बाम्बे हाईकोर्ट ने फैक्ट चेकिंग पर केंद्र सरकार से किये तल्ख़ सवाल, कहा ‘यह सिर्फ सरकारी जानकारी के लिए क्यों बाकी ऑनलाइन पर क्यों नहीं? यूनिट सिर्फ ऑनलाइन कॉन्टेंट के लिए क्यों? प्रिंट मीडिया के लिए क्यों नहीं?’
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आफताब फारुकी
डेस्क: बॉम्बे हाई कोर्ट ने ऑनलाइन फैक्ट चेकिंग के मुद्दे पर केंद्र सरकार की क्लास लगाई है। उसने सरकार से दो सवाल पूछे हैं। पहला, फैक्ट चेकिंग यूनिट्स सिर्फ सरकार से जुड़ी जानकारी पर ही नज़र क्यों रखेंगी, बाकी ऑनलाइन कॉन्टेंट पर क्यों नहीं? दूसरा सवाल, फैक्ट चेक यूनिट सिर्फ ऑनलाइन कॉन्टेंट के लिए क्यों हैं? प्रिंट मीडिया के लिए क्यों नहीं?
पीठ ने केंद्र से ये भी कहा कि फर्जी खबरों पर नजर रखने के लिए पीआईबी लंबे समय से अस्तित्व में है। केंद्र सरकार ये नहीं बता रही है कि क्या मौजूदा तंत्र अपर्याप्त था? FCUs की क्या जरूरत थी? न्यायमूर्ति गौतम एस पटेल ने कहा, ‘जब भी पीआईबी कोई स्पष्टीकरण जारी करता है, तो हर समाचार चैनल और अखबार उसे प्रसारित करता है। सरकारी अधिकारियों के जवाबों में ये स्पष्टीकरण कहां है कि ये संरचना अपर्याप्त क्यों है और आपको (सरकार को) संशोधन की जरूरत क्यों है? केंद्र द्वारा दायर किया गया हलफनामा इस बारे में कुछ नहीं कहता।’
एक मामले में सुनवाई करते हुवे गुरुवार, 14 जुलाई को बाम्बे हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में किए गए संशोधन पर सवाल उठाए। केंद्र सरकार को संशोधन के जरिए ये ताकत मिलती है कि वो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उसके बारे में चल रही ‘फर्जी खबरों’ की पहचान कर सके। इसके बाद फैक्ट-चेक यूनिट्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से कहकर वो कॉन्टेंट हटवा सकती हैं।
जस्टिस गौतम एस पटेल और जस्टिस नीला के गोखले की खंडपीठ इसी संशोधन के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर बहस सुन रही है। इन याचिकाओं को स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यू ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने दायर किया था। बताते चले कि इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने अप्रैल 2023 में IT Rules में संशोधन किए थे।
पीठ ने सरकार से सवाल किया कि लंबे समय से काम कर रहा प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो का तंत्र क्या इतना अपर्याप्त है कि इसमें FCUs को शामिल करने के लिए संशोधन की जरूरत पड़ गई। इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा कि नियम बनाते समय इरादा चाहे कितना भी प्रशंसनीय या नेक क्यों न हों, अगर किसी नियम या कानून का प्रभाव असंवैधानिक है तो उसे जाना ही होगा।