गुजरात मोरबी पुल हादसा: अनसुलझे सवालो के साथ गुज़रा पूरा एक महीना, मिले कुछ के जवाब तो कुछ आज भी है अनसुलझे
तारिक़ आज़मी
गुजरात के मोरबी में बने सस्पेंशन पुल हादसे को कल एक माह पूरा हो गया। इस एक माह में कई अनसुलझे सवालो के जवाब मिले तो कई अभी भी अपने जवाब के इंतज़ार में है। हादसे में 135 से अधिक लोगो ने अपनी जान गवाया था और पुलिस ने कुल 9 लोगो को इस घटना में अब तक गिरफ्तार किया है। वही मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पंहुचा। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करने से मना कर दिया और कहा कि हाई कोर्ट सुनवाई कर रहा है। वहा सुनवाई हो जाने दे। मगर इस एक महीने में कई सवालो के भले जवाब मिले मगर आज भी सवाल अनसुलझे है।
गौरतलब हो कि रविवार 30 अक्टूबर 2022 की शाम को हुए इस हादसे में 135 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे। मच्छु नदी पर बना ये मोरबी पुल स्थानीय लोगों के बीच एक आर्कषक पर्यटन स्थल था। आसपास के इलाक़ों से कई लोग इसे देखने के लिए जमा हुए थे। इस पुल को दिवाली की छुट्टियों के कारण खोला गया था और बड़ी संख्या में लोग इसे देखने आए थे। बताया गया था कि हादसे के समय पुल पर करीब 500 लोग थे। हादसे की शाम लोग पुल पर खड़े थे तो पुल अचानक टूटकर गिर गया। कई लोग मच्छु नदी में गिर गए तो कई नदी के पार ज़मीन पर गिरे। कई लोगों ने पुल से लटककर अपनी जान बचाई।
पुलिस ने इस मामले में कुल 9 लोगो को गिरफ्तार किया है। गिरफ़्तार हुए लोगों में ओरेवा कंपनी के प्रबंधक दीपक नवीनचंद्र पारेख और दिनेश मनसुख दवे, टिकट कलेक्टर मनसुख वालजी टोपिया और मदार लखभाई सोलंकी, ब्रिज कॉन्ट्रैक्टर लालजी परमार और देवांग परमार शामिल हैं। इनके अलावा पुलिस ने तीन सुरक्षा गार्डों को भी गिरफ़्तार किया है जिनके नाम मुकेशभाई चौहान और दिलीप गोहिल हैं। जांच के शुरुआती दौर में कहा गया कि पुल पर लोगों की संख्या ज़रूरत से ज़्यादा होने के चलते पुल भार सहन नहीं कर पाया और गिर गया। लेकिन, बाद में पुल की मरम्मत में ही गड़बड़ियां होने की बात भी सामने आई जिससे मरम्मत के लिए हुए अनुबंध और फिटनेस सर्टिफिकेट को लेकर सवाल उठने लगे थे। इस मामले में पुल की मरम्मत करने वाली एजेंसी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए एक पांच सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति भी बनाई है। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि सस्पेंशन ब्रिज की मरम्मत और रख-रखाव का काम मोरबी के औद्योगिक घराने ओरेवा ग्रुप को सौंपा गया था। यह समूह अजंता ब्रांड की घड़ियों का निर्माण करता है। ओरेवा ग्रुप के प्रमुख जयसुखभाई पटेल हैं।
इस मामले की सुनवाई मोरबी में सेशन कोर्ट या ज़िला अदालत में चल रही है। साथ ही गुजरात हाई कोर्ट ने भी इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया है। सेशन कोर्ट में सरकारी वकील ने फ़ोरेंसिक जांच की रिपोर्ट भी पेश की है। फ़ोरेसिंक साइंस लैब की रिपोर्ट के हवाले से सरकारी वकील एचएस पंचाल ने सेशन कोर्ट में पुल गिरने की वजह बताई। उन्होंने कहा कि फ़ोरेसिंक एक्सपर्ट के मुताबिक़ पुल नई फ़्लोरिंग का भार नहीं सह सका और उसके केबल टूट गए। पंचाल ने अदालत के बाहर पत्रकारों को बताया, “हालांकि फ़ोरेंसिक रिपोर्ट बंद लिफ़ाफ़े में अदालत को सौंपी गई है, लेकिन रिमांड की अर्ज़ी में ये लिखा गया है कि ब्रिज की केबलों को नहीं बदला गया था। सिर्फ़ फ़्लोरिंग ही बदली गई थी।”
उन्होंने बताया कि “चार लेयर वाली एल्युमिनियम की चादरों से फ़्लोर को बनाया गया था। इसका वज़न इतना बढ़ गया कि पुल को थामे रखने वाली केबल इसका भार नहीं सह पाई और पुल गिर गया।” अदालत को ये भी बताया गया कि जिन ठेकेदारों को रिपेयर का काम दिया गया था वे इसे करने के लिए योग्य नहीं थे। सरकार के तरफ से पेश हुवे अधिवक्ता ने अदालत को बतया कि 30 अक्टूबर को पुल पर जाने के लिए क़रीब 3,165 टिकट जारी किए गए थे। हालांकि, सभी टिकट नहीं बिके पर कंपनी ने पुल की क्षमता को लेकर कोई जायज़ा नहीं लिया था। ओरेवा कंपनी को पुल की मरम्मत और रखरखाव की ज़िम्मेदारी दिए जाने के तरीक़े पर भी सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, ये अनुबंध ख़त्म होने के बाद 2017 से 2022 तक पुल की मरम्मत का काम बिना किसी अनुबंध के ओरेवा कंपनी के ही पास था। मरम्मत और रखरखाव को लेकर कंपनी और नगर पालिका के बीच अनुबंध भी हुआ था। लेकिन, इस काम को लेकर कोई निविदा नहीं निकाली गई थी।
अमूमन सरकारी प्रोजेक्ट या काम निविदा के माध्यम से ही आवंटित किए जाते हैं। गुजरात हाई कोर्ट ने 15 नवंबर को हुई सुनवाई में पूछा था कि ओरेवा ग्रुप को बिना टेंडर के इस पुल की मरम्मत की ज़िम्मेदारी कैसे दे दी गई। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया स्थानीय नगर पालिका की चूक के कारण ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है। कैसे एक कंपनी पर इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए निविदा जारी किए बिना प्रशासन ने इतनी मेहरबानी दिखा दी। कोर्ट ने कहा कि स्थानीय निकाय की ओर से इस तरह की लापरवाही निंदनीय है। अदालत ने पूछा कि साल 2008 को हुए अनुबंध के साल 2017 में ख़त्म होने के बाद निविदा निकालने के लिए क्या कोई क़दम उठाए गए थे।
हालांकि, मार्च 2022 को इस पुल को मरम्मत के लिए सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए बंद कर दिया गया था।कंपनी ने साल 2020 में कई बार ज़िला कलेक्टर को ये भी सूचित किया था कि अनुबंध के बिना वो सस्पेंशन ब्रिज की मरम्मत शुरू नहीं करेगी। नगर पालिका के साथ टिकट की रक़म को लेकर भी कंपनी का विवाद चल रहा था। ओरेवा ग्रुप ने साल 2020 में एक बार फिर से कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए आवेदन किया जिसे कोरोना महामारी के कमज़ोर पड़ने के बाद इसी साल मार्च में नगरपालिका ने स्वीकार कर लिया। समझौते की तारीख से इस पुल को 8 से 12 महीनों में खोला जाना था।
इस बीच इसकी मरम्मत होनी थी, लेकिन पुल को सात महीनों में ही खोल दिया गया। हादसे से चार दिन पहले दिवाली के त्योहार के दौरान ये पुल लोगों के लिए खोल गया था। पुल पर जाने के लिए लोगों को टिकट दी जाती थी। कंपनी के साथ हुए अनुबंध में कुल नौ बिंदु हैं जिसमें टिकट की यह दर भी शामिल है। हालांकि, अनुबंध में टिकट के अलावा किसी भी मुद्दे को विस्तार से नहीं बताया गया है और न ही कोई शर्त रखी गई है। अनुबंध के चौथे बिंदु में लिखा है, “इस समझौते के साथ, पुल को ओरेवा समूह द्वारा ठीक से पुनर्निर्मित कर जनता के लिए खोल दिया जाएगा। इस में समझौते की तारीख़ से लगभग 8 से 12 महीने लगेंगे।”