वाराणसी के दालमंडी से निकला दो वर्षो के बाद 5वी मुहर्रम का जुलूस, हर सु आई यही सदा “या हुसैन, या हुसैन, या सकीना या अब्बास या हुसैन”

शाहीन बनारसी

वाराणसी: मुहर्रम का महिना शुरू हो चूका है। शहादत के इस माह में कर्बला के शहीदों के लिए मजलिसो और जुलूसो का दौर जारी है। पिछले दो वर्षो से लगातार कोरोना संक्रमण के वजह से मुहर्रम के माह में मजलिस नही हो पा रही थी। दो वर्षो के बाद शहर की हर एक गलियों में “या हुसैन” की सदा गूंज रही है। कल 5वी मुहर्रम के रोज़ दालमंडी स्थित इमामबाड़ा मौलाना मेरे इमाम अली व मेहँदी बेगम से कदीमी जुलूस कल रात निकला जो अपने कदीमी रास्तो से होता हुआ फातमान पंहुचा और वहा से वापस इमामबाड़े आया।

बताते चले ये वाही जुलूस है जिसमे भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब अपनी शहनाई से शहीदान-ए-कर्बला को आंसुओ का नजराना पेश करते थे। उसके इन्तेकाल के बाद से उनके चश्मों चराग आफाक मियाँ ने ये रस्म जारी रखा और पुरे जुलूस के रस्ते वह शहादत—ए-कर्बला की याद में शहनाई की धुन पर आंसुओ का नजराना पेश करते रहे। बताते चले कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की इस परम्परा को उनके चश्मों चराग आफाक हैदर, जाकिर हुसैन, उस्ताद नाजिम हुसैन, नासिर अब्बास, अखलाक हुसैन द्वारा निभाया जाता है।

यह जुलूस वक्फ मस्जिद व इमामबाडा मौलाना मीर इमाम अली व मेहदी बेगम सीके 44/4 गोविन्दपुरा कला बनारस से उठा। और अपनी पुरानी परम्पराओं के अनुसार मोतवल्ली सै0 मुनाजिर हुसैनी “मंजू” के जेरे एहतेमाम से उठा। जुलूस में स्व0 वज्जन खां के पौत्र नजाकत अली खां व उनके साथियों ने सवारी पढी। जुलूस राजादरवाजा,  नारियल बाजार होते हुए दालमंडी पहुंचा। जहाँ से अंजुमन हैदरी चौक ने नौहा ख्वानी व मातम शुरू किया। जुलूस नई सडक काली महल, पितरकुण्डा , होते हुए फात्मान पहुंचा जहाँ पुनः वापस अपने कदीमी रास्तों से होते हुए गोविन्द पुरा कला बनारस स्थित इमामबाडा मे आकर इकतेदाम पदीर हुआ। जुलूस में अंजुमन द्वारा नौहा “जैदी दरे हुसैन पर झुकती है कायनात” पर लोगो की आँखों में अश्क आ गए।

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