वाराणसी दक्षिणी विधानसभा सीट पर रोचक और कांटे की टक्कर होने की पूरी सम्भावना, आसान नही लगती इस बार राह
तारिक़ आज़मी
वाराणसी दक्षिणी विधानसभा सीट पर अभी तक तीन प्रत्याशियों की घोषणा से इस सीट पर लड़ाई रोचक और काटे की टक्कर वाली दिखाई दे रही है। इस बार भाजपा के लिए यहाँ जीत की राह आसान नही दिखाई दे रही है। इस सीट पर 1989 से भाजपा का कब्ज़ा रहा है। इसको भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है। यहाँ से श्याम देव राय चौधरी दादा 7 बार लगातार चुनाव जीते है। मगर इस बार अब तक घोषित प्रत्याशियों को देखे तो भाजपा की राह आसान नही दिखाई दे रही है।
इस सीट का समीकरण देखे तो यहाँ मुस्लिम, ब्राह्मण, यादव तथा व्यापारी वर्ग के मतों की बहुतायत है। इस सीट पर भाजपा का कोर वोटर ब्राह्मण और व्यापारी वर्ग रहा है। वही मुस्लिम मतदाताओ के साथ यादव मतो का भी समीकरण कई बार प्रयास के बावजूद हारा है। वही इस सीट पर भले वर्ष 2017 में थोडा कड़ी टक्कर हुई थी और यहाँ से विधानसभा डॉ नीलकंठ तिवारी पहुचे थे और पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्रा 17 हजार से अधिक मतो से हारे थे। मगर इसके पूर्व 1989 से अगर 2012 तक के इतिहास को देखे तो यहाँ से दादा की जीत लगभग एकतरफा होती रही है।
इस बार अभी तक घोषित प्रत्याशियों में आम आदमी पार्टी के अजीत सिंह है। वही भाजपा ने डॉ नीलकंठ तिवारी पर दुबारा विश्वास जताया है। इस सीट पर आज घोषित सपा की लिस्ट में किशन दीक्षित को प्रत्याशी बनाया गया है। वही अभी तक बसपा और कांग्रेस ने अपने पत्ते नही खोले है। अभी तक के जिन प्रत्याशियों के नाम सामने है यदि गौर किया जाए तो दो बार के पार्षद रहे अजीत सिंह पक्के मुहाल से सम्बन्धित है और अपने क्षेत्र में किये गए विकास कार्यो को अपनी उपलब्धि बताते हुवे चुनाव मैदान में है। वही डॉ नीलकंठ तिवारी भी वाराणसी के विकास कार्यो की चर्चा करेगे। सपा के किशन दीक्षित अपने संघर्षो और युवाओ में अपनी पैठ की भी चर्चा करेगे।
अब अगर दुसरे नज़रिए से देखे तो पक्के मुहाल में भाजपा का गढ़ रहा है। जहा से अजीत सिंह चुनाव मैदान में है। यहाँ से अजीत सिंह का पूरा प्रयास रहेगा कि वह पक्के मुहाल से अधिक से अधिक मत अपने पाले में कर सके। वही दूसरी तरफ़ किशन दीक्षित ब्राह्मण मतो को अपने तरफ करने का पूरा प्रयास करेगे। अब अगर इन दोनों के प्रयास को देखे तो ये भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाने जैसा होगा। इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा मतदाता वर्ग आता है अल्पसंख्यक समुदाय। अल्पसंख्यक मतों के दावे इस बार आम आदमी पार्टी भी कर रही है वही कांग्रेस भी उनका रुझान अपने तरफ करने के प्रयास में रहेगी। सपा के कोर वोटर होने से समाजवादी पार्टी भी अपने पुरे प्रयास में रहेगी कि उसके कोर वोटर कही न हिले।
अभी तक के उभरे सियासी सीन को देखा जाए तो इस बार भाजपा की राह उतनी आसान नही दिखाई दे रही है। मगर फिर भी आपको ध्यान दिलाते चले कि ये सियासत है। कब किस करवट हो इसका पूर्व अनुमान कई बार फेल होता रहा है। अभी तक तो इस सीट पर रोचक मुकाबला देखने को मिलने की सम्भावनाये दिखाई दे रही है। बताते चले कि 10 फरवरी को इस सीट के लिए अधिसूचना जारी होगी और मतदान 7 मार्च को होंगे। परिणाम 10 मार्च को आयेगे।