मुहर्रम: कहानी बस इतनी सी है कि “यजीद था और हुसैन है” देखे शहर बनारस की मशहूर ताजियों की तस्वीरे, देखे अंगारों के मातम का वीडियो
शाहीन बनारसी
वाराणसी: माहे मुहर्रम की आज 10वी तारिख है। यही वह दिन है जिस दिन इमाम-ए-ज़माना, नबी के नवासे हजरत हुसैन (अ0स0) अपने कुनबे के 72 साथियों के साथ कर्बला में शहीद हुवे थे। एक ज़ालिम हुक्मरा यजीद के ज़ुल्म की मुखालफत कर उन्होंने हक का साथ दिया और बातिल के मुखालिफ रहे। बातिल भी ऐसा जो ज़ुल्म की इन्तेहा आवाम पर खत्म किये था। यजीदी फौजे जो लाखो में थी के मुखालिफ इमाम हुसैन और उनके कुनबे के 72 लोग थे। फिर भी यजीदी फौजों को तहस नहस कर दिया था। रज़ा-ए-इलाही के लिए इमाम-ए-जमाना ने अपनी ही नही अपने पुरे कुनबे की कुर्बानी दे दिया।
क़त्ल तो हुसैन का हुआ मगर हारा यजीद। अगर संक्षेप में समझे तो बस इतना ही काफी है कि “कहानी सिर्फ इतनी है कि यजीद था और हुसैन है।” आज भी हुसैन जिंदा है हमारे दिलो में। किसी आलिम ने बड़ा ही शानदार शेर अर्ज़ किया है कि “कत्ले हुसैन अस्ल में मर्गे यजीद है, इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद।” हुसैन की अजमत आज भी कायनात में कायम है। हुसैन की अजमत बयाँ करता हुआ एक शेर बड़ा ही शानदार है कि “जरा इंसान को बेदार तो होने दो, हर कौम पुकारेगी हमारे है हुसैन।” इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत के याद में कल की शब् यानी 10वी मुहर्रम के शब को इमाम चौको पर ताज़िया बैठी। दो वर्षो से मुजी कोरोना के वजह बना था कि गम-ए-हुसैन में ताजियों को नही बैठाला गया था। इस बार दो वर्षो बाद ताजिये इमाम चौक पर बैठे। आइये आपको शहर बनारस की चाँद खुबसूरत ताजियों की जियारत करवाते है।
दालमंडी स्थित कच्ची सराय में मशहूर पीतल की ताजिया विगत लगभग 200 वर्षो से बैठती है। जानकार बताते है कि लगभग डेढ़ सौ किलो पीतल के वज़न से इस ताजिया का निर्माण किया गया है। हर वर्ष इसके पीतल पर कलई चढ़ाई जाती है। ताजिया अपनी पूरी शानो शौकत के साथ उठती है और कर्बला में जाकर ठंडी होकर वापस आती है।
लल्लापूरा स्थित मोचियाना में बुर्राख की ताजिया शहर की मशहूर ताजियों में से एक है। लगभग 12 फिट से अधिक उची इस ताजिये का इतिहास लगभग 200 साल पूराना बताया जाता है। लोग दूर दूर से इसको देखने के लिए आते है।
दुनिया भर में मशहूर है रांगे वाली ताजिया
लल्लापुरा की राँगे वाली ताजिया दुनिया भर में मशहूर है। काफी दूर दूर से लोग इसको देखने के लिए आते है। सभी को अचरज इस करामात का होता है कि राँगे को इस खुबसूरत तरीके से कैसे बनाया गया है। ये ताजिया काफी वज़न वाली ताजियों में एक है। वही इसका इतिहास भी लगभग 300 साल पुराना बताया जाता है।
दालमंडी में एलमुनियम से निर्मित ताजिया भी आकर्षण का केंद्र है। लगभग 50 किलो एलमुनियम से निर्मित इस ताजिया की नक्काशी भी एक्मुनियम के तारो से हुई है। दूर दूर से लोग इस ताजिया को देखने के लिए आते है।
हाफ़िज़ लंगड़े उमर की ताजिया भी अपनी खूबसूरती और नक्काशी के लिए काफी मशहूर है। लगभग 100 वर्षो से अधिक पुराने इतिहास वाली इस ताजिये का निर्माण नागिनो से हुआ है। साथ ही इसके मेहराब काफी नक्काशीदार है जो छोटे छोटे महीन शीशे के नग से हुआ है। विगत लगभग डेढ़ दशक से ये ताजिया अब इमाम चौक से उठकर इमामबाड़े नही जाती है बस केवल फुल माला जो जाता है।
लाखो छोटे बड़े नगीनो से बनी इस ताजिया की खूबसूरती के चर्चे दूर दूर तक है। एक पतली लकड़ी का सहारा लेकर तामीर इस ताजिया में लाखो छोटे बड़े नगीने लगे है, सबसे खुबसूरत कारीगरी इस ताजिये के गुम्बद की है। बताया जाता है कि इस गुम्बद में ही करीब 25 हज़ार से ज्यादा महीन महीन रंगबिरंगे नग है। इस ताजिये कि उचाई लगभग 12 फिट के करीब है।
लोहता के धमरिया स्थित शीशे वाली ताजिया
लोहता के धमरिया स्थित शीशे वाली ताजिया भी बनारस की खुबसूरत ताजियों में एक मानी जाती है। पूरी ताजिया का निर्माण शीशे से हुआ है। जिसके ऊपर रंग बिरंगे नग जड़े हुवे है। इस ताजिया का इतिहास लगभग 80 साल पुराना बताया जाता है जब यहाँ अधिक आबादी नही थी और महज़ 4-5 घर ही हुआ करते थे।
इस ताजिया का निर्माण ही पूरा शीशे से हुआ है। ताजिया में जितनी भी आपको नक्काशी दिखाई दे रही है वह सभी शीशे को छोटा छोटा काट कर की गई है। बनारस की खुबसूरत ताजियों एम् एक इस ताजिये का इतिहास लगभग 150 साल पुराना बताया जा रहा है।
कादीपूरा की तुर्बत वाली ताजिया
लगभग 100 साल पहले इस ताजिया का निर्माण हुआ था। ये ताजिया तुर्बत की शक्ल में है। इस ताजिये को 9वी मुहर्रम को इमाम चौक पर बैठाला जाता है और इसके साथ ही लंगर और शरबत के सबील चलने शुरू हो जाते है जो बदस्तूर तीन दिनों तक चलते है। जिसमे हज़ारो लोगो फायदा लेते है।
इस पूरी ताजिये को मोतियाँ चुन कर बनाया गया है। सभी असली मोती है। ताजिये को रंग देने के लिए मोतियों को रंग कर कई अन्य रंगों में किया गया है। बताया जाता है कि लगभग 70 से अधिक सालो से ये ताजिया यहाँ हर साल मुहर्रम में बैठती है।
लल्लापुरा की तेरह गुम्बद वाली ताजिया भी काफी मशहूर है। इस ताजिया में छोटे बड़े मिला कर कुल 13 गुम्बद है।
कपड़ो में सजावट हेतु काम आने वाले गोटे से इस ताजिया का निर्माण हुआ है। रंग बिरंगे गोटे बनारसी साडी की कला को प्रदर्शित भी करते है। इस ताजिया की उचाई लगभग 10 फिट है। इसका इतिहास भी पुराना बताया जाता है। मुख्यता बनारसी साडी की कला का एक नमूना इस ताजिये के निर्माण में दिखाया गया है।
आग का मातम
अहल-ए-सुबह फातमान में होने वाले इस मातम को देखने पूरी रात लोग जागते रहते है। वीडियो में आपको जो लाल रोशनी दिखाई पड़ रही है दरअसल वह अंगारे है। घुप सियाह अँधेरे में होने वाले इस मातम की खासियत ये है कि दहकते हुए अंगारों पर अकीदतमद नंगे पाँव चलते हुवे मातम करते है। हाय सकीना हाय अब्बास या हुसैन का नारा बुलंद करते हुवे हुसैन के याद में दहकते हुवे अंगारों पर होने वाले इस मातम को देख कर लोगो की आँखे नम हो जाती है।