तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – काका ने हमको बताया कि “नमकहरामी क्या होती है तुम क्या जानो बाबु”
तारिक आज़मी
“नमक हराम”। इस लफ्ज़ में बड़ी कशिश है। या फिर कह ले ये कशिश हिकारत वाली कशिश है। जिसे बड़ी हिकारत की नज़र से देखा जाता है। शायद इस लफ्ज़ की हिकारत भरी कशिश ने ही ऋषिकेश मुखर्जी को इस फिल्म बनाने के लिए आकर्षित किया होगा। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना अभिनीत इस फिल्म को इसके “मैं शायर बदनाम” और “दिए जलते है” जैसे गानों के कारण 1973 से आज तक भूलने लायक नही बनाया। या फिर इस लफ्ज़ की हिकारत भरी कशिश ने इस फिल्म को आज भी यादो में जिंदा रखा है।
इस लफ्ज़ के पूरा मायने तलाशने के लिए हमने काका के तरफ रुख कर लिया। अमूमन मेरे “मोरबतियाँ” में काका हमारे कमरे में आ धमकते है। मगर इस बार हम उनके कमरे में जा धमके। हमको देख काका ने चिरपरिचित शब्द में पूछा “का हुआ बबुआ, आज तुम्हार सुबह बड़ी जल्दी होई गई।” हमने कहा काका बस काकी के हाथ की गुड वाली चाय पीना था तो चले आये। काका भी बाल धुप में तो सफ़ेद किये नहीं थे, बोले ए बबुआ, खाली चाय पिए के लिए तो आये नही हो। अब आये हो तो बईठो हम चाय पिलवाते है। मगर आने का कारण बताते रहो तब तक तुम्हार काकी चाय खुदही ले आएगी।
काका की वाणी कानो में मिठास घोल देती है। हमने अपनी जिज्ञासा दिखाई और कहा काका ई नमक हराम लफ्ज़ में इतनी कशिश है। मगर हिकारत वाली कशिश है। काहे अईसा काका। हमारे सवाल पर काका तनिक मद्धिम से मुस्कुरा दिहिन और कहिन। बबुआ ई नमक हराम का होता है तुम का जानो। इसके लिए नमक हराम लोग बड़ी तपस्या करते है। बहुत कड़ी मेहनत करते है तब उनका नमकहरामी आती है। वईसे तुम नमकहरामी का होती है जानते हो। हमने मुह से नही जवाब दिया मगर मन भर की मुंडी न में हिला दिया। वैसे ये मुंडी भी बड़ी काम की होती है। दाहिने बाये घुमे तो न और ऊपर नीचे घुमे तो हाँ। तो हमने दाहिने बाये मुंडी घुमा कर खुद को काका की आराम कुर्सी के सामने पड़ी दूसरी आराम कुर्सी जिसपर अमूमन काकी विराजमान रहती है पर ढेर कर डाला।
काका ने बड़े चिन्तक के भाव में बताना शुरू किया। देखो बाबु, ई नमकहरामी के लिए पूरा कोर्स कुछ लोग करते है तो कुछ जन्मजात होते है। अब जईसे हम तुमसे पूछते है कि तुम पैदल जा रहे हो। बहुत थक गए हो, तुमको कोई सवारी नही मिल रही है और तुम परेशान हो। तभी तुमको एक परिचित मात्र दिखाई देता है जिसका घर जहा तुम हो वहा से बस थोडा दूर ही है और तुम्हारा घर दस किलोमीटर और बचा है। सवारी मिलने की संभावना नही है। वह परिचित तुमको अपनी गाड़ी पर बैठा कर अपने घर के पास आता है और कहता है कि गाडी ले जाओ, टंकी फुल है। सुबह आना तो दे देना। अब बताओ तुम उसके लिए क्या कहोगे और क्या करोगे। हमने तपाक से जवाब दिया काका, वो तो फ़रिश्ते के तरह आया था, उसका अहसानमंद रहूँगा और सुबह जल्दी उठ कर उसकी गाडी पहले पहुचा दूंगा ताकि उसको कोई दिक्कत न हो।
काका हँसे और कहे, इसको नमकहलाली कहते है। मगर अगर कोई ऐसी स्थिति में कोई उस गाडी जिसकी टंकी फुल थी और एक बूंद तेल नही डलवाया उलटे उसका तेल खर्च कर दिया और फिर गाडी से तेल निकाल कर अपनी गाडी में डाल ले और खुद न पहुचाने जाए बल्कि जिसकी गाड़ी है वो खुद लेने आये तो इसको कहते है नमकहराम। इसके लिए अब खुद सोचो कितनी मेहनत करना पड़ता है। कितना झेलना पड़ता है। और तो और सामाजिक तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। इतना झेलने वाला या तो कोई डिग्री करता है या फिर उसको ये कला जन्मजात मिलती है। समझो नमकहराम होना भी एक कला है। एक आर्ट है। चलो दूसरा उदहारण देता हु।
मान लो तुम्हारे जेब में एक रुपईया नही है। घर में राशन पताई कुल खत्म हो गया हो। खाने को कुछ न हो। रात भी काफी हो गई हो। कोई तुमको उधार देने वाला भी न हो। ऐसे में किसी को तुम समस्या बताओ और वह देर रात तुम्हारे घर राशन पंहुचा दे तो क्या करोगे। मैंने कहा काका उसका यह अहसान तो ज़िन्दगी भर नही भूलूंगा। उसके एक एक दाने का अहसान रहेगा। उसका सम्मान पूरी उम्र करूँगा क्योकि सब कुछ उसको वापस कर सकता हु, मगर वो लम्हा नही वापस कर सकता जिस लम्हे में उसने मेरा पेट भरा हो। काका हँसे और बोले कहा था न तुम नमकहलाल वाली बात कर रहे हो। अरे उसके अहसान को भूल जाना। उसकी पीठ में खंजर मारना। उसके काम को तोडना। उसके सम्मान से खेलना। ये असली नमकहरामी है। इसके लिए बड़ी मेहनत लगती है। पूरा कोर्स करना पड़ता है। अथवा जन्मजात इस कला को सवारना पड़ता है। तब ये कला आती है। तुम क्या जानो कितनी मेहनत लगती है।
चलो मान लो भगवान न करे कि कभी ऐसा समय आये कि तुम किसी केस में फंस जाओ। तुम्हारी ज़मानत करवाने वाला कोई न हो। तुम्हारे पास ज़मानत के पैसे न हो। ऐसे समय में तुम्हारा पडोसी तुम्हे ज़मानत भी दे और पैसे भी दे तो तुम क्या करोगे। मैंने कहा काका उसके हर एक आदेश को पूरी उम्र मानूंगा। हमेशा उसके सम्मान में सर झुका रहेगा। काका जोर से चिल्लाये, ओये नमकहलाली नही नमकहरामी की बात कर न। देख उसको धोखा देना, उसको केवल प्रयोग की चीज़ समझना। कभी मौका मिले तो कहना कि तुम न करते तो कोई न कोई कर देता, किसी के कारण किसी का काम रुकता नही है। ये होती है नमकहरामी। इसको करने के लिए आँखों की शर्म और पानी मारना पड़ता है। तुम्हारे बस का न है। बताया न नमकहरामी एक जन्मजात कला है, एक आर्ट है, इसका पूरा कोर्स करना पड़ता है। जमकर आँखों का पानी मारना पड़ता है। खुदगर्ज़ बनना पड़ता है। बड़ी मेहनत का काम है।
अब हमको काका की बतिया समझ आ चुकी थी कि इस लफ्ज़ नमकहरामी में हिकारत वाली कशिश क्यों है। अब देखे आप पकिस्तान को। हम उसका भला करते है। उसके जन्म के समय हमने उसको परवरिश के लिए एक बड़ी रकम दिया कि जा मेरे लाल पल पोस के इसी पैसे से बड़ा हो जा। मगर वो नमकहराम, उस पैसे से ही हथियार खरीद कर अपने यहाँ के दहशतगर्द को हमारे सरहद के पार भेजता है। हमारे दुश्मनों को ट्रेनिंग देता है। हमारे सीमाओं पर तैनात जवानो को धोखे से मार देता है। उनके साथ धोखाधड़ी करता है। अपने यहाँ से दहशतगर्दी का कोर्स करवा कर लोगो को यहाँ हमारे यहाँ भेजता है यानी जिस बाप ने उसको पैदा किया उसके साथ ही धोखा करता है। इसको कहते है नामकहराम। अब जो नमकहरामी पकिस्तान कर सकता है उसको हम तो कर नही सकते है। हमने तो नमकहरामी का कोई कोर्स नही किया है।
अब आप चीन को देख ले। हमने उसके प्रोडक्ट को एक पहचान दिया। हमने उसके उत्पाद को एक स्थान दिया। हमने उसको सम्मान दिया। हमने उसको अपना भाई मान कर रिश्ता निभाया। मगर वो क्या कर रहा है। हिंदी चीनी पाई पाई करके हमारी ही ज़मीन हमसे हडपना चाहता है। उसके थाली में हमने खाना पहुचाया। हमने ही वो खाना खाकर आँखे दिखाने की जुर्रत करता है। इसको कहते है नमकहरामी। एक हम है जो आज भी उसके साथ कोई समस्या आये दुनिया का कोई उसके साथ न हो मगर हम उसका साथ देने को तैयार रहते है। असल में हमको नमकहरामी आती नही है। हमारे जींस में नहीं है नमकहरामी का। तो हम उसके साथ आज भी खड़े रहेने की सोचते है। मगर उसने नमकहरामी का पूरा कोर्स किया हुआ है। वो चीन हो या पकिस्तान, हमने उसको पहचान दिया मगर वो क्या करते है दोनों के दोनों।
हम ये सब समीकरण सोच ही रहे थे कि काका की कर्कश आवाज़ ने हमारी आँखे खोल दिया। हमने देखा कि हम तो अपने बिस्तर पर है। तब हमको समझ आया कि काका के घर हम गए नही थे। बल्कि सपने में हम काका को देख रहे थे। अब बताओ काका सपने में भी हमारा पीछा नही छोड़ रहे है। शायद इसको कहते है नमकहलाली। काका आज बड़ा मुस्कुरा कर देख रहे थे। लगता है बचपन में जो उन्होंने घोडा बनकर हमको पीठ पर सैर करवाई है आज उनको बाइक से लेकर शहर का चक्कर काटना पड़ेगा। हमने सोच लिया। भले लोग बदल जाए मगर हम ऐसे ही रहेगे। वो एक शेर है न कि “वक्त के साथ बदलना तो बहुत आसां था, मुझे हर वक्त मुखातिब रही गैरत मेरी।” तो मेरी गैरत मेरे साथ है। काका ने कहा चल बबुआ आज सब्जी मण्डी की सैर करके आते है पैदल ही। हम उनका इशारा समझ गए थे। अब काका हमको एक किलोमीटर पैदल लेकर जायेगे और फिर वापस में पंद्रह किलो का दो दो झोला हमको थमा देंगे।