सुशासन बाबु की संवेदनहीन पुलिस ने दर्ज किया चमकी बुखार के मृत बच्चो के परिजनों के खिलाफ मुकदमा
तारिक आज़मी
पटना. एक तो गरीबी, उस पर अपने मासूम बच्चो की मौत का सदमा अभी कम भी नही हुआ होगा कि सुशासन बाबु की पुलिस ने उन लोगो पर ही मुक़दमे दर्ज कर दिये है जिनके मासूम बच्चो को चमकी बुखार ने मौत में मुह में झोक दिया है। जी हां, संवेदनहीन हो चुकी बिहार की सरकार और शायद उससे भी दो कदम आगे बढ़कर उन मासूमो के परिजनों को आरोपी बना कर मुकदमा दर्ज कर लिया है। उन परिजनों का कसूर सिर्फ इतना था कि सूबे के मुखिया सुशासन बाबु से वह अपने दिलो की दर्द बयान करने के लिए सडको पर जाम की स्थिति उत्पन्न कर दिया था।
मामला बिहार की राजधानी पटना से लगभग 45 किमी दूर वैशाली के हरिवंशपुर गाँव का है। इस गाव में दिमाग़ी बुखार यानी एक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम से अब तक 11 बच्चों की मौत हो चुकी है। इस बीमारी को प्रभावित इलाक़ों में स्थानीय लोग चमकी बुखार भी कह रहे हैं। हरिवंशपुर के मुसहर टोला से सात बच्चे, पासवान टोला और ततवा टोला से दो-दो बच्चे इसकी चपेट में आए हैं। मुसहर टोली में जहां से सबसे अधिक बच्चों की मौत हुई है, गाँव वाले इस वक़्त सबसे अधिक इस बात से डरे हैं कि पुलिस ने बच्चों की मौत पर विरोध-प्रदर्शन करने वाले पीड़ित परिजनों के ऊपर ही केस कर दिया है।
मामला कुछ इस प्रकार है कि 18 जून को जिस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिमाग़ी बुखार के मरीज़ों का हाल जानने के लिए मुज़फ्फ़रपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल का दौरा करने गए थे। टोले वालों ने अपने यहां की समस्याओं मसलन पीने का पानी, बुखार से इलाज की व्यवस्था की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन किया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनएच-22 से होकर जाएंगे इसी को देखते हुए सड़क किनारे स्थित गाँव के लोगों ने रोड का घेराव कर दिया था। पुलिस ने रोड घेराव के कारण ही 19 नामजद और 20 अन्य के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। नामजदों में क़रीब आधे दर्जन वे लोग हैं जिनके बच्चों की मौत बुखार से हुई है। इस दर्ज मुक़दमे की चपेट में वह सुरेश साहनी भी है जिनके दो भतीजों प्रिंस कुमार और छोटू कुमार की आठ जून को इस बीमारी से मौत हो गई। पुलिस ने उनके ऊपर भी एफ़आईआर दर्ज की है।
ग्रामीणों का कहना है कि सड़क के उस पार बड़ी जाती वालो की बस्ती है और इस पार हम लोग है। उस पार किसी बच्चे को कोई समस्या नही हुई मगर इस पार हमारी बस्ती में बच्चे मरे है। वैसे उस पार वालो ने हमारी पानी वगैरह में मदद किया है मगर हमारे पीछे पुलिस से लेकर मीडिया तक पड़ी है। सभी हमसे ही सवाल कर रहे है। हमको हर ;लम्हा गिरफ़्तारी का खौफ सता रहा था। बताते चले कि हरिवंशपुर की आबादी करीब पाँच हज़ार है। गाँव में सब तरह की जातियाँ हैं और सभी जाति का एक अलग टोला है। मसलन मुसहर टोली या मल टोली में मल्लाह और मुसहर जाति के लोग रहते हैं। दुसाध जाति का अलग दुसाध टोला है।
पानी यहां की सबसे बड़ी समस्या है। जिस विरोध-प्रदर्शन के लिए टोलेवालों पर केस हुआ था, उनकी मुख्य मांगों में पानी भी था। ग्रामीणों का कहना है कि यहां के मुखिया से हमने कई बार मांग की। लेकिन एक भी हैंडपंप नहीं गड़ा। 12 जून को जब बच्चों की मौत होने लगी, हमने पानी के लिए बीडीओ को लिखित आवेदन दिया था। उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। फ़िलहाल मुसहरी टोले के लोग डरे हुए हैं। रविवार को जब लालगंज के लोजपा विधायक राजकुमार साह गांव में आए थे तो मीडिया चैनलों पर यह ख़बर चली कि विधायक को लोगों ने ग़ुस्से में बंधक बना लिया था। वही ग्रामीणों का कहना है कि ऐसी कोई घटना नही हुई है बल्कि विधायक से ग्रामीणों ने अपनी समस्याओं का बयान किया है। इस गाव में मीडिया के लिए भी लोगो के दिमाग में गुस्सा है।
वही इस सम्बन्ध में भगवानपुर के थाना प्रभारी ने इस सम्बन्ध में कहा कि रोड जाम करना एक अपराध है। हमने उसी आधार पर केस दर्ज किया है। ऊपर से आदेश था। बाद में हालांकि हमारे ही कहने पर गाँव वालों ने रास्ता खाली भी किया, लेकिन क़रीब तीन घंटे तक रोड जाम रहा। वही ग्रामीणों का कहना है कि दारोगा सुबह शाम चक्कर लगाने लगा है। लोगों से पकड़ कर पूछताछ हो रही है। लेकिन यहां के हालात में कोई बदलाव नहीं है। एक चापा कल था वो सूखा पड़ा है। दो दिन पहले पानी का एक टैंकर आया था। दोबारा नहीं आया
क्या किया अभी तक प्रशासन ने
वैसे कहने को तो ज़िला प्रशासन का पिछले दो हफ़्तों से कैंप लगा है। अभी भी बुखार से तपते बच्चों का कैंप में आने का सिलसिला जारी है। सोमवार की सुबह मुसहर टोले में बुखार से पीड़ित सात बच्चों की जांच हो चुकी थी। एक का बुखार इतना बढ़ गया था कि उसे भगवानपुर पीएचसी में रेफर कर दिया गया। रोकथाम के नाम पर कैंप लगाकर तीन नर्सों को प्रखंड अस्पताल से उठाकर टोले में एक पेड़ के नीचे कुर्सी-चौकी देकर बिठा दिया गया है। कहने को तो हरिवंशपुर में सरकारी मेडिकल कैंप है लेकिन उसमें इस्तेमाल की जाने वाली कुर्सियां और चौकी भी गांव वालों के ही हैं।