तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – वाराणसी में CAA-NRC के विरोध का नाम और राजनैतिक महत्वाकांक्षा असली काम, क्या बन रही विवाद की नई पृष्ठभुमी
तारिक आज़मी
वैसे कहा जाता है कि हाथी के दांत खाने और दिखाने के अलग अलग होते है। अब खुद देखे विरोध की सियासत में खुद की सियासी ख्वाहिशे पूरी करने का सपना भी इसी तरह से ही तो हुआ। कहने को तो किसी एक मुद्दे की मुखालफत और अन्दर से राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरी करना मकसद रहे। कुछ इसी तरह की सियासत दिखाई दे रही है। शहर हमारा है आप तो मुसाफिर हो। हम तेरे शहर में आये है मुसाफिर की तरह से। आप हमारे शहर की फिजा से खेलो हमको तो पसंद नही आएगा।
21 जनवरी को वाराणसी के चौक थाना क्षेत्र स्थित बेनियाबाग में कथित रूप से हुवे NRC-CAA के विरोध प्रदर्शन के मद्देनज़र पुलिस ने एक मुकदमा पंजीकृत किया था। कहा जाता है कि गेहू के साथ घुन भी पिस्ता है तो इस प्रकरण में भी हुआ कि गेहू के साथ कुछ घुन भी पिस गए। इन घुनो में कुछ ऐसे भी थे जिनका प्रकरण में किसी प्रकार का कोई लेना देना नहीं रहा होगा। मामले में विवेचना अभी भी चल रही है। हम विवेचक के विवेक पर पूरी तरह से संतुष्ट है कि कोई बेगुनाह किसी ऐसी गुनाहों की सजा नही पायेगा जो उसने किया ही न हो।
बहरहाल, प्रकरण की गहराई से हमने अपने स्तर पर जानकारी इकठ्ठा किया। जानकारी कुछ ऐसी निकली कि दिसंबर में हुवे बेनियाबाग का विवाद और फिर 21 जनवरी को हुवे विवाद के सूत्रधार एक ही दिखाई दे रहे है। एक साहब ने प्रभु परशुराम की नगरी से आकार बाबा भोलेनाथ की नगरी में अपने सियासत का परचम लहराने और खुद को एक वर्ग विशेष का ठेकेदार बनाने की कवायद शुरू कर दिया दिखाई दे रहा है।
मामले की गहराई में जाने से पहले हमको थोडा फ्लैश बैक में जाने की ज़रूरत है। प्रकरण को थोडा आप ठन्डे दिमाग से दिसंबर की घटना पर गौर करके देखे तो और साफ़ साफ़ समझ आ जायेगा। हमने दिसंबर के हुवे विवाद में उस भीड़ को देखा था जो दौड़ती हुई जा रही थी। भीड़ में आपको कई अलग अलग क्षेत्र के नवजवान दिखाई दे रहे थे। मार्किट बंदी के बाद मौके पर सिर्फ भीड़ इकठ्ठा थी। भीड़ का कोई प्रतिनिधि नही था तो झुंडो में लोग गली नुक्कड़ के चौराहों पर खड़े थे। एक दल सराय वाले बनियाबाग़ के गेट के पास अधिकारियो से बात कर रहा था। ये बातचीत आखिर तक शांति पूर्वक हुई और सभी नवजवान शांति और तहजीब के साथ अधिकारियो की बाते सुनी और अपने सवाल भी पूछे। सवालो के जवाब से संतुष्ट हुवे थे।
इसी दौरान दुसरे तरफ फाटक शेख सलीम के पास एक सकरी गली से लगभग 50 लडको का झुण्ड निकला जो तेज़ी के साथ दल बना कर दौड़ता हुवा सामने की गली से टेलीफ़ोन एक्सचेंज होते हुवे बेनिया से रोड पर निकलने को बेताब दिखाई दे रहा था। इस दौरान पुलिस ने सड़क पर लाठिया पटकी और भीड़ जो दौड़ कर आ रही थी, वापस दौड़ती हुई भागी। इसमें कई ऐसे नवजवान गिर जाने और धक्का मुक्की से चोटहिल हुवे जो केवल मूकदर्शक थे। ये सियासत की पहली सीढ़ी थी। मगर प्रशासन ने तत्काल मामले में गंभीरता अपनाई। यहाँ तारीफ के काबिल काम चौक और दशाश्वमेघ इस्पेक्टर के काम रहे। उन्होंने क्षेत्र ने नवजवानों को समझाया और वह सभी अपने अपने घरो को पलट गए।
इस दौरान सबसे समझदारी का काम हुआ जब इस्पेक्टर चौक आशुतोष तिवारी और इस्पेक्टर दशाश्वमेघ सिद्दार्थ मिश्रा के साथ क्षेत्राधिकारी दशाश्वमेघ प्रीती और क्षेत्राधिकारी चेतगंज अनिल कुमार ने तत्काल मोर्चा संभाल कर हर रविवार को लगने वाली सन्डे मार्किट जो लाट के माल की लगती है लगवा दिया। भीड़ खुद ब खुद शांत होकर अपने काम पर लग गई और क्षेत्र में जिन्दाबाद मुर्दाबाद के जगह आवाज़ आने लगी आइये रस्ते का माल सस्ते में, खाली पचास……….। ये एक बेहतरीन नियंत्रण का काम हुआ और बारीकी से क्षेत्र में दैनिक दिनचर्या शुरू हो गई। इसके बाद हुई बंदी से निपटने के लिए दुकानदारो सहित इलाके के संभ्रांत नगरिको सहित क्षेत्रीय पुलिस अधिकारियो ने बैठके किया और माहोल शांत हो गया।
मगर शायद ये ख़ामोशी और अमन-ओ-सुकून का माहोल एक सियासत में पेंग बढाने को बेताब परदेसी बाबु को पसंद नही आया और बारीक सियासत के तहत शहर के अलग अलग हिस्सों की कुछ महिलाओं को बेनियाबाग भेज दिया। माहोल फिर गर्म हुआ। ये पूरा खेल इस तरह था कि भुस में चिंगी डाल मैडम दूर खडी। बात समझ में क्षेत्र के लोगो को नही आई कि पुरे प्रकरण में सामने आने के वाले सज्जन भेलूपुर क्षेत्र के रहने वाले है। उनको अगर विरोध करना था तो अपने क्षेत्र क्यों नही किया आखिर तीन किलोमीटर दूर आकर ऐसे रायते फैलाने का मतलब क्या था ? मतलब सिर्फ एक ही था कि खुद को सुरक्षित करके आपको फ़साना और आप फंस गए। आखिर कितने भोले हो कि एक सवाल नही पूछ सके कि जब प्रशासन परमिशन देने को तैयार है तो परमिशन क्यों नही लिया गया ? कौन रोका है आपको विरोध जताने से ? आपका मौलिक अधिकार है मगर कानूनी तरीके से। आप परमिशन लो। जगह मुक़र्रर है, बैठो जाकर।
बहरहाल, ठोकर खाकर ही संभालना सीखते है लोग मगर आप ठोकरे खाकर भी नही सीख पा रहे हो। एक दो प्रकरण आपको याद दिलवा दू शायद आपके समझ में आ जाये। फ्लैश बैक में लेकर चलते है आपको। स्लाटर हाउस की आपकी कोशिशे शांति के साथ चल रही थी। आपसे प्रशासन बात भी शांति के माहोल में कर रहा था। आप खुद लीड करके बातचीत से प्रशासन से मामला हल करवा रहे थे। मगर क्या हुआ ? आपने अपने खुद के मामले में “आका” बना डाला। सूत्र तो मेरे भी है और पुराने बरगद का भुत तथा हमारा सूत्र भले दिखाई न दे, मगर होता तगड़ा है। आपने जिसको “आका” बनाया उसको “प्रसाद” भी बढ़िया चढ़ाया। नतीजा क्या हुआ। नतीजा आपके सामने है। थोड़ी बदतमीज़ी हुई, लाठिया चटकी। ये वही मसला था कि प्रशासन आपसे बातचीत कर रहा था मगर उसके बाद तो वह भी रास्ता बंद हो गया। अब भी आप सियासत की रवादारी नही समझ पा रहे है तो शायद आपका कुछ नही हो सकता है।
जाने क्या है अगला कार्यक्रम
बहरहाल, सोचना आपका काम है। शहर हमारा आपका है। किसी को इसके अमन-ओ-सुकून से खिलवाड़ करने का अधिकार नही दिया जा सकता है। हमारे सूत्रों ने लगातार इस मामले में अपनी पड़ताल जारी रखा। नेता जी जो खुद को आका बनाने की ख्वाहिश लिए बैठे है ने अल्पसंख्यक एक मौलाना और दालमंडी क्षेत्र से एक महिला का समर्थन लिया। हमारे सूत्र बताते है कि पिछले एक सप्ताह में चार बैठक नेता जी इन दो अपने योद्धाओ के माध्यम से कर चुके है। दालमंडी क्षेत्र के एक मशहूर कटरे के पीछे एक मकान में, मुसाफिर खाने के पास और फिर एक बैठक एक कथित नेता के आवास पर सराय में कर डाली। खुद के नाम पर एनबीडब्लू होने के बावजूद “अपकमिंग आका” बैैैठको का सिलसिला जारी रखा है।
सूत्र बताते है कि कुछ लोगो को ये दुबारा सर उठाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे है। खुद पीछे रहकर लोगो को वर्गालाने की कोशिश इन “अपकमिंग आका” द्वारा जारी है। खुद को आलिम का तमगा लेकर मौलाना जिनकी खुद की क्षेत्र में पकड़ शुन्य है के साथ एक महिला इनके साथ है।
अगर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के दौरान इनके द्वारा विरोध प्रदर्शन का प्रयास किया तो शहर की अमन-ओ-फिजा पर इसका असर पड़ सकता है। हम स्पष्ट कर देना चाहते है कि हमारे सूत्र अति गोपनीय है और हम उनकी सुरक्षा और पत्रकारिता के नियमो के तहत अपने सूत्र का नाम नही बता सकते है। हमारे सूत्र बताते है कि कल देर रात भी इस तिगडी ने एक बैठक नई सड़क के एक मकान में किया था। इस बैठक में क्या प्लान बना इसकी कोई डिटेल बहार निकल कर सामने नही आ सकी है। शायद यह बैठक अति गोपनीय तरीके से किया गया था।
अब आपको सोचना है। कही आप सियासत की महत्वाकांक्षा का शिकार तो नही हो रहे है। देश हमारा है और संविधान हमारा है। स्पष्ट रूप से संविधान का पहला शब्द है “हम भारत के लोग”। इस शब्द का मतलब समझे। आप सोचे कही कोई अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा का आपको शिकार तो नही बना रहा। कही वह आपकी भावना को भड़का कर कही भीड़ में तो आपको तब्दील नही कर दिया है। सब पाल लीजिएगा, अगर मन करे तो आप हाथी और उपलब्ध होने पर डायनासोर तक पाल ले। बस गलतफहमी न पालिये। आपका खुद को हमदर्द बताने वाला क्या क्या हमदर्द है आपका ? सोचिएगा ज़रूर।