कोरोना के चलते असमर्थ है शिक्षार्थी कैसे हो मिशन पहचान की परीक्षा का जादू
बापू नंदन मिश्र
रतनपुरा (मऊ) कोरोना जैसी वैश्विक बीमारी से आज पूरा देश एकदम परेशान है। जिसका कोई भी हल अभी दिखता नजर नहीं आ रहा है। सरकार द्वारा सभी किसानों को तथा प्रत्येक व्यक्ति को यूनिट के आधार पर 5 किलो चावल और गेहूं देकर किसी तरह लाक डाउन में जीवन यापन करा रही है।
इस महामारी में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्राइमरी के प्रधानाध्यापक एवं अध्यापकों को सूचित किया गया है कि गांव-गांव घूमकर दीक्षा एप डाउनलोड करवा दें, तथा प्रत्येक माह में 30 तारीख को मिशन पहचान की परीक्षा भी कराई जाए। उस परीक्षा के चलते तथा सरकार के आदेशों का पालन करने में सभी शिक्षक जब गांव गांव में घूम रहे है, तो गांव के अधिकांश लोगों के पास तो आधुनिक फोन ही नहीं है। यदि किसी के पास आधुनिक तकनीकी वाला मोबाइल मिल भी रहा है तो उस में नेट की व्यवस्था ही नहीं है। क्योंकि उसके पास तो पैसा ही नहीं है।
ऐसी स्थिति में सभी शिक्षक किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए कि आखिर कैसे सरकार के आदेशों का पालन किया जाए। क्योंकि इस वैश्विक महामारी में जहां सरकार पर आश्रित होकर संपूर्ण मानव समाज जी रहा है। क्योंकि सिलेंडर फ्री में भोजन के लिए अन्न फ्री में तथा मजदूरों को उनके अकाउंट में प्रत्येक माह जनधन योजना के तहत 500 मिल जाते हैं, अर्थात इस लाक डाउन में गरीब किसानों की व्यवस्था तो सरकार द्वारा ही निर्मित किया जा रहा है। तो फिर यह मिशन पहचान की परीक्षा और दीक्षा एप के द्वारा पढ़ाई कैसे हो सकेगी। क्योंकि जिसके पास भोजन के पैसे नहीं है वह मोबाइल में नेट पैक कैसे भरा सकता है ।यह एक विचारणीय यक्ष प्रश्न है।