स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती: “अन्याय प्रतिकार यात्रा” की हिंसा आज भी नही भुला है शहर बनारस का अमन-ओ-सुकून
तारिक़ आज़मी
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद स्थित वज़ुखाने में मिली आकृति जिसको वादिनी मुकदमा पक्ष शिवलिंग बता रहा है और वही मुस्लिम समाज इसको फव्वारा बता रहा है के सम्बन्ध में अदालत मामले की सुनवाई कर रही है। इस दरमियान रोज़-ब-रोज़ कोई न कोई सनसनीखेज़ बयान सामने आ जा रहे है। इसी क्रम में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एलान कर दिया कि वह मस्जिद में जाकर जलाभिषेक करेगे और पूजा अर्चना करेगे। इसके बाद इस मामले में फिर से सनसनी फ़ैल गई और वाराणसी पुलिस कमिश्नरेट ने साफ़ साफ़ अपनी मंशा ज़ाहिर कर दिया कि किसी को भी शांति व्यवस्था से खिलवाड़ नही करने दिया जायेगा।
बहरहाल, एक बार फिर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती चर्चा का केंद्र है। विवादों और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कोई नया सम्बन्ध नही है बल्कि बहुत पुराना सम्बन्ध रहा है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा आयोजित प्रतिकार यात्रा को शहर बनारस तो अभी नही भुला होगा, जिसने शहर की फिजा को ख़राब करके धर दिया था। पथराव, आगज़नी जैसी घटनाओं से शहर की अमन-ओ-फिजा काँप उठी थी। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के बड़के जिले प्रतापगढ़ में जन्म लेने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं। अविमुक्तेश्वरानंद का नाम उमाशंकर है। प्रतापगढ़ में प्राथमिक शिक्षा के बाद वे गुजरात चले गए थे और गुजरात में संस्कृत की शिक्षा ली थी। पढ़ाई के बाद अविमुक्तेश्वरानंद को शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य का सान्निध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
क्यों निकली थी प्रतिकार यात्रा
दरअसल, जल प्रदुषण के मद्देनज़र अदालत के हुक्म से प्रतिमा विसर्जन गंगा में होना प्रतिबंधित तत्कालीन अखिलेश सरकार ने कर दिया था। इसी दरमियान गणेश प्रतिमा विसर्जन होना था। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती इस बात पर अड़ गए थे कि वह प्रतिमा विसर्जन गंगा में ही करेगे। इसको मुद्दा बना कर शहर के ह्रदयस्थलीय गोदौलिया पर वह अपने बटुको और सियासी शख्सियतो के साथ धरने पर बैठ गए। प्रशासन समझाता रहा कि अदालत का आदेश है। मगर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती अपनी मांग पर अड़े थे। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सिर्फ गणेश प्रतिमा का गंगा में चरण धुलवा कर वापस हो जायेगे। जिसके ऊपर प्रशासन ने साफ़ मना कर दिया। तत्कालीन एसएसपी ने साफ़ साफ़ कहा था कि यदि चरण गंगा में डालने की अनुमति दिया जायेगा और इस दरमियान किसी ने प्रतिमा विसर्जन कर दिया तो जवाबदेह कौन होगा?
बहरहाल, मामला ठंडा होने का नाम नही ले रहा था। प्रकरण में सियासत अपनी रोटियाँ भी सेक रही थी। आखिर 22 सितम्बर 2015 की रात पुलिस ने बल प्रयोग किया और धरना खत्म हुआ। कई लोग इस लाठीचार्ज में घायल हुवे थे। इस लाठीचार्ज के मुखालिफ जाकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने प्रतिकार यात्रा के आयोजन का एलान कर दिया था। उनकी मांग थी कि स्वयं मुख्यमंत्री उनसे माफ़ी मांगे। इस यात्रा का नाम अन्याय प्रतिकार यात्रा रखा गया था। नवागंतुक एसएसपी आकाश कुल्हारी ने चार्ज संभल लिया था। तेज़ तर्रार एसएसपी के आते ही ये यात्रा निकलनी थी। इसके लिए संतो का जमकर वाराणसी में जमावड़ा हुआ था। सियासत भी पीछे से संत समाज का साथ देने को खडी थी।
टाउनहाल में मंच लगा था और वहा से ये यात्रा गोदौलिया तक जानी थी। टाउनहाल के मंच से जमकर भाषणबाज़ी हुई। मुझको आज भी याद है जब स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की मांग पूरी हो चुकी थी इसकी जानकारी उन्होंने मंच से दिया था। अगर वह चाहते तो यात्रा निरस्त हो सकती थी क्योकि उनकी मांग पूरी हो चुकी थी। उन्होंने यात्रा की शुरुआत के पहले मंच से भाषण करते हुवे बताया था कि “अभी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का फोन आया था, पर मैंने उनसे (अखिलेश से) कह दिया कि अब देर हो गई, यात्रा निकलेगी।“
और यात्रा निकली थी। 5 अक्टूबर 2015 का दिन आज भी मुझको याद है। आज भी वह डरावना मंज़र याद है। वो ज़बरदस्त उपद्रव हुआ था कि दो दर्जन से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें दो थानेदारों सहित 14 पुलिसकर्मी घायल हुवे थे। पुलिस कमियों को निशाना बनाया जा रहा था। इस यात्रा में शामिल संतो सहित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को उसी पुलिस द्वारा बचाया गया जिस पुलिस की कुछ देर पहले निन्दा वो मंच से कर रहे थे। एक मंदिर में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती सहित सभी संतो को सुरक्षित किया गया था। बेकाबू हालात को संभालने के लिए प्रशासन ने वाराणसी के चार थाना क्षेत्रों कोतवाली, चौक, दशाश्वमेध व लक्सा में कर्फ्यू लगा दिया।
उत्तेजित भीड़ ने देखते ही देखते गोदौलिया में खड़ी पुलिस जीप, मोटर साइकिलों, पुलिस पिकेट समेत लगभग 25 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। काशी का हृदय स्थल गोदौलिया धधक उठा। पुलिस पर पत्थरों की बारिश होने लगी थी। लोग अन्य वाहनों को भी शिकार बनाने लगे थे। मीडियाकर्मियों को पीटा जा रहा था। चार न्यूज चैनलों के वाहनों में आग लगा दी गई थी। फायर बिग्र्रेड की दो गाड़ियां भी लोगों के गुस्से का शिकार हुईं थी। पुलिस ने हालात काबू करने के लिए डंडे चलाए, लेकिन भीड़ के आगे सीमित बल असहाय था। इसी बीच भीड़ की तरफ से बम के धमाके जैसी तेज आवाज सुनाई दी थी। बेकाबू होते हालात को देखते हुए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़ने शुरू किए। तब तक गिरजाघर से नई सड़क तक का इलाका सुलगना शुरू हो चुका था। गिरजाघर के पास भीड़ ने एसपी सिटी के वाहन को भी क्षतिग्रस्त कर फोर्स पर पथराव शुरू कर दिया था। ऐसे ही हालात नई सड़क, चेतगंज, बांसफाटक, लक्सा, लहुराबीर, नीचीबाग आदि में बनते चले गए। देर रात तक हालात गुरिल्ला युद्ध जैसे बने हुए हैं। लोग रह-रहकर निकल रहे हैं और पुलिस पर पथराव कर रहे हैं।
मलवे में मिले शिवलिंग पर किया था हंगामा
दिसंबर 2018 में वाराणसी के लंका थाना क्षेत्र के रोहित नगर विस्तार क्षेत्र में एक प्लाट पर डाले गए मलवे में से सवा सौ से अधिक खंडित शिवलिंग मिले थे। इस दौरान प्रशासन ने मलवे में मिले 126 शिवलिंगों को एकत्र करके थाने में रखवा दिया। इस वक्त भी स्वामी अविमुक्तरेश्वरानंद सरस्वती ने इस मामले को ज़बरदस्त तुल दिया था और कहा था कि ये कारीडोर निर्माण के समय मंदिरों को तोड़ कर फेकी गई शिवलिंग है। आरोप लगाया था कि मलवा किसी ठेकेदार ने फेंक दिया है, लेकिन मंदिर प्रशासन ने कॉरिडोर का मलवा होने से साफ इंकार कर दिया था। उधर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी। मामला अजय राय की तहरीर पर दर्ज हुआ था। जाँच में इसका जो सच पुलिस के सामने आया था वह ये था कि इस मलवे का सम्बन्ध विश्वनाथ कारीडोर से नही था। उक्त शिवलिंग आज भी थाना लंका पर रखे है और वहा रोज़ पूजा करने के लिए एक पुजारी की नियुक्ति स्वामी अविमुक्तरेश्वरानद ने किया है। इस दरमियान वर्त्तमान सरकार पर स्वामी अविमुक्त्रेश्वरानन्द ने जमकर हमला बोलते हुवे उसकी तुलना औरंगजेब से किया था
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में साईं प्रतिमा पर किया था हंगामा
अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा स्थित श्रीराम मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचे थे। मंदिर की दीवार पर साईं बाबा की मूर्ति देखकर वे भड़क गए थे। उन्होंने कहा था कि श्रीराम के मंदिर में साईं का क्या काम। आपको साईं की पूजा करनी है तो फिर राम और कृष्ण की क्या जरूरत है। इस दौरान दर्शन के लिए बुलाने वाले एक शिष्य को उन्होंने फटकार भी लगाई थी और कहा था कि क्या अब हम साईं के दर्शन करेंगे? जब तक मंदिर से साईं की प्रतिमा नहीं हटाई जाएगी, मैं मंदिर में प्रवेश नहीं करूंगा। इसके बाद साईं की प्रतिमा को हटा दिया गया था। इसके अलावा उन्होंने छत्तीसगढ़ के कवर्धा में सनातन धर्म के ध्वज को हटाने के विरोध में हजारों लोगों के साथ रैली निकालकर ध्वज को स्थापित भी किया था।