महिलाओं द्वारा फटी जींस पहनने पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह के बयान और तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ – तीरथ साहब ये सीरत का मामला है

तीरथ साहब ये सीरत की असल में बात है। महिलाये फटी जींस पहने तो उनकी सीरत पर पुरुष प्रधान समाज उंगलियाँ उठा रहा है। वही खुद का बेटा इंकल रिब जींस पहन कर आधे पिछवाड़े को दिखाता चलता है उसकी सीरत पर सवाल क्यों नही होता है। एक बेटा नग्नता कर रहा है तो वह फैशन है और एक बेटी फटी जींस पहने है तो वह सवालो के घेरे में आ जायेगी। आखिर किस सीरत का बयान हम कर रहे है।

तारिक आज़मी

महिलाओं के सशक्तिकरण के कई प्रयास जारी है। इतिहास गवाह है कि मुल्क के मजबूती में जितना पुरुषो का योगदान है उतना ही कंधे से कन्धा मिला कर खडी महिलाओं का भी योगदान रहा है। माँ दुर्गा से लेकर काली अथवा सभी नौ देवियाँ महिला का ही रूप है। महिला एक बेटी है, तो वह एक बहन भी है, एक पत्नी है तो वह ममता की मूरत माँ भी है। महिला के अनेक रूप में महिला अपने आप को पूरी तरह ढाले हुवे है। मगर पुरुष समाज महिलाओं पर उँगलियाँ उठाने से बाज़ नही आता है। उनको नसीहते दे दिया जाता है मगर उन नसीहतो को बेटो से क्यों नही कहा जाता है।

मामला उत्तराखंड नए-नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से सम्बन्धित है। पद पर बैठते ही अपने एक बयान को लेकर वह इस समय चर्चा में आ गए हैं। मंगलवार को उन्होंने देहादून में बाल अधिकारों की सुरक्षा को लेकर उत्तराखंड राज्य आयोग ने एक वर्कशॉप में उन्होंने एक बयान में महिलाओं के फटी जींस पहनने को लेकर टिप्पणी की और कहा कि उन्हें नहीं लगता कि ऐसी महिलाएं घर पर अपने बच्चों को सही माहौल दे सकती हैं।

Tariq Azmi
Chief Editor
PNN24 News

उन्होंने कहा कि वो एक एनजीओ चलाने वाली महिला को फटी हुई जींस पहने हुए देखकर हैरान थे और इस बात को लेकर चिंता में थे कि वो समाज में किस तरह की मिसाल पेश कर रही थी। उन्होंने कहा कि, ‘अगर इस तरह की महिला समाज में लोगों से मिलने जाएगी, उनकी समस्या सुनने जाएगी, तो हम अपने समाज, अपने बच्चों को किस तरह की शिक्षा दे रहे हैं? यह सब कुछ घर से शुरू होता है। हम जो करते हैं बच्चे वही सीखते हैं। अगर बच्चे को घर पर सही संस्कृति सिखाई जाती है तो वो चाहे कितना भी मॉडर्न बन जाए, कभी जिंदगी में फेल नहीं होगा।’

उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां पश्चिम के देश भारत के योग और अपने तन को ढंकने की परंपरा को देखते हैं, वहीं ‘हम नग्नता के पीछे भागते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘कैंची से संस्कार- घुटने दिखाना, फटी हुई डेनिम पहनना और अमीर बच्चों जैसे दिखना- ये सारे मूल्य बच्चों को सिखाए जा रहे हैं। अगर घर से नहीं आ रहा है, तो कहां से आ रहा है? इसमें स्कूल और टीचरों की क्या गलती है? में फटी हुई जींस में, घुटना दिखा रहे अपने बेटे को लेकर कहां जा रहा हूं? लड़कियां भी कम नहीं हैं, घुटने दिखा रही हैं, क्या ये अच्छी बात है?’

भले ही तीरथ साहब ने यहाँ तक ही कहा मगर उनके एक मंत्री जी ने तो उस सीमा को और आगे लेजाकर नई सीमाए तैयार कर दिया। तीरथ साहब के नए मंत्री गणेश जोशी ने बयान दिया कि महिलाओं को अच्छे बच्चे पालने-पोसने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘महिलाएं बात करती हैं कि वो जीवन में क्या-क्या करना चाहती हैं लेकिन उनके लिए सबसे जरूरी है कि वो अपने परिवार और अपने बच्चों का खयाल रखें।’

अब बात इस बात पर शुरू कर दिया जाये तो तीरथ साहब ये सीरत की असल में बात है। महिलाये फटी जींस पहने तो उनकी सीरत पर पुरुष प्रधान समाज उंगलियाँ उठा रहा है। वही खुद का बेटा इंकल रिब जींस पहन कर आधे पिछवाड़े को दिखाता चलता है उसकी सीरत पर सवाल क्यों नही होता है। एक बेटा नग्नता कर रहा है तो वह फैशन है और एक बेटी फटी जींस पहने है तो वह सवालो के घेरे में आ जायेगी। आखिर किस सीरत का बयान हम कर रहे है। बेशक महिला घर की जीनत होती है मगर क्या महिला के उसके खुद के अरमान नही हो सकते है। यदि आज यही सब पूरी दुनिया ने सोचा होता तो शायद कमला हैरिस घर में रोटियां पका कर खिला रही होती। शर्मीला इरोम चानू का नाम न होता।। इंद्रा गाँधी ने परिवार में बच्चो की परविश भी किया और मुल्क को भी संभाला। ये मॉडर्न युग की बात है।

अब अगर पुरातन और धार्मिक स्तर पर देखे तो माता पार्वती ने जहा परिवार का पालन किया वही पूरी श्रृष्टि को भी उन्होंने परिवार के तरह पाला। आखिर महिला को पुरुष प्रधान समाज किस निगाह से देखता है। नाज़ुक, अबला नारी के रूप में देखने की हमारी आदत क्यों पड़ गई है। एक ज़िम्मेदारी के पद पर तीरथ साहब आप है। हम सीरत की बात करे तो बेहतर होगा। आपके शब्द समाज को नई राह देते है। आपके शब्द संतुलित हो और समाज को पथ प्रदर्शित करे। न कि महिलाओं के पहनावे पर आपकी प्रतिक्रिया हो।

हम जितना सबक बेटियों को देते है उतना सबक बेटो को क्यों नही देते है। आखिर बेटे क्या कोई ख़ास सुरखाब का पर लगाये हुवे है। एक बेटा सिर्फ एक कुल का चराग-ए-सुखन होता है। जबकि बेटी एक नही बल्कि दो दो कुलो को रोशन करती है। बेटी के भी अपने अरमान होते है। उनको भी अपने भविष्य का सपना देखने का पूरा अधिकार है। वह भी पूरी दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा है। बेटियों को भी अपने सपनो को साकार करने का पूरा अधिकार है। 21 सदी का 21 साल गुज़र चूका है। क्या इस बालिग हो चुकी 21 सदी में भी ऐसी सोच हो सकती है। बेशक हमको सीरत की बात करनी चाहिए। न की सूरत की।

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