मुहर्रम की तीसरी तारीख: अंजुमन हुसैनिया का निकला जुलूस, गुजी दो साल बाद गूंजी शहर बनारस में “या हुसैन इब्ने अली, या सकीना या अब्बास या हुसैन”
शाहीन बनारसी
वाराणसी: मुहर्रम का चाँद नज़र आते ही इस्लामिक कलेंडर का नया साल शुरू हुआ साथ ही बलिदान का शहादत का महिना मुहर्रम शुरू हो गया है। इस महीने के शुरू होते ही मजलिसे शुरू हो चुकी है। पिछले दो वर्षो से कोरोना के खतरे के मद्देनज़र मुहर्रम प्रतिबंधो के साथ हुआ था। दो सालो के बाद इस माह के शुरू होते ही हर तरफ हुसैन की शहादत के याद में “या हुसैन, या सकीना या अब्बास या हुसैन” की सदा गूंज रही है।
इसी क्रम में आज औसानगंज से अंजुमन हुसैनिया के बैनर तले अलम का जुलूस निकला। इस जुलूस में अंजुमन के द्वारा नौहा ख्वानी पुरे रास्ते होती रही। पुरे जुलूस के हर एक नुक्कड़ पर या हुसैन की सदा के साथ शहादत-ए-कर्बला के याद में मातम होता रहा। “या हुसैन इब्ने अली” और “या सकीना या अब्बास या हुसैन” की सदा गूंजती रही।
जुलूस के साथ चल रही अंजुमन हुसैनिया के नौहे पर गम-ए-हुसैन में लोगो की आँखों में आंसू आ गए और अश्को के नजराने पेश होते रहे। नौहा “भैया अली अकबर” को जैसे ही अंजुमन ने पढ़ा घरो से जायरीन भी बाहर निकल आये और सभी की आँखों में अश्क गम-ए-हुसैन में आ गये। जुलूस में अलमबरदारी शिरान अब्दी कर रहे थे।