अदालती टिप्पणियां सिर्फ़ शब्दों तक सीमित रह जायेंगी तो न्यायतंत्र से भरोसा खत्म हो जाएगा: शाहनवाज़ आलम
मो0 कुमेल
लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि हेट स्पीच के मामलों में पुलिस स्वतः अपनी तरफ से एफआईआर दर्ज कराए। लेकिन किसी भी भाजपा शासित राज्य में पुलिस ने ऐसा नहीं किया। जो साबित करता है कि पुलिस अदालती निर्देशों को गंभीरता से नहीं लेती। ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 108वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने हेट स्पीच पर सुनवाई के दौरान निर्देश दिया था कि पुलिस स्वतः संज्ञान लेकर ऐसा करने वालों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज करे और अगर ऐसा नहीं करती है तो अवमानना के लिए तैयार रहे। सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों ने यह भी कहा था कि अदालतों की ज़िम्मेदारी है कि वो इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करे। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बावजूद ऐसा नहीं हो रहा है। सबसे अहम कि कोर्ट ने भी राज्यों से ऐसा नहीं किये जाने पर कोई रिपोर्ट नहीं मांगी। जिससे सांप्रदायिक तत्वों के हौसले बुलन्द हैं। अगर ऐसा हुआ होता तो हाल की राज्य प्रायोजित मुस्लिम विरोधी हिंसा की घटनाएं नहीं होतीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि हरियाणा के नूह और दिल्ली की हाल की मुस्लिम विरोधी हिंसक घटनाओं के पीछे दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस चंद्रधारी सिंह का वो फैसला भी ज़िम्मेदार है जिसमें केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को खुलेआम ‘देश के गद्दारों को गोली मारों सालों को’ जैसे नारे लगाने पर भी यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि यह मुस्कुराते हुए बोला गया था इसलिए अपराध नहीं है। ऐसे फैसलों से सांप्रदायिक तत्वों के हौसले बढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि 2024 के लोक सभा चुनावों में हार के डर से भाजपा समाज को बाँटने के लिए दंगे करवा रही है। अगर अदालती टिप्पणियां सिर्फ़ शब्दों तक सीमित रह जायेंगी तो इससे लोगों का न्यायतन्त्र पर भरोसा खत्म हो जाएगा।