नहीं रहे आजमगढ़ में संघर्ष का दूसरा नाम डॉ मुहम्मद तय्यब आज़मी
संजय ठाकुर
आजमगढ़। आजमगढ़ की सरज़मीन पर डॉ मुहम्मद तय्यब आज़मी को किसी पहचान की ज़रूरत नही है। एक नाम जो खुद के अपने वसूलो का पाबंद शख्स, एक इंसान जो समाज सेवा के लिए लगातार जूनून की हद तक लड़ता रहा है। आजमगढ़ की आवाज़ के तौर पर मशहूर डॉ तय्यब आज़मी ने अब इस दुनिया को रुखसत कह दिया है। कल शाम शनिवार को उन्होंने आखरी साँसे लिया। ले में धरने के पर्याय माने जाने वाले डा। आजमी मंडलीय रेल सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य भी थे।
बिलरियागंज नगर पंचायत निवासी डॉ। मुहम्मद तैय्यब आजमी को शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो कलेक्ट्रेट कचहरी जाता हो और न जानता हो। उनका पूरा जीवन ही संघर्षों में ही बीता। जनपद में रेलवे सुविधाओं के विस्तार को लेकर उन्होंने एक हजार से अधिक दिनों तक धरना दिया था। आजमगढ़ से कोलकाता, मुंबई, दिल्ली और लखनऊ तक ट्रेनें चलवाने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया।
वह अकेले ही दरी बिछाकर रिक्शा स्टैंड पर बैठ जाते। कोई आए या न आए वह धरने पर बैठना नहीं छोड़ते थे। कोई सुनने वाला न भी हो तो भी माइक के जरिए अपनी मांगों को शासन और प्रशासन तक पहुंचाने का प्रयास करते थे। धरने के बाद प्रधानमंत्री, रेल मंत्री, राज्यपाल और राष्ट्रपति तक अपनी आवाज को पहुंचाने के लिए वे प्रशासन को ज्ञापन भी नियमित देते थे।