सपा के पम्मी जैन से नही मिला इत्र कारोबारी का कोई सम्बन्ध, डीजीजीआई ने माना बरामद रकम को टर्नओवर का मामला, अदालत में दाखिल दस्तावेजों से हुई पुष्टि
आदिल अहमद संग शाहीन बनारसी
कानपुर डेस्क। सपा के पम्मी जैन से इत्र कारोबारी का कोई सम्बन्ध नहीं मिला है। इत्र कारोबारी पियूष जैन के आनंदपुरी आवास से मिले 177.45 करोड़ रुपये की नकदी को डीजीजीआई (महानिदेशालय जीएसटी इंटेलीजेंस) ने अहमदाबाद टर्नओवर की रकम माना है। डीजीजीआई ने इसकी पुष्टि अपनी ओर से कोर्ट में दाखिल किये दस्तावेजो से की है। कर विशेषज्ञों का कहना है कि जानबूझकर या अनजाने में अफसरों ने केस को कमजोर कर दिया है। आयकर विभाग भी काली कमाई के मामले में कार्यवाही नहीं कर पायेगा।
बताते चले कि 22 दिसंबर को डीजीजीआई अहमदाबाद की टीम ने शिखर पान मसाला, ट्रांसपोर्टर प्रवीण जैन और फिर इत्र कारोबारी पीयूष जैन के ठिकानों पर छापा मारा था। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि शिखर पान मसाला के मालिक ने इत्र कारोबारी की कंपनी से बिना बिल के बड़े पैमाने पर कंपाउंड खरीदा था। इसकी पुष्टि गुजरात में पकड़े गए चार ट्रकों हुई। इसके बाद कार्यवाही को अंजाम दिया गया। पीयूष को पहले हिरासत में लिया गया और शुक्रवार रात गिरफ्तारी दिखाई गई थी।
पीयूष जैन ने पूछताछ के दौरान ने बताया था कि जो नकदी उसके आनंदपुरी स्थित आवास से मिली है, वह 4-5 साल में कंपाउंड कारोबार से कमाई गई है। उसने यह भी स्वीकार किया कि 177 करोड़ की नकदी पर कर नहीं अदा किया। हालांकि, आय किससे और कहां से हुई, इस संबंध में वह कोई दस्तावेज डीजीजीआई के सामने प्रस्तुत नहीं कर सका। इसके बाद भी अफसरों ने उसके बयान को आधार बनाकर कर चोरी का केस बनाकर कोर्ट में पेश कर दिया।
इसमें 31.50 करोड़ टैक्स चोरी की बात कही गई। टैक्स पेनाल्टी और ब्याज मिलाकर यह रकम 52 करोड़ रुपये बैठती है। कर विशेषज्ञों का कहना है कि 177 करोड़ कैश बरामदगी मामले में डीजीजीआई को केस न बनाकर आयकर को कार्यवाही करने और सीज करने के लिए बुलाना चाहिए था। इससे यह काली कमाई का मामला बनता और पूरी रकम पर टैक्स, पेनाल्टी और ब्याज लगता, जो 100 करोड़ से ज्यादा का होता। डीजीजीआई की चूक ने केस को बहुत कमजोर कर दिया है।
डीजीजीआई ने पीयूष का ट्रांजिट रिमांड भी नहीं मांगा। ऐसे में पीयूष आसानी से बाहर आ सकता है। वहीं इस मामले में शिखर पान मसाला पर केवल 3.09 करोड़ की कर चोरी का ही मामला बनाया गया है। इसकी देनदारी स्वीकार करके भुगतान भी कर दिया गया है। पान मसाला में कंपाउंड का विशेष महत्व होता है। इसका स्वाद और सुगंध आम पब्लिक को लग गया तो पान मसाला बंपर बिकता है। सूत्रों के अनुसार शिखर पान मसाला को पीयूष अपने कारोबार का 85 फीसदी कंपाउंड सप्लाई करता था। इसकी जानकारी डीजीजीआई टीम को पान मसाला कारोबारी के बही खातों में भी मिली है।
हालांकि, पीयूष ने अपने बयान में बताया है कि वह किस-किसको कंपाउंड सप्लाई करता है, उसे याद नहीं है। ऐसे में तमाम तरह की चर्चाएं हैं। सूत्रों का दावा है कि पीयूष जैन एक बड़ी पान मसाला कंपनी को कंपाउंड की सप्लाई करता था। इसका कंपाउंड उपयोग में लाने के बाद कंपनी का कारोबार नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया। इस बीच, पान मसाला कंपनी के मालिक से मनमाने रेट वसूलने लगा। इसके बाद दोनों के बीच डील हुई। इसमें पीयूष ने पान मसाला में उपयोग में लाए जाने वाले कंपाउंड का फार्मूला सौ करोड़ रुपये लेकर बेचा। संभावना है कि 177 करोड़ की नकदी उसी रकम का बड़ा हिस्सा हो। सूत्रों ने बताया कि फार्मूला मिलने के बाद कारोबारी ने पीयूष से खुन्नस मान ली थी।
इसी के चलते उसे फंसाने का खेल रचा गया। इसमें कुछ अफसर भी शामिल हो सकते हैं। डीजीजीआई की अब तक की जांच में पीयूष जैन का इत्र कारोबारी और सपा एमएलसी पुष्पराज जैन उर्फ पम्पी से कोई संबंध सामने नहीं आया है। दोनों एक ही कारोबार में हैं जरूर, लेकिन अलग-अलग काम करते हैं। पम्पी जैन का कारोबार देश के अलग-अलग हिस्सों में फैला हुआ है।