योगी जी ! भदोही जनपद के मिड-डे-मील का बुरा हाल
प्रदीप दुबे विक्की
ज्ञानपुर, भदोही। ग्रामीण इलाकों में कई स्कूलों में ग्राम प्रधानों और हेड मास्टर के झगड़े में फंसकर रह गया है मासूमों का हक। दरअसल फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया मिड डे मील के लिए मुफ्त अनाज मुहैया कराता है। इसे ग्राम प्रधान को दिया जाता है। ग्राम पंचायत समिति के तहत प्रधान अपनी देखरेख में स्कूलों के किचन शेड में भोजन तैयार कराते हैं। भोजन में लगने वाली दूसरी सामग्री का इंतजाम भी ग्राम प्रधान ही करते हैं। इसके लिए ग्रामप्रधान–प्रधानाध्यापक के जॉइंट खाते से रकम मुहैया कराई जाती है। लिहाजा ग्राम प्रधान और प्रिंसिपल के बीच खींचतान चलती रहती है। इस खींचतान का शिकार बनते हैं मासूम बच्चे, जिन्हें लापरवाही से घटिया खाना खाना पड़ता है। ग्रामीण अंचल के स्कूलों में मध्यान्ह भोजन के योजना अस्त-व्यस्त हो जाने के कारण यहां विद्यार्थियों की दर्ज संख्या में भारी कमी आई है। स्कूल में शिक्षा अधिकारी की लापरवाही के चलते यहां की खिड़कियां और दरवाजे भी अस्त-व्यस्त हो गए हैं।
बताया जाता है कि सरकारी स्कूलों में मध्यांह भोजन योजना की जिम्मेदारों द्वारा मानीटरिंग नहीं किए जाने से स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति पर भी विपरीत असर पड़ने लगा है। मिड डे मील वर्ष 2002 में शुरू की गई यह योजना अपने जन्म से ही सवालों में है। इसके तहत जहां बच्चों को स्कूल में दोपहर का भोजन दिया जाता है। ताकि बच्चों को दोपहर का भोजन स्कूल में ही मिल सके और उन्हें घर से खाना न लाना पड़े। लेकिन शुरुआत से ही यह योजना सवालों के घेरे में रही है। कभी भोजन की गुणवत्ता को लेकर तो कभी इस में होने वाले भ्रष्टाचार को लेकर।
. आलम यह है कि बच्चों को खाली पेट पढ़ाई करनी पड़ती है नहीं तो उन्हें घर से खाना लाना पड़ता हैl कुछ बच्चे घर से खाना लेकर भी आती हैं। लेकिन कुछ के पेट पर गरीबी भारी पड़ जाती है। कुछ के पिता मजदूरी करते हैं, जिसकी वजह से इन बच्चों के लिए दो जून की रोटी भी मुश्किल पड़ जाती है। मिड डे मील बच्चों का हक है कभी इसकी गुणवत्ता इसपर सवाल उठाती है, तो कभी भ्रष्टाचार मिड डे मील पर सवाल उठा देता है। कभी वर्कर तो कभी सरकारी सिस्टम कुल मिलाकर मिड डे मील को जिस तरह से पक़ना चाहिए, वैसा नहीं है। सवाल यही है कि आखिर क्यों सरकारी सिस्टम बच्चों के भूख पर भारी पड़ जाता है। क्या छोटे-मोटे बच्चों को वक्त पर खाना-खाने का हक नहीं है। गर्मियों में स्कूली बच्चों को खाना मिलता रहे, इसके लिये शासन ने व्यापक प्रबंध किये हैं। खिला चाहिए गरीब इसके लिए परेशान रहते हैं । मई में भले ही स्कूलों में शासकीय अवकाश घोषित किया गया है, मगर इसके बाद भी स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन देने का निर्देश दिया गया है। ऐसे में स्कूली बच्चों के लिए प्रतिदिन मध्यान भोजन बनाया जाता है। मगर भोजन करने के लिए बच्चों की संख्या बेहद कम संख्या में पहुंचती है। क्योंकि बहुत से अभिभावकों को गर्मी में स्कूल में मध्यान्ह भोजन के संचालित होने की जानकारी ही नहीं है।