बोल शाहीन के लब आज़ाद है तेरे – कोरोना को लेकर हमारी ये लापरवाही, कही न पड़ जाए हम सबको भारी

शाहीन बनारसी संग ए जावेद

वाराणसी। सुबह सुबह सोकर उठने पर आईसीएमआर रिपोर्ट देखने की ऐसी आदत पड़ गयी है जैसे डेली न्यूज़ पेपर पढने की। आईसीएमआर रिपोर्ट खबरनामे की उस खबर के तरीके से होती जा रही है। जिसको हम पढना नहीं चाहते है। मगर पढना पड़ता है। आज सुबह आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में पिछले 24 घंटे में 38,667 नए कोरोना केस मिले है। इसको पढ़कर दिल धक से हो गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना का कहर खत्म नही हुआ है।

आप समझिये इस बात को हम और आप केवल एक संख्या है। सिर्फ संख्या की तय्दात बढती है। मृतकों की भी संख्या पिछले 24 घंटो में आप देखे। 478 कुल मिला कर अगर देखा जाए तो 4 लाख 30 हज़ार से भी ऊपर हो गई है ये तय्दात। मगर आप इस बात को भली भांति समझे कि ये महज़ एक सख्या है। हम और आप है इस सख्या में। हमारे अपने अज़ीज़ करीब है इस संख्या में। मगर आकड़ो के लिए सिर्फ एक ताय्दात है ये। इस तय्दात को बढ़ाना घटना हमारे हाथो में है।

लेखिका शाहीन बनारसी एक युवा पत्रकार है

लॉक डाउन खुला तो ऐसा लगा कि जैसे हम कैद से आज़ाद हो गए है। पिछले बार जब लॉक डाउन खुला था तो हम ऐसे ही आज़ादी महसूस कर रहे थे। न मास्क, न दो गज की दुरी। बस घूमना था हमारे लिए ज़रूरी। नतीजा हमारे सामने आया था। कब्रिस्तानो पर जगहे कम पड़ने लगी थी। भूले नही होंगे आप जब शमशान घाटो पर भी लाइन लगाना पड़ा था। आक्सीज़न के लिए वो जद्दोजेहद, अस्पताल की भागदौड़। मगर आप और हम शायद ये सब कुछ भूल चुके है। मुश्किल वक्त आने पर सरकार को कोसना हमारी फितरत बनती जा रही है। हम खुद कितना इन मुसीबतों से बचे है, ये हमारा दिल जानता है।

देखे न, घर के बाहर अपने सहकर्मी ए जावेद के साथ निकली तो देखा कल्लन चाचा मुह बाए ऐसा खड़े है जैसे लग रहा है कि कोरोना को पान के साथ चबा जायेगे। थोडा आगे बढ़ी तो लल्लू मामा दिखाई दे गये। अरे वही लल्लू मामा जो बाबु के बाऊ है। उनको तो बिना चुनमुन की पुडी खाये पेट नही भरता है। देखे मास्क है और न हो कोई दो गज की दुरी, उनके लिए है बस पुडी खाना ज़रूरी। रही बात कोरोना की तो उन्हें कोरोना मिलेगा तो पटक के मारेगे ऐसा कि कोरोना पाकिस्तान भाग जायेगा। आप हमारी बात पर दो तीन बार जोर जोर से हंस सकते है।

आगे बढ़ते है, हम मार्किट पहुच चुके है। मार्किट की भीड़ देखे। न दुरी और न मास्क ज़रूरी के फंडे पर ये भीड़ गज़ब ढहाने को तैयार है। भीड़ ऐसी है जैसे लगता है कदमो के नीचे कोरोना को कुचल कर मार डालेगे। इसको आप हलके में न ले। बनारसी भीड़ है, कुछ भी कर सकती है। मैंने अपने सहकर्मी ए जावेद से कहा कि “इन लोगो के पास गाडी है, महंगे कपडे है, मोबाइल महंगा है, पैसा है, दौलत है,” तभी जावेद ने कहा कि “बस मास्क नही है बकिया सब कुछ है।” देखे न कतवारू चौरसिया की बहु तो मास्क के बजाये मुह दुपट्टा से ऐसा ढके है कि जैसे कोरोना नही बल्कि भसुर से डर रही हो। ये हालात आपको सिर्फ एक दो जगह नही बल्कि पुरे शहर-ए-बनारस में दिखाई देंगे।

हमारी लापरवाही बढती जा रही है। जो ढेर पढ़े लिखे है और अंगूठा लगा के काम चला लेते है, उनका तो छोड़े बल्कि पढ़े लिखे भी उसी भीड़ में खड़े दिखाई दे रहे है। सेनेटाइज़र का इस्तेमाल करना चाहिए ऐसा सुना गया। मगर दुकानों पर रखे सेनेटाईजर का प्रयोग तो लोग दूर रहा उलटे दुकानदार ढेर समझदार हो गए है एक बोतल पानी में दुई बूंद डेटाल डाल कर रख दिए है। असल में उनको क्या है, उन्हें तो बस कोरम पूरा करना है। हमको क्या है हम केवल खरीदारी करना चाहते है। ध्यान रखे। दुनिया से सभी वैज्ञानिक चिल्ला रहे है कोरोना की थर्ड वेव के लिए। हम स्टील के नही बने है। हमारी लापरवाही हमको भारी पड़ सकती है। बस एक बात समझे जान है तो जहान है।

हम वापस आ रहे थे। पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे थे। हमारे सहकर्मी ए जावेद ने बाबा रेस्टूरेंट की बिरयानी खाने की बात कही और गाडी वही रोक दिया। हम गाड़ी से उतरते है। बाबा रेस्टुरेंट रिजवान मियाँ का है। रिजवान साहब बड़े सभ्य और शालीन है। हाई बीपी पेशेंट भी है। बेशक उनकी बिरयानी काफी मशहूर है। सीढ़ी उतरते ही देखा कि रिजवान भाई सामने खुद काउंटर पर बैठे थे। मास्क था उनके चेहरे पर मगर उससे मुह और नाक नही ढकी थी बल्कि ठोड़ी पर टंगा हुआ था। शायद उनके लिए कोरोना मुह नाम से नही दाढ़ी से अन्दर जा सकता है। खुद सोचे कितने लापरवाह हम हो गए है। उसके बाद जब हालात बिगड़े तो कोसना भी हमे खूब आता है। बस अपनी कमी नही देखते है।

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