ताजमहल के असली इतिहास का पता लगाने को लेकर कमरे खुलवाने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज
आदिल अहमद
सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल के असली इतिहास को जानने के लिए कमरे खुलवाने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने याचिका को खारिज किया। कोर्ट ने कहा कि ये एक पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है। हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करके कोई गलती नहीं की है। दाखिल किये गये याचिका में कहा गया था कि कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं कि शाहजहां ने ही ताजमहल बनवाया था। ताजमहल के तहखाने के कमरों को खुलवा कर सत्य और तथ्य का पता लगाने की गुहार लगाई गई थी। इसी मांग को लेकर डॉ0 रजनीश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। दाखिल याचिका में विश्व प्रसिद्ध इमारत ताजमहल के इतिहास का पता लगाने के लिए फैक्ट फाइडिंग कमेटी बनाने का आदेश देने की सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है।
याचिका में कहा गया है कि अब तक इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि मूल रूप से ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था। सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें डॉ0 सिंह की याचिका खारिज कर दी गई है। डॉ0 सिंह ने ताजमहल के तहखाने के कमरों को खुलवा कर सत्य और तथ्य का पता लगाने की गुहार लगाई थी। याचिका में कहा गया है कि ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल के मकबरे के तौर पर 1631 से 1653 के बीच 22 वर्षों में कराया गया था, लेकिन ये उस दौर के इतिहास में बयान की गई बातें भर हैं। इस बात को साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है।
बताते चले कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी ताजमहल के 22 कमरों को खोलने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका को खरिज करते हुए कहा था कि आपको जिस टॉपिक के बारे में पता नहीं है, उस पर रिसर्च कीजिए। जाइए इस विषय पर एमए कीजिए, पीएचडी कीजिए। इस कवायद में अगर कोई संस्थान आपको रिसर्च नहीं करने देता है तो हमारे पास आइएगा। इसके बाद याचिका खारिज कर दी गई। उस आदेश को डॉ0 सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।