केतन पारेख घोटाला: दो दशक पहले जिसने सदन से लेकर सड़क तक करवाया था हंगामा, दो दशक बाद आज भी है एक रहस्य, पढ़े क्या थी उसकी डंप एंड पम्प की नीति जो आज है चर्चा में, और कैसे आया था इसमें अडानी समूह का नाम
तारिक खान
सेबी, जो शेयर बाज़ार की गतिविधियों पर अपनी पैनी नज़र रखता है, के नाक के नीचे भी लोगो के द्वारा नियमो को धता बता कर बड़ा मुनाफा खुद के लिए कमा लिया जाता है और आम इन्वेस्टर्स इनके जाल में फंस जाया करते है। ऐसे लोग नियम कायदों को तोड़ते हुए या फिर नियमों में किसी प्रकार की कमी खोजकर यहां पर करोड़ों रूपये छापने में कामयाब हो जाया करते है और इसका सीधा असर आम इन्वेस्टर्स की जेब पर पड़ता है और वह भी इस तरह से कि वह कंगाल हो जाता है। दो दशक पहले भी ऐसा ही एक स्कैम हुआ था जो भारतीय शेयर मार्केट के इतिहास के सबसे बड़े स्कैम्स में से एक है। आज भले दो दशक बाद इस कडवी याद पर हमारे वक्त की धुंध चढ़ चुकी है। मगर यादे आज भी हमको कसक दे जाती है। वह स्कैम था केतन पारेख द्वारा किया गया घोटाला, जो आज भी कई लोगों के लिए एक रहस्य है।
पूरा मामला कुछ इस तरीके से था कि शेयर मार्केट में काम करने की कला केतन पारेख को विरासत में मिली थी। हर्षद मेहता ने भी केतन पारेख को स्टॉक मार्केट के कई गुर सिखाए थे। शक्ल से भोला भाला और दिमाग से तेज केतन पारेख एक चार्टर्ड अकाउंटेंट था इसलिए शेयर मार्केट को समझना उसके लिए थोड़ा आसान था और इसलिए उसने स्टॉक मार्केट में काफी नाम कमाया। केतन पारेख द्वारा लिए जाने वाले निवेश से संबंधित निर्णयों पर सभी अन्य निवेशक एक पैनी नजर रखते थे तथा सभी निवेशकों को ऐसा लगता था कि केतन पारेख द्वारा लिए जाने वाले निर्णय बिलकुल सटीक ही होते है। लेकिन हकीकत में यह बात सच नहीं थी। उसकी होल्डिंग्स में मुख्यतः Information, Communication तथा एंटरटेनमेंट सेक्टर के स्टॉक होते थे तथा इसको संक्षिप्त में ICE सेक्टर के नाम से भी जाना जाता है। उसके पोर्टफोलियो में 10 स्टॉक्स थे जिनको K-10 stocks के नाम से भी जाना जाता है। वह मुख्यतः कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेडिंग करता था जहां पर निगरानी उतनी ज्यादा नहीं थी और इसकी वजह से उसने 1999 से 2000 के बीच शेयर मार्केट में काफी हलचल पैदा की।
सफलता का दुखद अंत
केतन पारेख स्कैम में मुख्यत 2 प्रकार की योजनाओं के माध्यम से धोखाधड़ी को अंजाम दिया गया था जो इस प्रकार है – ‘Circular trading’ तथा ‘Pump and dump Scheme’। आज उसी पम्प एंड डंप स्कीम के बारे में बाते और चर्चा फिजाओं में अडानी समूह के लिए भी गूंज रही है। लोगो को शक है कि क्या डंप एंड पम्प के खेल से अडानी समूह के शेयर की कीमतों में इजाफा हुआ है। वैसे ऐसा ही आरोप हिडेनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगा है और शैल कंपनियों के साथ मिल कर घोटाला करने का आरोप है।
क्या है डंप और पम्प स्कीम
इस तरीके की योजना हर्षद मेहता से ज्यादा बारीक केतन पारेख ने बनाया था। इस योजना में वह किसी कंपनी के 20 फीसद से 30 फीसद तक शेयर खरीद लेता था। जिससे उस कंपनी के शेयर्स की मांग बहुत बढ़ जाती थी और इसके कारण शेयर की कीमत में भी बढ़ोतरी होती थी। जब एकाएक शेयर की कीमत में उछाल आता था तो अन्य निवेशक भी उस स्टॉक की ओर आकर्षित होते थे। इससे कीमत और बढ़ जाती थी। एक बार जब शेयर की कीमत में काफी ज्यादा बढ़ोतरी आ जाती थी तो वह उन शेयर्स को बेचकर अपना मुनाफा कमा लेता था।
क्या है सर्कुलर ट्रेडिंग
केतन पारेख द्व्रारा इस प्रकार की ट्रेडिंग में अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर धोखाधड़ी को अंजाम दिया जाता था। वह अपने कुछ साथियों को यह आदेश देता था कि किसी विशेष कंपनी के शेयर्स में जमकर खरीददारी तथा बिकवाली की जाए। इससे उस कंपनी के ट्रेड होने वाले शेयर्स का वॉल्यूम बहुत ज्यादा बढ़ जाता था। जो निवेशक वॉल्यूम के हिसाब से अपने निवेश सम्बन्धी निर्णय लेते है वो इस बढे हुई वॉल्यूम को देखकर उस कंपनी के शेयर्स को खरीदने लगते थे। जिससे उस कंपनी के शेयर्स की कीमत में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी देखी जाती थी। जब शेयर्स की कीमत में वृद्धि होती थी तो वह अपने पहले से खरीदे हुए शेयर्स को बेचकर भारी प्रॉफिट कमा लेता था। जिसमे से कुछ हिस्सा अपने साथियों को दे देता था तथा बाकि सारा पैसा अपने पास रख लेता था। इस प्रकार की ट्रेडिंग को Badla System के नाम से भी जाना जाता था।
कहा से आते थे इतने पैसे ?
हालाँकि इस प्रकार की ट्रेडिंग करने के लिए काफी ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ती है। उसके पास इतने पैसे कैसे आए? इसके समझने के लिए पे आर्डर समझना होगा। सरल शब्दों में Pay Order एक चेक की तरह ही होता है जो बैंक द्वारा कस्टमर्स को तब दिया जाता है, जब कस्टमर एडवांस राशि का भुगतान बैंक को करता है। उसने मधेपुरा मर्केंटाइल कमर्शियल बैंक के शेयर्स खरीदे तथा उसके बाद उसी से ही उसने पेमेंट आर्डर के रूप में काफी ज्यादा लोन ले लिया। जब शेयर की कीमत में बढ़ोतरी होने लगी तो उसने उन पे आर्डर को अन्य बैंकों जैसे एचसीऍफ़एल तथा युटीआई में गिरवी रख दिया। लगभग 13 लाख पे आर्डर जारी किए गए थे। उसने यह काम साल 2000 के कुछ शुरुआती महीनों तक किया। उसकी लोन की राशि लगभग 750 मिलियन के आसपास थी। उसने कंपनी के प्रोमोटर्स तथा मालिकों से भी काफी ज्यादा पैसा वसूल लिया तथा उनसे यह वादा किया कि वह कंपनी के शेयर की कीमत को और बढ़ा देगा।
वर्ष 1995 से शुरू हुआ उसका ये गोरखधंधा वर्ष 2000 तक चला था। कुछ लोग मानते है कि अभी भी किसी न किसी रूप में वह शेयर मार्किट में अपनी पकड़ रखे हुवे है। उसने उस समय Aftek Infosys, Zee telefilms, Himachal Futuristic, Silverline technologies आदि स्टॉक्स में निवेश किया। Zee Telefilms के शेयर की कीमत 127 रूपये से 2330 रूपये तक पहुंच गई थी। Visual Soft के शेयर की कीमत 625 रूपये से 8448 रूपये तक पहुंच गयी थी। अनेक शेयर्स पर उसको 200% से भी ज्यादा का रिटर्न मिला।
आरबीआई और सेबी की पड़ी नज़र
वक्त गुज़रा और आरबीआई तथा सेबी की नजर जैसे ही इस पर पडी उन्होंने तुरंत भांप लिया कि कुछ तो गड़बड़ है। मार्च 2000 में उसको गिरफ्तार कर लिया गया तथा 53 दिनों के लिए पुलिस कस्टडी में रखा गया। 1 मार्च 2000 को शेयर मार्केट 176 से भी ज्यादा पॉइंट्स से क्रैश हो गया तथा निवेशकों ने 2000 करोड़ से भी ज्यादा की राशि खो दी। उसको शेयर मार्केट में ट्रेडिंग के लिए 15 सालों तक प्रतिबंधित कर दिया गया तथा 1 साल की जेल की सजा भी सुनाई गयी। भारतीय स्टॉक मार्केट के इतिहास के सबसे बड़े फ्रॉड्स में से एक फ्रॉड यह भी था। इसके बाद सेबी ने अनेक प्रकार के नियम तथा कानून पारित किए। Badla System तथा Circular Trading पर प्रतिबंध लगा दिया गया। स्टॉक एक्सचेंज से जुड़े सभी खातों का वार्षिक तौर पर निरिक्षण किया जाने लगा। हालाँकि उसको ट्रेडिंग करने के लिए प्रतिबबन्धित कर दिया था लेकिन फिर भी यह बात बाज़ार में अक्सर चर्चा में रहती है कि उसने अपने आदमियों के माध्यम से ट्रेडिंग चालु रखी थी। सन 2008 में अनेक कंपनियों से उसके बारे में पूछताछ की गयी तथा उसकी सहायता करने वाली कंपनियों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए गए। क्या वो अभी भी शेयर बाजार में ट्रेडिंग करता है या नहीं? यह एक कौतुहल का विषय है।
आया था गौतम अडानी का भी नाम
केतन पारेख केस में गौतम अडानी का भी नाम आया था। इस बात को आप सांसद संजय सिंह अपने हर बयान में याद दिला रहे है। सहमति शुल्क के भुगतान पर केतन पारेख स्टॉक घोटाला मामले में प्रमोटर गौतम अडानी पर भी व्यापार प्रतिबंध लगा था और वर्ष 2008 तक प्रतिबंधित भी किया गया था। जिसके बाद इस प्रतिबन्ध को हटाने के बाद हही अडानी समूह को सार्वजनिक निर्गम के लिए अनुमानित 5,000 करोड़ रुपये जुटाने की प्रक्रिया शुरू करने में एक सप्ताह से भी कम समय लगा। अडानी समूह की कंपनियों ने सहमति शुल्क और अन्य शुल्कों के रूप में 17 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया, ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) ने कहा, प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) ने भी 24 अप्रैल, 2008 के अपने आदेश द्वारा सहमति शर्तों को मंजूरी दे दी है। और मामलों का निस्तारण किया।
1999-2001 में पूंजी बाजार में आए केतन पारेख स्टॉक घोटाले के संबंध में अदानी समूह और अन्य कंपनियों के प्रमोटरों पर सेबी द्वारा लगाए गए प्रतिभूति लेनदेन पर दो साल के प्रतिबंध को सहमति शुल्क के भुगतान के कारण हटा दिया गया था। डीआरएचपी ने कहा कि एपीएल के प्रवर्तकों को मई 2007 में सेबी द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिभूति बाजार में “अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के स्क्रिप में हेरफेर करने में केतन पारेख संस्थाओं की सहायता करने और उकसाने के लिए” दो साल की अवधि के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालांकि, अडानी समूह की संस्थाओं ने प्रतिभूति व्यापार प्रतिबंध के खिलाफ SAT में अपील दायर की और एक स्थगन आदेश प्राप्त किया था।