तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: तुम नफरतो की तिजारत करते रहो, यहाँ मुहब्बत अपनी खुद जगह बना लेती है, देवा के अंतिम संस्कार हेतु सिर्फ पैसे ही नही बल्कि ताहिर, अनस, साबिर आदि ने अर्थी को कन्धा भी दिया
तारिक़ आज़मी
कानपुर: स्थान था कानपुर के घंटाघर स्थित बाबूपुरवा। चार कंधो पर एक अर्थी थी। “राम नाम सत्य” है के वचन बोले जा रहे थे। अर्थी देख मौत का खौफ हर किसी की आँखे नम कर देता है। मगर इंसानियत और मुहब्बत इस अर्थी को देख कर फक्र से अपना सीना चौड़ा किये हुई थी। अर्थी जिन कंधो पर थी, उनके सबके सर पर टोपी थी। सभी रोज़े से थे और सभी उसके पहले नमाज़ पढ़ कर निकले थे। जिसकी नज़र पड़ी सबने बरबस यही कहा कि “वाह ये है इंसानियत।” नफरते जितनी भी अपनी खेती कर ले, मगर मुहब्बत अपने फुल खिलाने में कामयाब हो ही जाती है।
मामला कानपुर का है। कानपुर में गुरुवार को मानवता और सद्भावना की मिसाल कयाम करते हुवे जब एक अनाथ हिंदू का अंतिम संस्कार पड़ोसी मुस्लिम परिवारों ने किया। कानपुर के बाबूपुरवा स्थित अजीतगंज में 40 वर्षीय देवा उर्फ गुड्डू इसी मोहल्ले में रहकर आखिर अपनी पूरी ज़िन्दगी गुज़र किये थे। उसके निधन पर पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम परिवारों ने अंतिम संस्कार कराया। आर्थिक तंगी से गुजर रहे परिजनों की मदद करते हुए पड़ोसियों ने अर्थी तैयार कराई। शव को हिंदू कब्रिस्तान में दफन कराया। मृतक की आत्मा शांति के लिए मौन रखकर प्रार्थना भी की।
देवा को लोग मुहब्बत से गुड्डू भी कहते थे। उसकी शादी नहीं हुई थी। वह कभी रिक्शा चलाते थे, तो कभी मजदूरी करते थे। बुधवार को उनकी अपने ही घर के बाहर संदिग्ध हालात में मौत हो गई। घंटाघर में रहने वाली उसकी भाभी बबली अपने बेटे के साथ पहुंचीं। पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराया, जिसमें मौत का कारण स्पष्ट न होने पर बिसरा सुरक्षित किया गया। परिजनों के अनुसार देवा अक्सर बीमार रहते थे। पोस्टमार्टम के बाद पड़ोसियों मोहम्मद ताहिर, रजाउद्दीन, मोहम्मद अनस अंसारी, साबिर, मोहम्मद इस्लाम आदि ने हिंदू रीति-रिवाज से अर्थी को कंधा देकर शव को दफन कराया। यही नही आपस में चंदा कर अर्थी से लेकर अंतिम क्रिया का पूरा इंतजाम भी किया। यहाँ हमारे नाम लिखने का मकसद सिर्फ और सिर्फ उनको दिखाना है जो नाम में मज़हब तलाश लेते है।
अब आप चाहे तो चर्चा कर सकते है कि जाति, धर्म से बढ़कर इंसानियत होती है और अंत में इंसान ही इंसान के काम आता है। क्या फर्क पड़ता है कि कौन मरा, सिर्फ इतना जानते हैं इंसान की मौत हुई और इंसानियत के लिए ये काम किया गया। मगर ऐसी चर्चाये आप उनके सामने ज़रूर कीजियेगा जो नाम में मज़हब तलाश करते है। मरने वाला देवा था। अर्थी को कन्धा देने वाले अंतिम संस्कार करने वाले ताहिर, रजाउद्दीन, मोहम्मद अनस अंसारी, साबिर, मोहम्मद इस्लाम आदि थे। आप कह सकते है कि इससे क्या फर्क पड़ता है यहाँ तो सिर्फ एक शब्द में “इंसान” से काम चला सकते है। मगर नाम सिर्फ उनके लिए हम लिख रहे है जो नाम में मज़हब की तलाश करते रहते है।
हुजुर, नफरते अपनी लाख तिजारत कर ले, मुहब्बत अपनी बाज़ार खुद चमका बैठती है। वो सड़क पर धार्मिक मदहोशी में घुमती भीड़ के बीच शायद आपको कभी देवा या फिर अनस नही मिलेगे। देवा तो अनस के कंधो पर होकर आखरी सफ़र तय करता है। फिर कौन है ये भीड़ जो नफरतो की तिजारत कर रही है।