एलजीबीटीक्यू समुदाय के नेतृत्व में बनारस में पहली बार आयोजित हुआ “क्वियर प्राइड वॉक 2022″। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच लैंगिक विषयों पर हुई खुलकर चर्चा
शाहीन बनारसी/करन कुमार
वाराणसी: आज दिनांक 30 जून 2022 को सारनाथ वाराणसी में एलजीबीटीक्यू समुदाय द्वारा “क्वियर प्राइड वॉक” और सभा का आयोजन हुआ है। ज्ञातव्य है की दुनिया भर में जून माह में इस समुदाय के लोग प्राइड माह के रूप में मनाते हैं। बनारस में यह आयोजन पहली बार हुआ है। आयोजन में प्राइड वॉक परम्परागत सतरंगी झंडे के तले किया गया। वॉक के बाद समुदाय के लोगों ने सारनाथ स्थित लोक विद्या आश्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया।
कार्यक्रम में लैंगिक विषयो पर जागरूकता के साथ साथ प्रेम करने की, एक साथ रहने की आज़ादी के लिए नारे लगाए गए। जागरूकता वाले जनगीत गाए गए। कार्यक्रम में लैंगिक विषयों पर चर्चा भी आयोजित हुई। कार्यक्रम में वक्ताओ ने नीति ने आयोजन क्या है ? बताते हुए कहा की लैंगिक सीमा से परे पुरुष का पुरुष से या स्त्री का स्त्री या फिर ट्रांसजेडंर से प्रेम करने की जो जैविक सम्भावना है उसे इंसानियत के तकाजे के तौर पर मनाने का त्यौहार है ‘ प्राइड वॉक ‘ । लैंगिक पसंद के चुनाव की आज़ादी के लिए दुनिया भर में जो लड़ाई लड़ी गयी उसको मनाने के लिए प्राइड माह का आयोजन जून माह में होता है।
अमेरिका सहित यूरोप के कई देशों में इसका आयोजन धूमधाम से हो रहा है। सन 1969 में अमेरिका में एक समलिंगी क्लब पर पुलिस ने हमला किया। लोगो को मारा पीटा , प्रतिउत्तर में समूचे क्षेत्र में अराजकता फ़ैल गयी। नागरिकों ने विरोध प्रदर्शन किये। प्रदर्शनकारियों ने मांग की की समुदाय के लोगो को सार्वजनिक स्थानों पर घूमने बैठने की आज़ादी दी जाए। एलजीबीटी के बारे में वक्ता ।रणधीर ने बताया की एल से लेस्बियन (स्त्री स्त्री जोड़ा), जी से गे (पुरुष पुरुष जोड़ा), बी से बायसेक्शुअल (पुरुष स्त्री दोनों के साथ सम्बन्ध में रहने वाला), टी से ट्रांसजेंडर (जन्म से या चिकित्सकीय पद्धति से अपना लिंग बदलवा चुके लोग) आदि लोग शामिल होते हैं। क्वीयर शब्द इस पूरे छतरी (अम्ब्रेला) का प्रतिनिधित्व करने वाला शब्द है। बनारस क्वीयर प्राइड ग्रुप उपरोक्त समुदाय के लोगो से सहानुभूति और समानुभूति रखने वाले नागरिक/समूहों/संगठनों का एक समन्वय है।
वक्ता मूसा भाई ने कहा की भारतीय संविधान में आर्टिकल 14 से 21 में जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा, अभिव्यक्ति, खानपान, पहनावे, धर्म, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन साथी आदि चुनने पाने की आजादी हर भारतीय नागरिक को है। इस के बाद किसी स्त्री या पुरुष को उसकी चॉयस की वजह से भेदभाव सहना पड़े ये असंवैधानिक बात है। बनारस में पहली बार हो रहे आयोजन के विशेष महत्व को रेखांकित करते हुए अगले वक्ता ने कहा की सोचने विचारने में खुलापन ताज़गी और जिंदादिली यंहा की जीवनशैली रही है। औघड़, योगी, बौद्ध और जैन सब यंहा फले फुले हैं। कबीर रैदास धूमिल भारतेन्दु प्रेमचंद्र जैसे क्रन्तिकारी रचनाकार इस जमीन की उर्वरकता को बतलाते हैं। ये जमीन भगवान शिव की है। शिव जो स्वयं नटराज है अर्धनारीश्वर और लिंग रूप भी हैं। विभिन्न विचार, व्यवहार, खानपान, पहनावे, पसंद और रूचिकी छूट, खुलापन और उसमे समन्वय की, एक साथ रहने सहजीवन की जो बात शिव के दर्शन में है वो सहिष्णुता समावेशिता ही बनारस का सन्देश और वक्तव्य है दुनिया के लिए। आयोजन में प्रमुख रूप से नीति, विजेता, रणधीर, धनंजय, मूसा आजमी, जिसानी, सलमां, अमन, अनुज, दीक्षा, साहिल, इंदु, राहुल, सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल रहे।