अफगानिस्तान के हालात पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ – काका हमसे कहिन है कि पईसा बोलता है बबुआ, देखो न, अशरफ गनी हेलीकाफ्टर से पईसा लेकर भाग गवा
तारिक आज़मी
पिछले दो दिनों से हर एक मीडिया पर अफगानिस्तान के हालात छाए हुवे है। एक तरफ अमेरिकन सेना ने अफगानिस्तान को अलविदा कहा तो तालिबान ने खुद का कब्ज़ा पुरे अफगानिस्तान पर जमा डाला। इस दरमियान काबुल तो ऐसा लगा जैसे अफगानी फौजों ने तालिबान को थाली में सजा कर पेश कर दिया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी धीरे से बिना लड़े सरक लिए और अज्ञात देश निकल गए है। अफगानिस्तान के जो हालात सामने आ रहे है वह काफी अफरा तफरी वाले है।
पुरे विश्व की निगाहें अफगानिस्तान पर है। बेशक, काबुल से तालिबान ने कहा है कि वह बदले की निति से काम नही करेगा और लोगो को माफ़ी देगा। मगर तालिबान की जबान पर भरोसा किसी को नही है। हद तो तब है जब हमारे काका को भी तालिबान की जबान पर भरोसा नही था। सुबह सुबह दम्मादार हो गए और कहने लगे कि “देखा बबुआ, हम कहते रहे न कि पईसा बोलता है। अरे ऊ अर्थशास्त्री रहा, अपना हिस्सा का अर्थ बटोर कर हेलीकाफ्टर में भर के भाग गवा। देश की चिंता नाही रही ओके।” बतिया तो काका की 100 आना दुरुस्त रही। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी बिना किसी विरोध के बिना लड़े तालिबान को काबुल गिफ्ट में दे दिया।
अफगानिस्तान से भागते हुए राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने हेलीकॉप्टर में ठूंस-ठूंस कर पैसा भरा। जगह की कमी के चलते नोटों से भरे कुछ बैग रनवे पर ही छोड़ने पड़े। इस बात का दावा एक रूसी मीडिया ने अपनी खबर में किया है। काबुल पर तालिबान के कब्जे के साथ ही अमेरिकी समर्थित गनी सरकार गिर गई और राष्ट्रपति भी सामान्य लोगों की तरह देश छोड़ कर भाग खड़े हुवे। कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक गनी अफगानिस्तान से भागकर संभवत तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान गए हैं। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।
अब आप समझे। अशरफ गनी को भागना क्यो पड़ा। अमेरिकन सेना के द्वारा 2 लाख अफगानिस्तानी सैनिको को पूरा प्रशिक्षण दिया गया था। उनके पास असलहे भी तालिबान से कम नही थे। तालिबानी लडाको से ज्यादा ट्रेनिंग भी अफगानिस्तान सेना के पास थी। इसको केवल आप हिम्मत की कमी और पैसो की भूख कह सकते है। आखिर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति को इतनी भी भागने की क्या जल्दी थी। सत्ता हस्तांतरण होना था तो आमने सामने हो सकता था। अगर हम ये भी मान ले कि तालिबानियों द्वारा खुद की गिरफ़्तारी अथवा खुद के क़त्ल से बचना चाहते थे अशरफ गनी तो फिर ऐसे इतनी रकम लेकर भागने की क्या ज़रूरत थी। आखिर कफ़न में जेब तो होता नही है। फिर क्या करेगे इतना पैसा।
युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान से भागते हुए राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने हेलीकॉप्टर में ठूंस-ठूंस कर नकदी भरी, लेकिन जगह की कमी के कारण नोटों से भरे कुछ बैग रनवे पर ही छोड़ने पड़ गए। राष्ट्रपति देश-विदेश के सामान्य लोगों की तरह देश छोड़ने पर मजबूर हो गए। या फिर दुसरे शब्दों में कहे कि तालिबान से लड़ने के बजाये राष्ट्रपति उसको अपनी पीठ दिखा कर भाग खड़े हुवे।
काबुल स्थित रूसी दूतावास का हवाला देते हुए रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ‘तास’ ने खबर दी है कि 72 वर्षीय राष्ट्रपति गनी नकदी से भरा हेलीकॉप्टर लेकर काबुल से भागे है। खबर में दूतावास के एक कर्मचारी के हवाले से कहा गया है, ‘‘उनके (गनी के) शासन के समाप्त होने के कारणों को, गनी के वहां से भागने के तरीके से जोड़कर देखा जा सकता है। चार कारें नकदी से भरी हुई थीं और उन्होंने सारा पैसा हेलीकॉप्टर में भरने की कोशिश की, लेकिन सारी नकदी हेलीकॉप्टर में नहीं भरी जा सकी और उन्हें कुछ नकदी रनवे पर ही छोड़नी पड़ गई।” हालांकि, तास ने दूतावास के कर्मचारी का नाम नहीं दिया है, लेकिन रूसी दूतावास की प्रवक्ता निकिता इशेंको के हवाले से रूसी वायर सेवा ‘स्पूतनिक’ ने खबर दी है कि काबुल से भागने के दौरान गनी के काफिले में नकदी से भरी कारें शामिल थीं। इशेंको ने कहा, ‘‘उन्होंने सारा पैसा हेलीकॉप्टर में भरने की कोशिश की लेकिन जगह की कमी से ऐसा नहीं हो पाया। कुछ पैसा रनवे पर ही रह गया।”
अफगानिस्तान छोड़ने के बाद अपने पहले बयान में गनी ने रविवार को फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा। राष्ट्रपति ने लिखा है कि उनके सामने दो ‘‘मुश्किल विकल्प” थे, पहला राष्ट्रपति भवन में घुसने की कोशिश कर रहे ‘हथियारबंद तालिबान’ और दूसरा ‘‘अपने प्रिय देश को छोड़ना, जिसकी रक्षा में मैने अपने जीवन के 20 साल लगा दिए। अगर फिर से अनगिनत संख्या में देश के नागरिक शहीद होते और काबुल में विध्वंस ही विध्वंस होता तो करीब 60 लाख की आबादी वाले शहर के लिए उसका परिणाम बेहद घातक होता। तालिबान ने मुझे हटाने का फैसला कर लिया था, वे यहां काबुल और काबुल के लोगों पर हमला करने आए हैं। ऐसे में रक्तपात से बचने के लिए, मुझे वहां से निकलना ही मुनासिब लगा।”
पेशे से शिक्षाविद और अर्थशास्त्री गनी को अफगानिस्तान की जनता ने 20 साल तक विश्वास के साथ उनका समर्थन किया था। वह अफगानिस्तान के 14वें राष्ट्रपति थे। पहली बार 20 सितंबर 2014 और दूसरी बार 28 सितंबर, 2019 में वह राष्ट्रपति चुनावों में जीत हासिल कर पद पर आसीन हुए थे। अब अगर गनी कहते है कि खूनखराबे से बचने के लिए वह देश छोड़ कर चले गए तो फिर उनको इतने पैसो की क्या ज़रूरत थी। आखिर दो वक्त की रोटी वो किसी यूनिवर्सिटी में रहकर वहा पढ़ा कर भी कमा सकते थे। अगर सपाट लफ्जों में कहा जाए तो शायद तालिबान से लड़ने अपर गनी इतनी रकम लेकर न भाग पाते। ये रकम उनकी खुद की जागीर थी या फिर आवाम और मुल्क का पैसा था ये तो गनी का ज़मीर ही बता सकता है।
वैसे हमारे काका सही कहते है कि पईसा बोलता है। अगर ऐसा नही होता तो गनी शायद अपने उस आवाम के लिए खुद की जान कुर्बान कर देते जिसने उनको समर्थन दिया। जिसने उनके ऊपर भरोसा जताया। जिसने उनके लिए तालिबान के मुखालिफ होकर काम किया। आज उस भरोसे को तोड़ कर एक शिक्षाविद और अर्थशास्त्री अशरफ गनी फरार हो गये। इसको सिर्फ उनकी बुजदिली कहा जायेगा और कुछ ख़ास नही। कम से कम देश भक्त तो नही ही कहा जायेगा।