ट्रायल जजों को डर की भावना में नही रखा जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

तारिक खान

डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने आज मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की कड़ी निंदा करते हुवे कहा है कि ज़मानत देने वाले जजों को डरा कर नही रखा जा सकता है। अदालत ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया जिसमे हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के जज से ज़मानत देने के लिए स्पष्टीकरण माँगा था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए कहा कि उच्च न्यायपालिका द्वारा पारित ऐसे आदेशों का जिला न्यायपालिका पर “चिंताजनक प्रभाव” होगा।

दरअसल मामला कुछ इस प्रकार था कि एक मामले के अपीलकर्ता को शिकायतकर्ता पर कथित हमले से संबंधित एफआईआर में एक अभियुक्त के रूप में नामित किया गया था। निचली अदालत ने जमानत की पहली अर्जी खारिज कर दी थी। बाद में हाईकोर्ट ने भी अपीलकर्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया था। उचित समय बीतने के बाद अपीलकर्ता को जमानत के लिए एक नया आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता देते हुए आवेदन को वापस ले लिया गया।

प्रकरण में जांच के बाद चार्जशीट सक्षम अदालत प्रस्तुत की गई और अपीलकर्ता ने जमानत के लिए फिर से ट्रायल कोर्ट का रुख किया। ट्रायल जज ने यह देखते हुए कि अपीलकर्ता द्वारा एक दूसरा नियमित जमानत आवेदन प्रस्तुत किया गया, इस आधार पर जमानत दी कि आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया और अन्य अभियुक्तों को जमानत दे दी गई है। जिसके बाद हाईकोर्ट के एक एकल न्यायाधीश ने जमानत को रद्द कर दिया और कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को जमानत खारिज करने के हाईकोर्ट के पहले के आदेश को ध्यान में रखे बिना जमानत दी। हाईकोर्ट ने कहा कि मात्र तथ्य यह है कि आरोप-पत्र दायर किया गया, इसे परिस्थितियों में बदलाव के रूप में नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को यह भी निर्देश दिया कि वे द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश, हरदा को कारण बताओ नोटिस जारी कर उन परिस्थितियों पर स्पष्टीकरण मांगें जिनमें उन्होंने अपीलकर्ता को जमानत दी थी।

इस प्रकरण में मुख्य न्यायाधीश डी0वाई0 चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे0बी0 पारदीवाला की पीठ ने मध्य प्रदेश के एक मामले में सुनवाई करते हुवे कहा कि “अपीलकर्ता को तुरंत गिरफ्तार करने और द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगने का हाईकोर्ट का आदेश पूरी तरह से असंगत है और इसकी आवश्यकता नहीं थी। हाईकोर्ट के ऐसे आदेश जिला न्यायपालिका पर एक भयावह प्रभाव पैदा करते हैं। जिला न्यायपालिका के सदस्यों को भय की भावना में नहीं रखा जा सकता यदि उन्हें उचित मामलों में जमानत देने के लिए कानूनी रूप से उन्हें सौंपे गए अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना है।”

अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत देने के आदेश से यह संकेत नहीं मिलता है कि कानून के गलत सिद्धांत लागू किए गए थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने अपराध में चार्जशीट दाखिल करने, सह-अभियुक्तों को जमानत पर रिहा करने आदि जैसे प्रासंगिक कारकों पर भरोसा किया।

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