाने क्या है ज़मीनी हकीकत
तारिक आज़मी & टीम
पहले तो हम आपको एक बात साफ साफ़ बता देते है कि कोई भी एग्जिट पोल सही नही हो सकता है। ऐसा भी नही है कि सभी गलत होते है। मगर ज़मीनी हकीकत अगर देखे तो लाखो लोगो के मूड का फैसला चंद सौ लोगो की राय से किया जाना न्याय संगत नही रहता है। खैर ये एक अलग बात है कि एग्जिट पोल भी बड़ी टीआरपी का एक जरिया होती है। चुनाव के आखिरी चरण खत्म होते के साथ ही टीवी सेट के सामने आँखे गडा कर बैठने वालो की संख्या काफी होती है। उस संख्या से बढ़ने वाले टीआरपी से आया भी बड़ी होती है।
हम अपने नवजवान साथियों को अपने चुनावी चर्चा और निष्कर्ष के पहले बता देना चाहते है कि सट्टा समाज के सभ्यता पर एक कलक है। ऐसी कोई शोर्ट कट राह नही है जिससे एक रात में आप अमीर बन जाओ। हां वो शोर्टकट ज़रूर उपलब्ध है जो एक रात में आपको गरीब और कर्ज़दार बना सकते है। इसी कारण हम आपसे अपील करते है कि सट्टा बाज़ार की चकाचौंध वाली रोशनी से बचने की कोशिश करे और जीवन सामान्य चलाये। सरकार किसी की भी आये वह सभी के लिए होती है। हम राजनितिक प्रतिद्वंदिता ऐसी न करे कि आपसी सम्बन्ध ख़राब हो जाए।
खैर अब आते है मुद्दे पर। टीवी चैनल्स आप जितना पलटते रहिये आपको हर जगह एग्जिट पोल दिखाई देंगे। पोस्ट पोलिंग एग्जिट पोल की सत्यता पर न हम कोई उंगली उठा रहे है और न ही हम उसके परफेक्ट होने के दावे कर रहे है। हम अपनी चुनावी सर्वेक्षण रिपोर्ट को आपके सामने रख रहे है जिससे लिए हमने और हमारी टीम ने अपने स्तर पर भरसक प्रयास किया है कि हम आपके सामने सही तस्वीर रखने की कोशिश करे। साथ ही हम आपको ये भी कहना चाहते है कि हमारे सर्वेक्षण में कोई खामी न हो इसका हम ख़याल लगातार रखते रहे है फिर भी दिये गए आकडे ऊपर नीचे हो सकते है।
हम चुनावी चर्चा के द्वारा आपको अगले लोकसभा की स्थिति बताने की कोशिश कर रहे है। हमारे अनुसार अगली लोकसभा त्रिशंकु सरकार की तरफ इशारा कर रही है। आपने टीवी पर देखा होगा कि एग्जिट पोल भाजपा नीत एनडीए की सरकार बनने का दावा कर रहा है। मगर हमारा सर्वेक्षण कही न कही उन दावो के विपरीत है। हम अपनी बात को रखने के लिए भाजपा द्वारा पिछले लोकसभा चुनावों यानी लोकसभा 2014 में अर्जित सीट को केंद्र बिंदु मान कर चुनावी चर्चा करते है।
भाजपा की वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में कुल सीट 282 थी। इसको हम केंद्र बिंदु मान लेते है और सिर्फ भाजपा नीत एनडीए को राज्यवार होने वाले नुकसान की चर्चा करते है। भाजपा की इन सीट पर इस बार क्या नफा और नुकसान हो रहा है उसकी चर्चा करते है। भाजपा ने भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में आन्ध्रप्रदेश में कुल 3 सीट पर जीत हासिल किया था। इस बार स्थिति थोडा विपरीत है और भाजपा को यहाँ 2 सीट का नुकसान उठाना पड़ रहा है। भाजपा यहाँ केवल एक सीट पर जीतती दिखाई दे रही है इस तरह से भाजपा को आंध्र प्रदेश में (-2) सीट का नुकसान हो रहा है।
इसके बाद अगर बात करे अरुणाचल प्रदेश की तो भाजपा अपनी एक सीट यहाँ बचाने में कामयाब दिखाई दे रही है और इस राज्य में भाजपा नो प्रॉफिट नो लास के स्थिति में दिखाई दे रही है। वही असम जहा भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में कुल 7 सीट पर जीत दर्ज किया था इस बार वह अपनी सभी सीट नही बचा पा रही है और उसके खाते में केवल ५ सीट आ रही है। यानी सीधे सीधे इस राज्य में भाजपा को (-2) सीट का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश से लगा प्रदेश है बिहार। पिछली बार नीतीश से दुरी बनाकर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को यहाँ अगर उसकी दलगत स्थिति पर नज़र डालते हुवे देखे तो कुल २२ सीट मिली थी। इस राज्य में भाजपा अपने सहयोगियों के जिद को मानकर झुकी और कुल 17 सीट पर चुनाव ही लड़ रही है। यानी जंग के पहले ही ५ सीट का नुकसान यहाँ हो गया। इसके बाद अब गठबंधन के ऊपर नज़र डाले तो अपनी पुरानी स्थिति को इस बार मजबूत कर रही है। इसके बावजूद भी भाजपा नीत एनडीए को यहाँ 12-7 सीट का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस राज्य में इस बार सीपीआई ने अपना सर दुबारा उठाया है और बेगुसराय से कन्हैया कुमार को टिकट देकर खुद के लिए नेतृत्व तलाश लिया है। ये केवल भाजपा ही नही बल्कि अन्य दलों के लिए भी खतरे का निशान है। खैर भाजपा के एनडीए को यहाँ होने वाले (-5) सीट का साफ़ साफ़ नुकसान भारी नुकसान हो सकता है। हम बताते चले कि इस नुकसान में हम बेगुसराय और पटना साहिब नही जोड़ रहे है क्योकि इन दोनों सीट पर कांटे की टक्कर है। जीत हार काफी कम मारजीन से होगी। बेगुसराय में तो त्रिकोणीय मुकाबले में तीनो प्रत्यासी टक्कर में है। वही पटना साहब में शत्रुधन द्वारा रविशंकर प्रसाद को कड़ी टक्कर दिया गया है। कौन जीता कौन हारा ये तो अभी तय करना जल्द बाज़ी हो जायेगी। मगर सूत्र बताते है कि वैश्य समाज का वोट बटा है और भाजपा तथा कांग्रेस दोनों को इन मतों का फायदा मिला है।
सबसे बड़ा भजपा को जिन राज्यों में नुकसान हो रहा है उनमे एक राज्य है छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में भाजपा के पास सभी दस सीट थी। इस बार समीकरण थोडा उल्टा है, छत्तीसगढ़ में भाजपा को कुल 9 सीट का नुकसान हो रहा है और ये ऐसा नुकसान है कि जिसको भाजपा किसी अन्य राज्य से पूरा नही कर रही है। बताते चले कि इस राज्य में अभी कुछ ही दिनों पहले एकतरफा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी दिया था। इस राज्य में अपनी 10 सीटिंग सीट में से 9 को खो रही है। वही दिल्ली में सभी 7 सीट जीतने वाली भाजपा के लिए भले ही एग्जिट पोल कुछ भी कह रहे हो मगर ज़मीनी तौर पर भाजपा को यहाँ से सिर्फ ३ सीट मिलती दिखाई दे रही है और 4 सीट का यहाँ उसको नुकसान हो रहा है।
अब आते है भाजपा शासित गोवा और गुजरात पर। गोवा की दोनों सीट भाजपा के खाते में थी मगर इस बार भाजपा यहाँ से अपनी एक सीट हार रही है और एक ही जीत रही है। इस तरह गोवा में भाजपा को एक सीट का नुकसान है। दूसरी तरफ गुजरात में पिछली बार क्लीन स्वीप करने वाली भाजपा इस बार राहुल गांधी से तगड़ी टक्कर खा रहे है। इस राज्य से भाजपा को कम से कम 6 सीट और अधिक से अधिक 9 सीट का नुकसान हो रहा है। ये नुकसान और भी बढ़ सकता है। क्योकि हमने इसमें उन सीट को नही जोड़ा है जहा तगड़ी टक्कर है। वही हरियाणा की अपनी 4 सीट में से भाजपा ३ गवा रही है और केवल 1 सीट जीत रही है।
हिमांचल की कुल 4 सीट में कोई बटवारा न करते हुवे बजापा यहाँ नो प्रॉफिट नो लास के स्थिति में है। अपनी सभी 4 सीट भाजपा जीत रही है। वही हमारे जम्मू कश्मीर में हमारे सहयोगी निसार शाहीन शाह ने हमको बताया है पिछले बार दो सीट जीतने वाले भाजपा को यहाँ से दोनों सीट गवाना भी पड़ सकता है। बताते चले कि जम्मू में भाजपा का चुनाव प्रचार भी विवादों से घिरा रहा है और पत्रकारों को लिफाफा देने का भी प्रयास हुआ जिसका वीडियो वायरल हुआ था। इलेक्शन कमीशन को शिकायत भी किया गया था। इस बार भाजपा ये दोनों सीट यहाँ से हार रही है। ये शायद भाजपा के प्रयास को एक बड़ा झटका है। यही नही झारखंड में भी भाजपा को कुल ५ सीट का नुकसान उठाना पड़ रहा है। यही नही पिछले लोकसभा के बनिज्बत इस बार केरल में भाजपा एक सीट जीतने में कामयाब हो रही है। जो उसको एक सीट का फायदा दे रही है। बताते चले कि केरल में भाजपा अभी तक सफलता नही प्राप्त कर पाई थी, मगर इस बार के सियासी समीकरण में केरल में उसको पहली सफलता मिलती दिखाई दे रही है। इस लिहाज़ से भाजपा यहाँ एक सीट के फायदे में है।
इसके बाद अगर मध्य प्रदेश में सियासी आकड़ो और वोटो के विभाजन पर नज़र डाले तो यहाँ भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। एनडीए गठबंधन जो इसके पहले यहाँ एक तरफ़ा सीटो को अपने पास समेटे था को बड़ा नुकसान यहाँ जीएसटी और नोटबंदी ने दिया है। वही यूपीए को फायदा किसानो के ऋण माफ़ी ने दिया है। इसमें सबसे अधिक नुकसान अगर भाजपा को किसी ने दिया है तो वह है साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयान और उनकी कार्यशैली। इस राज्य में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयानों ने भाजपा को चुनावी जोड़ तोड़ से दूर रखा और पुरे चुनाव में भाजपा केवल साध्वी के बयानों को पैच करती ही दिखाई दी है। यही कारण शायद रहा होगा कि भोपाल में साध्वी के प्रचार हेतु भाजपा मन से नही लगी और केवल संघ ने अपने बल पर चुनाव लडवाया है। अल्पसंख्यक मतों की पर अगर नज़र डाले तो इस बार पिछली बार की तरह मतों का विभाजन नही हुआ है और एकतरफा ये मत युपीए के खाते में गए है। इस बार भाजपा और कांग्रेस यहाँ बराबर की सीट लेकर आता दिखाई दे रहा है। ये वो आकडे है जो जमीनी स्तर पर है। यहाँ भाजपा को को कम से कम 8 सीट का नुकसान दिखाई दे रहा है। इस नुकसान में हम भोपाल और देवास जैसी सीटो को नही जोड़ रहे है। अगर हमारे सूत्रों और पोलिंग के समय हालत पर नज़र डाले तो फिर ये बात साफ़ हो सकती है कि भोपाल सीट भाजपा हार रही है और देवास में हार जीत का अंतर बहुत ही कम होगा। सब मिलाकर अगर देखे तो कम से कम यहाँ भाजपा को 8 सीट का नुकसान होगा और अधिकतम यहाँ 15 सीट का भी नुकसान हो सकता है।
यही कमोबेस स्थिति महाराष्ट्र में भी उभर कर सामने आ रही है। महाराष्ट्र में गठबंधन के लिए भाजपा को झुकना पड़ा है और भाजपा के खाते में इस बार यहाँ 6 सीटो का भारी नुकसान आ रहा है। इसका मुख्य कारण यहाँ रहा है शिवसेना और भाजपा के बीच तालमेल की कमी। पुरे पांच साल तक शिवसेना ने भाजपा के ऊपर हमले ही किये है। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को शिवसेना के मुखपत्र सामना ने कई बार निशाने पर रखा है। हालात तनाव की इतनी रही कि चुनावों के समय बालाकोट एयर स्ट्राइक और पुलवामा आतंकी हमलो पर भी शिवसेना ने प्रधानमंत्री पर सवाल खड़े किये है। चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात के तरह भले ही एग्जिट पोल भाजपा को यहाँ बढ़त दिखा रहा हो मगर ज़मीनी हकीकत को अगर देखे तो भाजपा को कम से कम 6 सीट का यहाँ नुकसान हो रहा है और ये 6 सीट यूपीए के खाते में जा रही है। हो सकता है कि भाजपा को यहाँ इससे ज्यादा नुकसान पहुचे और भाजपा के खाते में दस सीट का नुकसान आये, मगर पिछली लोकसभा 2014 के मद्देनज़र भाजपा को कम से कम 6 सीट का नुकसान हो रहा है।
इसके बाद उड़ीसा राज्य पर नज़र दौडाये तो ये भाजपा को राहत देने वाला राज्य प्रतीत हो रहा है। भाजपा को यहाँ दोनों सीट मिल रही है और भाजपा यहाँ 2 सीट के फायदे में है। इस फायदे को वापस कम करने वाला राज्य है पंजाब। यहाँ गुरदासपुर से विनोद खन्ना भाजपा के लिए एक सीट लेकर आते थे। विनोद खन्ना के देहांत के बाद इस सीट पर इस बार फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र के अभिनेता पुत्र सन्नी देवल को भाजपा ने बड़ी उम्मीदों के साथ उतारा था मैदान में। इस सीट पर सन्नी देवल के कार्यप्रणाली का नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा है। पग न बांधने वाले सन्नी देवल ने सीट के लिए नामांकन के समय पग बांधना चर्चा का विषय बना वही आलोचकों को मौका मिला। दूसरा सबसे बड़ा कारण यहाँ जाखड साहब के पुत्र का चुनाव लड़ना था। कांग्रेस के टिकट पर सुनील जाखड जो एक कानून विद है के साथ सिख समुदाय खड़ा नज़र आया। वही भाजपा को सन्नी देवल के रूप में भले ढाई किलो का हाथ मिला हो मगर विनोद खन्ना के चाहने वाले भाजपा समर्थको ने इस टिकट का भले सामने से विरोध नही किया मगर अन्दर खाते में अपना विरोध मतों के रूप में दर्ज करवाया। इस विरोध का नतीजा कुछ इस तरह सामने है कि भाजपा के सन्नी देवल ये सीट हार रहे है। यहाँ भाजपा के विरोध में मत कांग्रेस के खाते में गया है। इस तरह से पंजाब में भाजपा को इस एक सीट का नुकसान होता दिखाई दे रहा है। भाजपा को वैसे एक और सीट का नुकसान हो रहा है जिसमे अनुपम खेर की पत्नी किरण खेर अपनी खुद की सीट हार रही है। मगर मुकाबला थोडा नजदीकी और बारीकी वाला होने के कारण हम इस सीट का अभी नुकसान भाजपा के खाते में नहीं डाल रहे है। इस सीट पर भाजपा को नुकसान अनुपम खेर के कारण हुआ है। वही इस सीट पर जितना बढ़िया आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ी है उतने अधिक मतों से कांग्रेस ये सीट जीत जायेगी। वही अगर आप ने मतों का विभाजन नही किया है तो भाजपा ये सीट जीत सकती है।
बहरहाल पंजाब में केवल हम एक सीट का भाजपा का नुकसान जोड़ रहे है। मगर भाजपा का बड़ा नुकसान तो राजस्थान में हो रहा है। यहाँ भाजपा 12-14 सीट के नुकसान में नज़र आ रही है। 2014 लोकसभा में इस राज्य ने भाजपा को एकतरफा 25 सीट दिया था, मगर इस बार भाजपा को यहाँ तगड़ा झटका लग रहा है और भाजपा को कम से कम 12 सीट का नुकसान यहाँ उठाना पड़ सकता है। वैसे कुछ जानकार तो यहाँ भाजपा को मात्र 8-10 सीट पर ही जीत दर्ज करता मान रहे है। मगर जिस जिस लोकसभा में पिक्चर क्लियर होती दिखाई दे रही है उसके अनुसार 12 सीट भाजपा यहाँ नुकसान में रहेगी वही तमिलनाडु में भी भाजपा को एक सीट का नुकसान है। यहाँ भाजपा एक सीट का नुकसान सहन करती दिखाई दे रही है। साथ ही उत्तराखंड में बहुत अधिक बदलाव नही हो रहा है मगर भाजपा के खाते से यहाँ भी एक सीट कम हो रही है। जिस राज्य के चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक बल लगाना पड़ा यानी पश्चिम बंगाल में, वहा की स्थिति भाजपा को थोडा राहत दे रही है। यहाँ भले भाजपा अपनी सीटिंग सीट दोनों हार रही है मगर उसके अलावा अन्य तीन सीट जीत कर एक सीट के फायदे में आ सकती है। यहाँ तीसरी सीट के तौर पर बाबुल सुप्रियो अपनी सीट बचाते दिखाई दे रहे है।
अब आते है सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश पर। यहाँ लोकसभा 2014 में भाजपा को कुल 72 सीट मिली थी और अन्य दलों को बड़ा नुकसान हुआ था। इस बार सपा बसपा रालोद गठबंधन ने यहाँ भाजपा को बड़ा नुकसान दिया है। भाजपा के मुखालिफ यहाँ गठबंधन 45 से 55 सीट पर चुनाव जीतता दिखाई दे रहा है। पूर्वांचल में तो स्थिति ये है कि मनोज सिन्हा अपनी खुद की सीट हार चुके है। भाजपा को ये नुकसान प्रदेश के हर क्षेत्र में हुआ है। यहाँ तक की बनारस में भी स्थिति परिवर्तन जैसी दिखाई दे सकती है। हम इस नुकसान में उन सीट को नही जोड़ रहे है जहा पर स्थिति स्पष्ट नही है। जैसे बनारस, घोसी और मिर्ज़ापुर। मगर आपको बताते चले कि इन सीट पर भी भाजपा को झटका लग सकता है। हमने सिर्फ उन सीट का मंथन इसमें किया है जहा स्थिति लगभग स्पष्ट हो चुकी है जैसे बलिया और प्रयागराज तथा फूलपुर जैसी सीट। यहाँ की वास्तविक स्थिति तो कुछ इस प्रकार है कि गोरखपुर से भाजपा के रवि किशन चुनाव हार रहे है। वही अनुप्रिया पटेल सिर्फ इस भरोसे तसल्ली कर सकती है कि यदि मुस्लिम मतों का विभाजन हुआ है गठबंधन और कांग्रेस के बीच तो वह चुनाव जीत रही है अन्यथा अनुप्रिया पटेल कांग्रेस के ललितेश्वर से चुनाव हार जायेगी।
इस सब नुकसान और फायदे को देखे तो भाजपा को 140-155 सीट लोकसभा में मिलती दिखाई दे रही है। पुरे एनडीए की अगर बात करे तो 225 से 240 सीट लेकर एनडीए लोकसभा में पहुच रहा है। सदन में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर भाजपा ही रहेगी मगर उत्तर प्रदेश में सपा बसपा रालोद गठबंधन तथा ममता बनर्जी जिनकी पार्टी टीएमसी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सदन में रहेगी के अलावा वाईआरएस जैसे दलों का महत्व सरकार बनाने में बढ़ जायेगा। हमारे सर्वेक्षण को बल इस समाचार से भी मिल रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह आगे की रणनीति के लिए संघ मुख्यालय जा सकते है। अगर ऐसा होता है तो शायद अगला प्रधानमंत्री का नाम नितिन गडकरी हो सकता है। वही दूसरी तरफ तीसरे मोर्चे की कवायद और कांग्रेस की रणनीति पर ध्यान दे तो ममता बनर्जी का नाम भी प्रमुखता के साथ आ सकता है।