वाराणसी के पत्रकार राजू प्रजापति की असमयिक मृत्यु पर विशेष – ये कैसी रुखसती है, ये क्या सलीका है ?
तारिक आज़मी
वाराणसी। वो जब भी जहा भी देखता था बड़े ही सम्मान के साथ मेरे पास आ जाता था। “भैया कैसे है, आइये चाय पी ले, अरे कभी हम छोटे भाइयो के साथ भी बैठ जाया करे।” उसके शब्द ही कुछ ऐसे रहते थे कि बिना इच्छा के भी चाय पी लेना पड़ता था। मुलाक़ात होने पर देश दुनिया से सम्बन्धित काफी बाते करता था। उसका एक शब्द जो सबसे ज्यादा मोहित करता था वो था “आप बड़े भाई है,हमको बस इतना पता है।” इस एक शब्द से तो दुनिया की तमाम खुशियाँ इसी एक शब्द में सिमट का आ जाती है। और जब चलने का वक्त आता तो ज़रूर कहता था, “आज्ञा है भैया चलू?”
नाम उसका राजू प्रजापति था। एक दैनिक समाचार पत्र का स्थानीय पत्रकार था। हर मुलाकात पर चलते वक्त ज़रूर पूछने वाला कि “भैया आज्ञा है चलू।” आज इस संसार को हम सबको छोड़ कर चला गया और एक बार भी नहीं पूछा कि “भैया आज्ञा है चलू।” आज सुबह ह्रदय गति रुक जाने के कारण वह इस संसार को हम सबको छोड़ कर चला गया। राजू, हे राजू, ये कैसी रुखसत थी ? क्या क्या सलीका था ? आज इतनी दूर जा रहे थे तो एक बार भी नही पूछा कि “भैया आज्ञा है चलू।”
बड़ा भाई मानकर सम्मान देते थे हमेशा, आज तक मैंने तुम्हे कभी नही रोका, कभी नही टोका था। मगर आज तुमने पूछा होता कि “भैया आज्ञा है चलू, तो पक्का मैं तुम्हे जाने की इजाज़त नही देता, तुमसे कहता कि हर बार मुलाकात पर कहते हो कि बिटिया को सेटल करना है। आज बिटिया को सेटल करने के पहले कहा जा रहे हो ? मैं ज़रुर कहता कि बड़ा बेटा अभी सिर्फ 24 का हुआ है। उसका भविष्य अभी पूरी तरह सुरक्षित नही है। फिर कहा जाने को कह रहे हो ? मैं ज़रुर कहता कि अभी गृहस्थी कच्ची है, फिर कैसे इन सबको रोता बिलखता छोड़ के जा सकते हो राजू ?
आज ऐसे सफ़र पर चले गए तुम कि वहा से वापस कोई नहीं आता है। हर बार गले मिल कर जाते थे। आज जाने के पहले गले भी नही मिले। ये कैसी रुखसत है, रुखसती का क्या सलीका है आखिर कि बिना किसी इजाज़त और गले मिले बगैर इतनी दुर यात्रा पर चले गए हो। यार तू याद बहुत आएगा, जब भी मुझको ज़रूरत रहती थी आस पास की किसी खबर पर इनपुट की तो मैं बिना हिचक तुम्हे ही फोन करता था। हमेशा मेरे एक फोन पर अगर इनपुट नही भी रहती थी तो स्पॉट पर जाकर डिटेल देते थे। अब तुम ही बताओ किसको फोन करके कहूँगा। मेरी एक घंटी पर फोन हमेशा उठाते थे। देखो न, अभी तुमको आँखे बंद किये हुवे चंद घंटे भी नही गुज़रे है और मेरा फोन बज रहा है, कोई नही उठा रहा है राजू, हो सके तो अपने इस भाई के लिए वापस आ जाओ न राजू। बहुत याद आयोगे तुम।
इस आखरी सफ़र में तुम्हे क्या तोहफा दू समझ नही आ रहा है। ऐसा सफ़र है कि मुझको पता है मैं लाख बुलाऊ तुम वापस नही आ सकते हो। ईश्वर तुम्हे स्वर्ग में जगह दे। तुम्हारी आत्मा का आज परमात्मा से मिलन हुआ है। आत्मा को शांति प्रदान करे। तुम्हारे परिवार को इस दुःख की बेला में सहनशक्ति प्रदान करे। तुम्हारे बच्चे तुम्हारे सपनो को साकार करे। आखरी सफ़र का नमन स्वीकार करो राजू।