हिडेनबर्ग रिपोर्ट पर अडानी समूह की जाँच प्रकरण: सेबी ने मांगी जांच हेतु 6 और महीनो की सुप्रीम कोर्ट से मोहलत, कहा 12 संदिग्ध लेनदेन और कई उप-लेनदेन की जाँच करने हेतु ये समय चाहिए
ईदुल अमीन
डेस्क: अडानी समूह की कंपनियों के खिलाफ स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों की जांच पूरी करने के लिए सेबी ने छह महीने के विस्तार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर किया है। 2 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को अडानी-हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच पूरी करने और दो महीने की अवधि के भीतर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। चूंकि न्यायालय द्वारा दी गई समय सीमा 2 मई को समाप्त होने वाली है, सेबी ने मामले की जटिलता को देखते हुए छह महीने की और अवधि मांगी है।
24 जनवरी को प्रकाशित हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अदानी ग्रुप पर धोखाधड़ी और शेयरों की कीमतों में छेड़छाड़ के आरोप लगाए गए थे। इस मामले की जाँच कर रहे सेवी ने अपनी अर्जी में कहा है कि लेन-देन की जटिल प्रकृति को देखते हुए जांच पूरी करने के लिए कम से कम 15 महीने की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन यह भी कहा कि यह छह महीने के भीतर इसे पूरा करने के लिए ‘उचित प्रयास’ करेगा।
सेबी ने कहा कि 12 संदिग्ध लेन-देन से संबंधित जांच के संबंध में, जो प्रथम दृष्टया जटिल हैं और कई उप-लेनदेन हैं और इन लेनदेन की एक कठोर जांच के लिए सत्यापन सहित कंपनियों द्वारा किए गए सबमिशन के विस्तृत विश्लेषण के साथ-साथ विभिन्न स्रोतों से डेटा/सूचना के मिलान की आवश्यकता होगी।
सेबी का कहना है कि उसे प्रथम दृष्टया संभावित उल्लंघन करने वाली 12 ट्रांजेक्शन दिखाई दी हैं, जिसमें शेयरों की कीमतों में छेड़छाड़ से लेकर कई तरह के कानूनों का उल्लंघन हो सकता है। सेबी का कहना है कि वह हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने से पहले और बाद में हुए संभावित उल्लंघनों को भी देख रही है। वही अडानी ग्रुप के प्रवक्ता के हवाले से कहा है, ‘यह ध्यान रखना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट में सेबी ने किसी भी कथित गलती का कोई निष्कर्ष नहीं दिया है। सेबी ने सिर्फ हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों का हवाला दिया है जो अभी भी जांच के दायरे में हैं।’
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सेबी से यह जांच करने के लिए कहा कि क्या अदानी ग्रुप ने प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) नियम, 1957 के नियम 19ए का उल्लंघन किया है? क्या वह संबंधित पार्टियों के साथ लेन-देन की जानकारी देने में विफल रही है? और क्या कानूनों का उल्लंघन कर शेयरों की कीमतों में छेड़छाड़ की गई है?