साहब, ये मैदागिन चौराहे पर आधी रोड तो टोटो वाले अपना स्टैंड बनाये है, और 25 फीसद पर अतिक्रमण है, आखिर चले तो चले कहा ? जाए तो जाए कहा
साहिल शफी/अजीत शर्मा
वाराणसी: बनारस शहर को क्योटो सिटी बनाने की कवायद चल ही रही थी कि इसी बीच न जाने कब शहर बनारस टोटो सिटी जैसा हो गया है। जिस गली में देखो टोटो दिखाई दे जाएगी। मनमाना, घरजाना जैसे तरीके से टोटो सडको से लेकर गलियों में घूम रही है। छोटे आकर का होने के कारण सकरी गलियों में भी इसकी पहुच है तो चौड़ी सडको पर भी ये जाम का सबब बनी हुई है। आम नागरिको की सुविधा के लिए आई टोटो अब यातायात व्यवस्था के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
तस्वीर आप देख सकते है। ये आज बुद्धवार की दोपहर मैदागिन चौराहे की है। तस्वीर में आपको दिखाई दे रहे टोटो आधी सड़क पर लगा कर सवारी इकठ्ठा कर रहे है। वही 25 फिसद हिस्से पर अतिक्रमण अपना पाँव पसारे हुवे है। अब समस्या ये है कि आम नागरिक चले तो चले कहा, जाए तो जाए कहा और करे तो करे क्या ? पुलिस खुद अपनी निगाहे जब इससे फेरे हुवे है तो आम नागरिक कब तक सडको पर झगड़ा करता रहे। समझ नही आता कि आखिर टोटो की समस्याओं को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है?
मैदागिन चौराहे के दोनों तरफ ही अवैध टोटो स्टैंड बना हुआ है। नम्बर टेकरी भी चोरी छिपे होती है तो ड्यूटी पर लगे पुलिस कर्मी आँखे क्यों बंद कर लेते है ये समझ से परे है। ऐसी ही स्थिति बेनिया की है। बेनिया पार्किंग के सामने टोटो स्टैंड बन गया है। यहाँ आराम से नंबर टेकरी भी होती है और हाथो में लट्ठ लेकर नंबर टेकरी का कलेक्शन भी होता है। सवाल पूछने पर जवाब मिलता है कि हम तो चाहते है कि पुलिस हमें पकडे। मगर इनको रोके टोके कौन ये एक यक्ष प्रश्न है। देखना तो होगा कि आखिर इस टोटो रुपी समस्या से कब शहर को निजात मिलती है।
क्या कहता है विभाग ?
इस सम्बन्ध में यदि यातयात विभाग से बात करे तो उसके पास कोई रोड मैप नही है। वही आरटीओ से संपर्क करे तो जानकारी हासिल होती है कि पिछले 5 वर्षो में लगभग 10 हज़ार टोटो पंजीकृत है। अब अगर इस संख्या को देखे तो वाराणसी जनपद में 10 हज़ार के लगभग टोटो पंजीकृत है जबकि सड़के कहती है कि शहर के अन्दर ही इससे कही अधिक टोटो सडको और गलियों को गुलज़ार कर जाम का सबब बने है। इसका मतलब तो साफ़ होता है कि पजीकरण से अधिक वाहन सड़क पर है।