हाथी की बस्ती में इंसान या इंसान की बस्ती हाथी, बिगड़े हालात के चलते बेकाबू हो रहे हैं गजराज
फारुख हुसैन
पलिया कलां खीरी। लोकसभा चुनाव हो चुके हैं लेकिन दुधवा नेशनल पार्क क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी थारू जनजाति के लोगों की समस्याएं जस की तस है वन्य जीव उनकी खेती को आये दिन नुकसान पहुंचा रहे हैं। जब कभी दुधवा की सीमा के आसपास हाथी-समूह उत्पात मचाते हैं तो जंगल महकमे के लोग उस झूंड को केवल अपने इलाके से भगा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं फिर ये गजराज-दल भाग कर दूसरे इलाकों में उत्पात मचाते चलें जाते हैं। कई लोगों को हाथी कुचल भी चुके हैं खेतों को रौंद किसानों की पेट पर लात मारना आम बात है।
खीरी लोक सभा की आम मतदाता भले ही चुनाव से बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगाए हों लेकिन जिलें में फैली इस सीट के 18 फीसदी आदिवासी मतदाताओं के लिए इस इलाके की सबसे बड़ी समस्या जंगली हाथियों का आतंक है। पिछले साल थारू गांव बजाही में अपना खेत बचा रहे एक आदमी को हाथी ने सूंढ में लपेट कर पटक दिया। पार्क के आसपास के गांव वाले हाथियों के डर से सो नहीं पाते है।
आपको बता दें कि देंश में गत तीन सालों में हाथियों के गुस्से के शिकार 204 लोग दम तोड़ चुके हैं। जहां भी जंगलों में इंसान का दखल बढ़ा है, गरमी होते ही हाथी का खौफ वहां हो जाता है। भले ही हम कहें कि हाथी उनके गांव-घर में घुस रहा है, हकीकत यही है कि प्राकृतिक संसाधनों के सिमटने के चलते भूखा-प्यासा हाथी अपने ही पारंपरिक इलाकों में जाता है। दुखद है कि वहां अब बस्ती, सड़क का जंजाल है।
दुनियाभर में हाथियों को संरक्षित करने के लिए गठित आठ देशों के समूह में भारत शामिल हो गया है। भारत में इसे ‘राष्ट्रीय धरोहर पशु’ घोषित किया गया है। इसके बावजूद भारत में बीते दो दशकों के दौरान हाथियों की संख्या स्थिर हो गई है। जिस देश में हाथी के सिर वाले गणेश को प्रत्येक शुभ कार्य से पहले पूजने की परंपरा है , वहां की बड़ी आबादी हाथियों से छुटकारा चाहती है।
पत्रकार से वार्ता करते हुए महावत इदरीश ने बताया कि हाथियों को 100 लीटर पानी और 200 किलो पत्ते, पेड़ की छाल आदि की खुराक जुटाने के लिए हर रोज 18 घंटेां तक भटकना पड़ता है। गौरतलब है कि हाथी दिखने में भले ही भारी भरकम हैं, लेकिन उसका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है। थेाड़ी थकान या भूख उसे तोड़ कर रख देती है। ऐसे में थके जानवर के प्राकृतिक घर यानि जंगल को जब नुकसान पहुचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिडंत होती है। असल संकट हाथी की भूख है। कई-कई सदियों से यह हाथी अपनी जरूरत के अनुरूप अपना स्थान बदला करता था। गजराज के आवागमन के इन रास्तों को ‘‘एलीफेंट कॉरीडार’’ कहा गया। जब कभी पानी या भोजन का संकट होता है गजराज ऐसे रास्तों से दूसरे जंगलों की ओर जाता है जिनमें मानव बस्ती ना हो। सन 1999 में भारत सरकार के वन तथा पर्यावरण मंत्रालय ने इन कॉरीडारों पर सर्वे भी करवाया था। उसमें पता चला था कि गजराज के प्राकृतिक कॉरीडार से छेड़छाड़ के कारण वह व्याकुल है।