बदलते नज़रिये – लखीमपुर (खीरी) में बेटो से ज्यादा जन्म लिया बेटियों ने
फारुख हुसैन
लखीमपुर खीरी (यूपी) निश्चित ही यह खबर हिंदुस्तान के हर नागरिक के लिए खुशियों की सौगात लेकर आई है जहां कल तक लोग बेटियों को बोझ समझकर गर्भ में ही मार देते थे वही लखीमपुर खीरी के बेटियों को बढ़ाने का एक नया इतिहास रच डाला है, लखीमपुर खीरी के के लोगों ने दुनिया को संदेश दिया है कि बेटियां अब बोझ नहीं रही।
यू तो लखीमपुर खीरी शिक्षा के मामले में आखिरी पायदान पर खड़ा है। लेकिन बेटियो के मामले में आज देश मैं पहले स्थान पर जा पहुंचा है। जहां कल तक बेटों की अपेक्षा सिर्फ 825 बेटियां हुआ करती थी आज उनका आंकड़ा 1055 हो चुका है। इन पंक्तियों को पढ़कर आपको बेटियों से जुड़ी यह बड़ी खबर दिखाने जा रहा है÷
मेहंदी कुमकुम रोली का त्यौहार नहीं होता, रक्षा बंधन में चंदन का प्यार नहीं होता
उसका आंगन एकदम सूना सूना रहता है, जिसके घर में बेटी का अवतार नहीं होता ।
आपको बता दें लखीमपुर खीरी में वर्ष 2015 तक 1000 बेटो के सापेक्ष 825 बेटियां हुआ करती थी। लेकिन आज बेटियों की संख्या 1055 हो गई है। स्वास्थ्य महकमे द्वारा आए इन आंकड़ों से यह बात निकल कर सामने आई है। आपको बता दें बेटियों के गिरते लिंगानुपात के समाधान के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की योजना वर्ष 2016 में लागू की गई थी। यह योजना लखीमपुर खीरी में बेटियों के लिए जीवनदायिनी बनकर उभरी है। इसके अलावा बेटियों का लिंगानुपात बढ़ाने के लिए सुकन्या समृद्धि योजना और सुमंगला योजना भाग्यलक्ष्मी योजना जैसी तमाम योजनाओं का मकसद आज कामयाब होता दिख रहा है। इंडो नेपाल सीमा पर स्थित लखीमपुर खीरी के लोगों ने बेटियों को लक्ष्मी का रूप मानकर उनको बढ़ाने का काम तेजी से शुरू कर दिया है। लखीमपुर खीरी की लोगों ने पूरे दुनिया को संदेश दिया है कि बेटियां अब बोझ नहीं हो सकती इसीलिए बेटियों का लिंगानुपात में भारी वृद्धि दर्ज की गई है।
शायद बदलते नजरिए ने लखीमपुर खीरी कि लोगों की सोच भी बदल डाली है। शायद यहां के लोगों को एहसास हो चुका है कि बेटियां भी चांद पर पहुंच सकती है। साथ ही दुनिया को यह संदेशा भी दिया है कि अब बेटियां उनके लिए बोझ नहीं रही है। लखीमपुर खीरी में आए स्वास्थ्य महकमे के आंकड़ों ने देश में एक नया इतिहास रच डाला है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार यहां अब 1000 बेटों पर 1055 बेटियां हो गई।