तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ: नीम्बू शरबत में स्वाद नही बढ़ा रहा है साहब, उसके दाम काका के दांत खट्टे कर बैठे
तारिक़ आज़मी
शाम का वक्त हो चला था। किचेन में इफ्तार के लिए तैयारियों का जोरो शोर था। पकौड़ी, घुघनी, छोले की खुश्बू एक साथ मिलकर एक नई दिलकश खुश्बू को ईजाद दे रही थी। पकवानो की खुश्बू कशिश पैदा करके इंसान को दस्तरख्वान तक खींच लाती है। बहुत थोड़े लम्हे बचे थे अज़ान-ए-मगरिब होने में। अचानक काकी की आवाज़ और काका के बुलंद अल्फाज़ नीम्बू को लेकर कुछ तस्किरा कर रहे थे। घर के इन दोनों बुजुर्गो की नोकझोक भी बड़ी दिलकश होती है। ये साबित भी करती है कि अर्धांगनी होने के वजह से पत्नी लड़ने की हकदार होती है और पति उस लड़ाई में हारने वाला निरीह प्राणी होता है।
बहरहाल, पत्नी की उत्पत्ति इस कलयुग में पति से लड़ने के लिए हुई है ये बात दीगर है। हम मुद्दे पर रहते है वरना काका अगर नाराज़ हो जायेगे तो सूत के धर देंगे। शरबत बनाने के डिपार्टमेंट काका और काकी के संयुक्त विभाग का होता है। जबकि इफ्तार के पकवान काकी के मार्गदर्शन में अन्य सदस्यों द्वारा होता है। पूरी ड्यूटी लगी रहती है। चाट का निर्माण काकी ने अपने निर्देशन में छोटी बहु को दे रखा है। इन सबकी सामग्री को एकत्र करके किचेन तक पहुचाने की ज़िम्मेदारी मेरे नाज़ुक कंधो पर है। सब्जी, फल और अन्य छिटपुट सामानों को लाने के लिए काका ने अपने मजबूत कन्धो का सहारा दे रखा है।
खैर, इफ्तार सामग्री दस्तरख्वान पर लग चुकी थी। ऊपर से काका की कानफाडू आवाज़ आ चुकी थी, “ए बबुआ चल इफ्तार का वक्त हो गया है।” सबसे आखिर में दस्तरख्वान के पास मैं ही पहुचता हु तो मामूर के अनुसार मैं भी पहुच गया। देखा सभी सदस्य इफ्तार के दस्तरख्वान पर थे और रब की बारगाह में अपनी-अपनी दुआये मकबूल करवाने में लगे थे। सबकी अपनी-अपनी तमन्नाये होती है। मैंने मन में सोचा कौन क्या मांग रहा होगा। शायद काकी और छोटकी बहु मांग रही होंगी कि “ए रब नमक किसी सामान में तेज़ या कम न हो”, बडकी बहु तो ईद पर सभी ज़िम्मेदारी सही ढंग से निपट जाए इसकी ख्वाहिशो को पूरा करवाने में लगी होंगी। सबसे मजेदार दुआ शायद मेरे छोटे मियाँ की होगी कि “सबकी हो गई, मेरी भी तो सुनो।”
मेरे जाने के महज़ एक दो मिनट बाद ही अज़ान हो गई। सभी के हाथो में खजूर आई और सभी प्यास से व्याकुल होते हुवे एक खजूर खाकर शरबत पर टूट पड़े। काका ने शरबत गटक कर कहा, नीम्बू की कमी रह गई। काकी ने आँखे तरेर कर ऐसे देखा कि काका सहम गए। वैसे काका माने या न माने काकी से खौफ खाते है। एक बार तो ढके लफ्जों में कह भी चुके है। काका की ख़ामोशी ने मुझको भी शरबत पीने की तलब जगा दिया। मगर सच बताता हु कि वाकई रूहअफज़ा में नीम्बू कम पड़े तो टेस्ट थोडा कम-कम सा लगता है। कुछ देर बाद इफ्तार सभी लोग कर चुके थे। सभी ने नमाज़ पढ़ी और फिर एक साथ बैठ कर बाते करने लगे।
काकी ने शांत हुआ गृहयुद्ध दुबारा शुरू कर दिया। उन्होंने निम्बू की बात निकाल ही डाली और कहा कि क्या कहा था “शरबत में नेम्बू कम है?” ये बताओ दो निम्बू नन्हा-नन्हा सा लाये थे और दोनों मैंने निचोड़ डाला। चार-चार बूंद उसके रस निकले थे। अब मै क्या कर सकती हु खुद बताओ। काका तो सहम गए थे काकी की बात सुनकर। काका ने अपनी हनक बरक़रार रखने के लिए आवाज़ की दहशत का सहारा लिया। बोले 12 रुपया का एक निम्बू था। अब क्या मैं निम्बू के अन्दर बैठा हु जो देखू कितने बूंद रस निकलेगा। काकी कहा दबने वाली उन्होंने भी धर कर सुना डाला कि तो फिर मुझको क्या कहते हो। मैं क्या निम्बू के साथ बोकला का भी रस निकाल लेती।
दोनों के वाक् युद्ध कही युक्रेन और रशिया के युद्ध में तब्दील न हो जाए इसके लिए मुझको ही अपना सर ओखली में देना पड़ा और मैंने कहा काका आओ न चलता हु सब्जी के दूकान पर देखता हु थोडा ढंग का निम्बू मिल जाए तो लेता आता हु दो तीन दिनों का एक साथ। काका समझ गए थे मेरी बातो को और शेरनी के मुह में जाने से बेहतर निकल लेना समझे और निकल पड़े हमारे साथ। मुझसे रजनीगंधा लेकर मुह में उड़ेलते हुवे बोले चलो तुमहू पसीना फेक डालो दाम सुनकर। हम थोड़ी ही देर में सब्जी की दूकान पर थे। जुम्मन मियां अपने मामूर के अनुसार दूकान पर हमारा खैरमकदम करते है। हमने देखा उनके बगल में निम्बू काफी अच्छे अच्छे और पीले-पीले रखे थे। बड़े-बड़े भी थी। हमने कहा “जुम्मन मियाँ छांट के जरा 20 निम्बू दे दो रसवाले। हमको लगा होगा 5 रुपया का एक निम्बू होगा, 20 के हो जायेंगे 100 रुपये।
जुम्मन मियाँ बड़े तन्मयता से नेम्बू छांट रहे थे। एक-एक निम्बू को ऐसे देख रहे थे जैसे निम्बू से पूछ रहे हो “क्यों बे तेरे अन्दर कितना रस है?” और निम्बू उनको जवाब दे रहा हो कि “सरदार एक लीटर शरबत के काम आ सकता हु।” नीम्बू छंट चुके थे और हमारे हाथ में 20 निम्बू का थैला था। हमने जुम्मन मिया से पूछा जुम्मन चचा कितना हुआ पैसा? जुम्मन मिया ने कहा भैया जो खरीद दाम है आप वही उतना दे दो कुल 300 रूपईया, 15 की खरीद है। हम तो फंस गए बड़ा निम्बू लाकर 10 और बचा है ये भी ले लो। कोई ले नही रहा है। कुल 450 मेरा खरीद दाम दे देना।
दाम सुन कर हमारे दिमाग ने कोमा में जाने की तैयारी कर रखा था मगर दिल थोडा मजबूत निकला और कलेजा मुह को आते हुवे दिमाग को कोमा में जाने से रोक लिया। मेरी हालत देख कर काका की हंसी ऐसे छुटी कि कल्लन मिया का सफ़ेद कुर्ता लाली लगा बैठा। कल्लन मिया बड़ी जोर से उछल पड़े और अमा संभल के कहकर मुस्कुरा रहे थे। कल्लन मिया और काका की पुरानी दोस्ती है और दोनों ही अपनी-अपनी पत्नियों से डरते है तो पति विकास समिति बनाने की कोशिश कर रहे है। वो तो जुम्मन मिया थोडा समझदार है और पत्नी की दो चार सुनकर काम चला लेते है वरना पति विकास समिति तो बन चुकी होती।
मेरी स्थिति इस समय ऐसी थी जैसे आप भीड़ के बीच में जा रहे हो और अचानक पैर फिसल जाए तथा आप गिर पड़े। पिछवाड़े पर बहुत जोर की चोट आये और दर्द बर्दाश्त से बाहर हो रहा हो मगर सहला भी नही सकते है और दांत अलग निपोरना पड़ता है। बस उसी तरह मेरे भी होंठो पर बेगैरती की हंसी थी वरना नीम्बू के दाम ने तो शाम को काका के दन्त खटास से भरे थे। अब मेरे भर दिए है। जेब से 500 की नोट निकाल कर जुम्मन चचा के हवाले करते हुवे खिजिया के कहा चचा बकिया के 50 रुपयों में इमली, धनिया, पुदीना दे देना। पुदीना ज़रूर देना। कान में गाने अपने आप ही बज रहे थे। “ले ले पुदीना ले ले पुदीना।” सच बता रहा हु दाम सुनकर निम्बू के, दिल कह रहा था, छूटे जो तुझको कही पसीना तो ले ले पुदीना ले ले पुदीना।
तब तक शाहीन बनारसी ए0 जावेद के साथ एक खबर करके इफ्तार करके वापस आ चुके थे। मुझको काका के साथ जुम्मन मियाँ के दूकान पर देख कर वही रुक गए। काका की ज़हरीली मुस्कराहट और मेरे चेहरे पर बेगैरती की हंसी देख कर दोनों समझ चुके थे कि कांड कोई बड़ा हो चूका है। हाथो में मेरे नीम्बू देख कर शाहीन बनारसी ने लगभग मेरी जान ही जला दिया था ये कहकर कि उसके घर पर निम्बू का पेड़ लगा है। अभी 20-22 निम्बू उसमे बचा है। वाकई इस वक्त शाहीन बनारसी बनारस की सबसे रईस पत्रकार दिखाई दे रही थी जिसके पास मुफ्त के 20-22 निम्बू थे। बगल से गुज़रते अपने भतीजे हाशिर मिया के हाथो में निम्बू का थैला थमाते हुवे लड्डू भाई के साथ मैंने चौराहे पर जाना बेहतर समझा था।
आप मेरी मनो स्थिति समझ सकते है। जेब पर ऐसा लग रहा था जैसे डाका पड़ा हो। वो भी ऐसा जैसे खुद कहा हो आओ मुझे लूट लो। नीम्बू के दामो ने दांत जबरदस्त खट्टे कर दिए थे। धीरे-धीरे चलता इस लिए जा रहा था कि कही इस दाम के सदमे में चक्कर न आ जाये। शाहीन और जावेद ऑफिस में बैठ कर अपनी कवर की हुई स्टोरी बना रहे थे। लगभग आधे घंटे बाद मेरी भी वापसी चाय शाय पीकर ऑफिस में हो चुकी थी। मगर कान से धुआ निकलने का क्रम कम नही हुआ था। कसम से दो दिन से लिख नही पा रहा हु ऐसा निम्बू के दाम का सदमा लगा है। अब तो तरबूज के दाम पूछने में भी रूह काँप जा रही है कि पिछले साल 10 रुपया किलो बिकने वाला तरबूज कही इस बार 25 रुपया न हो। खरबूजा तो दहशत पैदा कर रहा है। सेब में अडानी की तस्वीर दिखाई दे रही है। घर में ख़ामोशी सिर्फ इस लिए होगी कि कही ज्वालामुखी फुट न पड़े और फरमान जारी हो जाए कि बिना निम्बू के शरबत बनेगा अब। या फिर शरबत में निम्बू नही पड़ेगा और सामने रखा रहेगा सिर्फ तसव्वुर कर लेना है कि निम्बू है। शिकंजी का नाम भी कोई न ले।