डॉ कफील खान – नायक या खलनायक – भाग 1

तारिक आज़मी 

डॉ कफील खान, नाम काफी मशहूर है। अच्छी बुरी सभी प्रकार की राय के साथ इस नाम के आते ही कई प्रश्न ज़ेहन में उभर आते है। सवाल आखिर तक अधुरा रह जाता है कि डॉ कफील खान एक हीरो या फिर विलेन। गोरखपुर मेडिकल कालेज केस के दौरान एक तरफ मीडिया तो दूसरी तरफ सोशल मीडिया आपस में कम्पटीशन करने लगी थी कि कौन पहले डॉ कफील खान को हीरो की उपाधि देगा। मगर सिर्फ दो चार दिन की चांदनी के बाद डॉ कफील खान अचानक एक विलेन की तरह प्रमोट होने लगे। लगातार उसके खिलाफ वही मीडिया और वही सोशल मीडिया पोस्ट और खबरे चलाने लगा जिसने डॉ कफील को एक लम्हे में हीरो बना दिया था।

आजमगढ़ के मूल निवासी शकील अहमद के दुसरे नंबर के पुत्र डॉ कफील खान का जन्म 29 सितम्बर 1982 को हुआ था। एक पढ़े लिखे सभ्य मुस्लिम परिवार में जन्म लेने वाले कफील खान के बड़े भाई का नाम आदिल और छोटे भाई का नाम काशिफ है। एक छोटी बहन भी है। शकील अहमद और उनकी पत्नी ने अपने सभी बच्चो को अच्छी तरबियत दिया और उच्च शिक्षा ग्रहण करवाया। डॉ कफील अहमद ने कस्तूरबा मेडिकल कालेज मनिपाल से एमबीबीएस की डिग्री ग्रहण किया। उनकी क़ाबलियत पर कोई शक नहीं हो सकता है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा में अखिल भारतीय 30 वीं रैंक हासिल करने के बाद, उन्होंने कर्नाटक, मणिपाल, कर्नाटक से एमबीबीएस और एमडी (पेडियाट्रिक्स) किया। डॉ। कफील खान ने SIIMS, गंगटोक (सिक्किम) में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम किया है। उन्हें बीआरडी मेडिकल कॉलेज में व्याख्याता के रूप में 08.08.2016 को स्थायी कमीशन मिला।

सब कुछ ठीक ठाक चलते हुवे अंततः 2017 का वह वक्त आया जब बीआरडी मेडिकल काजेल गोरखपुर में बच्चो की मौत में ओक्सिज़न की कमी से होने लगी। ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता ने कथित तौर पर पुराना भुगतान नहीं होने के कारण ऑक्सीजन देना बन्द कर दिया। 10 अगस्त 2017 से मात्र 48 घंटो में 30 बच्चो की मौत ने पुरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस दौरान मीडिया में यह मुद्दा खूब उछला। मीडिया को ब्रीफिंग देते समय डॉ कफील ने इस बात का भी दावा किया कि उन्होंने अक्सिज़न के कमी को दूर करने के लिए खुद के पास से दस हज़ार रूपये खर्च करके आक्सीजन सिलेंडर मंगवाये है। उस समय मस्तिष्क कलाशोध विभाग के प्रमुख डॉ कफ़ील खान थे जो नोडल अधिकारी भी थे।

डॉ कफील को अचानक मीडिया ने और सोशल मीडिया ने दो दिनों तक हीरो आफ द इयर तक कह डाला। सोशल मीडिया पर तो उपनाम देने और तारीफ़ो के पुल बाँधने का सिलसिला शुरू हो गया था। मगर यह सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चला। सबसे पहले अस्पताल के प्राचार्य आरके मिश्रा को 12 अगस्त को लापरवाही के कारण प्रदेश सरकार ने निलंबित कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। उसके बाद 13 अगस्त को मस्तिष्क कलाशोध विभाग के प्रमुख कफ़ील खान को नोडल अधिकारी के पद से हटा दिया गया। इस दौरान 14 अगस्त को पुष्पा सेल्स (जो आक्सीजन सप्लाई का कार्य देखती थी) ने एक बयान जारी कर बताया कि बकाया राशि के बावजूद उन्होंने कभी भी ऑक्सीजन की आपूर्ति को नहीं रोका। कंपनी के प्रबन्ध संचालक मनीष भण्डारी ने कहा था कि सरकार को मौतों के दिन 400 के स्थान पर केवल 50 सिलेण्डर पाये जाने की जाँच करनी चाहिये। मुझे संदेह है कि वहाँ से बड़ी मात्रा में सिलेण्डर चोरी हुये हैं जिन्हें बाहर खोजना चाहिए।

यहाँ से शुरू होता है कफील खान के दिक्कतों का समय। कफील खान जो एक मिनट पहले तक मीडिया और सोशल मीडिया पर सुपर हीरो साबित हो रहे थे अचानक वह खलनायक के तौर पर प्रस्तुत होने लगे, कफील खान को लोगो ने हाशिये पर रख रखा था। इसी दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बात से इनकार किया कि कोई भी मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई थी। 13 अगस्त 2017 को उन्हें इंसेफेलाइटिस वार्ड के प्रभारी नोडल अधिकारी के रूप से डॉ कफील खान को हटा दिया गया था, ये बर्खास्तगी ड्यूटी में देरी और निजी प्रैक्टिस करने के आरोप में थी। डीजी हेल्थ, केके गुप्ता द्वारा लिखित शिकायत के बाद डॉ कफील और अन्य लोगों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। आईपीसी की धारा 409, 308, 120 बी, 420, भ्रष्टाचार अधिनियम की रोकथाम, आईपीसी की धारा 8, भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 की धारा 15 के तहत। 2 सितंबर को, अदालत द्वारा गैर-जमानती वारंट जारी करने के बाद डॉ कफील खान को गिरफ्तार किया गया।

इस बीच कफील खान पर काफी संगीन आरोप लगे। इस दौरान वह सभी बाते लोगो ने सोशल मीडिया पटल पर रखना शुरू कर दिया जिसका कोई औचित्य नही बनता था। सबसे बड़ा आरोप कफील खान पर एक रेप के मुक़दमे के सम्बन्ध में लगा। 2015 की घटना के अनुसार यह रेप केस डॉ कफील पर महिला थाने में दर्ज होना दर्शाया गया था। वही एक लोबी जो सोशल मीडिया पर डॉ कफील का समर्थन कर रही थी, ने इस घटना के बाद लगी पुलिस रिपोर्ट की प्रति पोस्ट किया जिस रिपोर्ट में कथित रूप से घटना को झूठा दर्शाते हुवे पेशबंदी में हुवे मुक़दमे की बात कहते हुवे उलटे वादी मुकदमा पर 182 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही की बात कही गई थी।

सवालो का जवाब देते हुवे सोशल मीडिया पर डॉ कफील समर्थको द्वारा इस पत्र को पोस्ट किया गया था. हम इसकी सत्यता की पुष्टि नही करते है.

अचानक ऐसा लग रहा था कि घंटे पहले तक जिस शख्स को लोग हीरो से लेकर सुपर हीरो तक की उपाधि देने को बेचैन थे, वही आज उस शक्स को विलेन साबित करने पर तुले हुवे है। जाँच रिपोर्ट से पहले और न्यायालय के आदेश से पहले ही लोगो ने फैसले देने शुरू कर दिए थे। मगर ऐसा नही की सिर्फ डॉ कफील के विरोधी मुखर थे, दूसरी तरफ डॉ कफील के समर्थक भी कम नही थे। डॉ कफील की इस गिरफ़्तारी का विरोध भी जमकर हुआ था और एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों की एसोसिएशन ने उनकी गिरफ्तारी की निंदा करते हुवे कहा था कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। यह बयान आज भी यदा कदा चिकित्सको के एसोसिएशन से आते रहते है और लगातार डॉ कफील की बर्खातागी को ख़त्म करके उनके नौकरी में बहाली की मांग हो रही है। बहरहाल डॉ कफील महीनो जेल में रहे। इस दौरान उन्होंने जेल से एक दस पन्ने का ख़त भी लिखा था जो सोशल मीडिया पर खूब जमकर वायरल भी हुआ था।

अप्रैल 2018 में, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने खान के बचाव में एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया था कि उन्हें फंसाया गया था। आईएमए के सचिव ने राज्य सरकार के अधिकारियों को दोषी ठहराया और उच्च स्तरीय जांच की मांग की। 200 से अधिक स्वास्थ्य पेशेवरों और संबद्ध कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा, जिसमें खान के लिए न्याय, उनकी तत्काल रिहाई और उनके खिलाफ “झूठे आरोप” हटाने की मांग की गई। 19 अप्रैल को, एक आरटीआई का जवाब देते हुए, बीआरडी प्रशासन ने स्वीकार किया कि वह 11 अगस्त 2018 की रात को ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी का सामना कर रहा था। इसने कहा कि अन्य अस्पतालों से लगभग छह सिलेंडर खरीदे गए थे और तत्कालीन नोडल अधिकारी खान ने व्यवस्था की थी। अपने दम पर चार ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था किया था। बहरहाल 25 अप्रैल को, खान को 9 महीने के कारावास के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि उसकी ओर से चिकित्सकीय लापरवाही का कोई सबूत नहीं है। वही डॉ कफील खान ने वकील ने इस घटना को नरसंहार कहने पर जोर दिया था और इसके लिए यूपी प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया था।

10 जून 2018 को कफील खान के छोटे भाई काशिफ को अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी। काशिफ को गोली दाहिनी ऊपरी बांह, गर्दन और ठुड्डी यानी कुल तीन गोली लगी। लेकिन वह इस हमले में बच गए। यह घटना गोरखनाथ मंदिर से मात्र 500 मीटर की दूरी पर जेपी अस्पताल के पास हुमायूँपुर उत्तर क्षेत्र में घटी थी। यह वही इलाका था जहाँ यूपी के मुख्यमंत्री उस रात रुके थे। घटना के बाद कफील खान ने कहा कि उन्होंने मेरे परिवार के सदस्यों पर हत्या का प्रयास किया था। डॉ कफील ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके भाई को तत्काल चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने में कुछ घंटों की देरी किया। उन्होंने भाजपा के बांसगांव से सांसद, कमलेश पासवान और उनके तीन सहयोगियों पर हमलों को अंजाम देने का आरोप लगाया।

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