रियासतकाल से ही साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है रामपुर

नवाब काज़िम अली खां ने साझा कीं रियासत से जुड़ी बातें

गौरव जैन

सोशल मीडिया लाइव के जरिये दिये सवालों के जवाब

रामपुर। अंतिम शासक नवाब रजा अली खां के पौत्र पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने रामपुर रियासत से जुड़ी बातें सोशल मीडिया के माध्यम से साझा कीं। पूर्व मंत्री के पीआरओ काशिफ खां ने बताया कि गुजरात के दांता की राजकुमारी ख्याति सिंह के साथ एक घंटे के लाइव में देश-दुनिया के तमाम लोग जुड़े, जिन्होंने रामपुर के बारे में सवाल भी पूछे।
नवाब काज़िम अली खां ने कहा कि रामपुर रियासत पूरी तरह से धर्मनिर्पेक्ष और साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने वाली स्टेट थी। यहां के शासक नवाब को राजपुरोहित गद्दी पर बैठात थे। यह देश की पहली ऐसी मुस्लिम रियासत थी, जिसमें परिवार के हर सदस्य की जन्मपत्री बनती थी। बंटवारे के बाद रामपुर आए सिखों को जमीनें दीं और अपने भवन उन्हें सौंप दिए। मस्जिदें तामीर कराईं तो मंदिरों की भी आधारशिला रखी। मुस्लिम रियासत के गृह मंत्री हिन्दु थे। रामपुर रियासत के शासकों द्वारा क़ायम भाईचारे की मिसाल देखना है तो रजा लाइब्रेरी की हामिद मंज़िल देखिये। इसके चार गुंबद हैं। इनमें एक मस्जिद, दूसरा मंदिर, तीसरा गुरुद्वारा और चौथा चर्च की तर्ज पर बना है। अब न रियासत रही और ही शासन, लेकिन कोशिश यही है की आपसी प्रेम और सद्भाव की परम्परा कायम रहे।
उनहोंने कहा कि ब्रिटिश राज और उसके बाद स्वतंत्र भारत में भी राजघरानों का बेहद प्रभाव था। राजशाही के साथ जनता का समर्थन था। राजघरानों के प्रतिनिधि चुनाव जीतते थे। उनको देखने और सुनने के लिए भीड़ जुटती थी। इसीलिए सभी दलों के लीडर राजघरानों से खुद को असुरक्षित समझते थे और यही कारण है कि विलय के वक़्त राजघरानों को दिए गए अधिकार छीन लिए गए। राजनीति में भी उन्हें पीछे धकेलने का प्रयास किया गया।
पूर्व मंत्री ने कहा कि रामपुर रजा लाइब्रेरी दुनियाभर में इस रियासत की पहचान है। रामपुर के नवाबों ने इल्म और अदब का ऐसा खज़ाना जमा किया है, जो कयामत तक लोगों को फायदा पहुंचाता रहेगा। यहां हज़रत अली के हाथों से लिखा क़ुरान और बिस्मिल्ला से शुरु होने वाली वाल्मीकि रामायण है। हज़ारों पाण्डुलिपियाँ हैं। रिसर्च के लिए बहुत कुछ है। उन्होंने कहा कि कला और संस्कति के मामले में रामपुर का अतीत बहुत सुनहरा है। यह मिर्ज़ा गालिब की धरती रही है। रामपुर-सहसवान घराना आज भी दुनियाभर में अपनी पहचान रखता है। दिल्ली और लखनऊ की बर्बादी के बाद रामपुर के नवाबों ने ही कलाकारों, फनकारों और अदीबों को सहारा दिया था। उन्होंने सवालों के जवाब में कहा कि शाही दस्तरख्वान की चर्चा के बगैर रामपुर रियासत के अतीत पर कोई भी गुफ्तगू मुकम्मल हो ही नहीं सकती। यहां के नवाब मेहमाननवाज़ थे। यहां न दिल्ली और लखनऊ से अलग पकवान बनते थे। रामपुर में मुगलई खाने नहीं खाए जाते थे। यहां के कुक और उनका हुनर बेमिसाल था। उनके हाथों में स्वाद का जादू था और आज भी रामपुर के लोग अच्छा खाना खिलाते और खाते भी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया राजघरानों को मान-सम्मान

रामपुर। गुजरात के दांता की राजकुमारी ख्याति सिंह के एक सवाल के जवाब में पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि मैं इस चर्चा को राजनीतिक नहीं बनाना चाहता, लेकिन मैने देखा है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने खुले मंचों और खुले मन से राजघरानों की प्रशंसा की है और उनके प्रभाव को मानते हुए मान सम्मान दिया है।

Photo : नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां

Photo : राजकुमारी ख्याति सिंह

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