बिग ब्रेकिंग – ज्ञानवापी मस्जिद-विश्वनाथ मंदिर विवाद में इलाहबाद हाई कोर्ट ने लगाया निचली अदालत के कार्यवाही पर रोक, अगली सुनवाई 17 मार्च को
तारिक आज़मी/तारिक खान
प्रयागराज। ज्ञानवापी मस्जिद – काशी विश्वनाथ मंदिर प्रकरण में निचली अदालत द्वारा पारित मस्जिद के मुखालिफ फैसले पर आज सुनवाई करते हुवे हाई कोर्ट इलाहबाद ने निचली अदालत द्वारा पारित फैसले के अनुपालन पर रोक लगा दिया है।
बताते चले कि वाराणसी में एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने स्वंयभू भगवान विश्वनाथ की ओर से दायर ज्ञानवापी मंदिर-मस्जिद परिसर के एएसआई सर्वेक्षण की मांग करने वाले मामले की कार्यवाही स्थगित करने के लिए अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद और सुन्नी वक्फ बोर्ड की मांग को खारिज कर दिया था। उक्त याचिका पर 4 फरवरी को हुई सिविल जज (सीनियर डिविज़न) आशुतोष तिवारी की अदालत में बहस के पश्चात अदालत ने अंजुमन इंतेजामिया कमेटी की मांग को ख़ारिज करते हुवे मस्जिद परिसर में एएसआई सर्वेक्षण पर रोक से इनकार करते हुवे अपील ख़ारिज कर दिया था। इसी आदेश के विरूद्ध हाई कोर्ट में पेश की गई थी नई रिट याचिका अन्तर्गत आर्टिकल 227 (नंबर 221/2020 अंजुमन मस्जिद इंतजामिया कमेटी बनाम Ancient Idol of Sawyambuh.)
प्रकरण में सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के जानिब से अधिवक्ता पुनीत गुप्ता और अंजुमन इंतेजामिया कमेटी की जानिब से अधिवक्ता फरमान अहमद नकवी ने दलील पेश किया, वही द्वितीय पक्ष के तरफ से अधिवक्ता एके सिंह और विजय शंकर रस्तोगी ने अपना पक्ष रखा। बचाव पक्ष ने इस प्रकरण में तैयारी हेतु समय की मांग किया जबकि अदालत ने इस सम्बन्ध में निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाते हुवे 17 मार्च की डेट फिक्स करते हुवे मस्जिद इंतेजामिया कमेटी की दोनों फाइल तलब किया है।
प्रकरण में अपीलकर्ता ने दलील दिया कि मुख्य मुद्दा ये है कि Places of worship Act 1991 लागू होने के बाद धार्मिक स्थलों की स्थिति को यथावत कर दिया गया जैसा की 15 अगस्त 1947 को उस किसी भी धार्मिक स्थल की थी सिवाय बाबरी मस्जिद विवाद इसका अपवाद रखा गया। इस संबंध में स्पष्ट करना है कि 1937 में बनारस की मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के संबंध में अदालत का फैसला आ चुका था और उस के मुताबिक एक नक्शा कोर्ट ने बनाया और मस्जिद और मंदिर का भाग कितना-कितना है उसको रेखांकित/ निर्धारित कर दिया। (देखें फोटो)
अपीलकर्ता अंजुमन इंतेजामिया कमेटी ने दलील दिया कि इस आदेश पर उच्च न्यायालय इलाहबाद ने 1942 में फैसला दे दिया और निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया। इस से स्पष्ट है कि 15 अगस्त 1947 को इस मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर का कोई विवाद लंबित नहीं था और जो था उसका 1942 में हाई कोर्ट के फैसले से अंतिम निबटारा हो चुका था। बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद कानूनी स्थिति बदल गई। अब Places of worship Act 1991 के मुताबिक वो सभी विवाद जो किसी भी धार्मिक स्थल के मालिकाना हक़ या कब्जे के संबंध में लंबित थे, कानूनन समाप्त कर दिए गए सिवाय बाबरी मस्जिद के अलावा।
अपीलकर्ता की दलील थी कि अगर 15 अगस्त 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप बदल दिया गया है और Places of worship Act 1991 के लागू होने की तिथि तक वह विवाद लंबित है तो ऐसे मुकदमे सुनवाई के लिए रहेंगे। प्रस्तुत मामले में ये विवाद नहीं है कि 15 अगस्त 1947 के बाद मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई गई और Places of worship Act 1991 लागू होने की तिथि पर कोई मुकदमा या उसकी अपील लंबित थी। ये मुकदमा मंदिर कमेटी ने नंबर 610 सन 1991 उक्त कानून के लागू होने के बाद मंदिर कमेटी ने दायर किया जो 1991 के Places of worship Act के मुताबिक दायर नहीं हो सकता था। मस्जिद कमेटी की इस दलील को निचली अदालत ने नहीं माना इसलिए ये मामला अब उच्च न्यायालय में लंबित है।