सुप्रीम कोर्ट में पूरी हुई चुनावी बॉन्ड से राजनीतिक दलों को फंडिंग की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई, अदालत ने किया फैसला सुरक्षित
फारुख हुसैन
डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड से राजनीतिक दलों को फंडिंग की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। पूरी सुनवाई के दरमियान कई सवाल उठे और खुद बेंच ने इन सवालो को सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा। इन सबके बीच आज बहस पूरी हो चुकी है और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।
द हिंदू के अनुसार, मामले को सुन रही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने तीन दिनों तक मतदाताओं के सूचना के अधिकार और दानदाताओं की गोपनीयता के अधिकार से संबंधित दलीलें सुनी थीं। पीठ ने निर्वाचन आयोग को 12 अप्रैल 2019 से 30 सितंबर 2023 तक सभी राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त चुनावी बांड की जानकारी दो हफ़्तों के अंदर सीलबंद कवर में जमा करने का भी निर्देश दिया है। सीजेआई ने कहा कि वे इस स्तर पर एसबीआई से दानदाताओं की पहचान उजागर करने के लिए नहीं कहेंगे, लेकिन वे इसकी हिस्सेदारी (पैमाना) जानना चाहेंगे।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बुधवार की सुनवाई में अदालत ने यह चिंता भी जताई कि किसी विपक्षी दल को यह नहीं पता होगा कि दान देने वाला कौन हैं, लेकिन ‘विपक्षी दल को दान देने वालों का पता कम से कम जांच एजेंसियों द्वारा लगाया जा सकता है।’ योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अध्यक्षता करते हुए सीजेआई डी वाईचंद्रचूड़ ने कहा, ‘योजना के साथ समस्या यह है कि यह चयनात्मक गुमनामी/गोपनीयता देती है। यह पूरी तरह से गुमनाम नहीं है। यह एसबीआई के लिए गोपनीय नहीं है (बॉन्ड केवल एसबीआई से खरीदे जा सकते हैं)। यह कानून प्रवर्तन एजेंसी के लिए गोपनीय नहीं है। इसलिए, कोई बड़ा दानकर्ता या डोनर किसी राजनीतिक दल को देने के उद्देश्य से चुनावी बॉन्ड खरीदने का जोखिम कभी नहीं उठाएगा।’
उन्होंने आगे कहा, ‘बड़े दानकर्ता को बस ये करना है कि दिए जाने वाले चंदे को अलग-अलग करना है, ऐसे लोगों को लाना है जो छोटी राशि के चुनावी बॉन्ड खरीदें, जिन्हें बाद में आधिकारिक बैंकिंग चैनलों द्वारा खरीदा जाएगा, कैश के जरिये नहीं।’ सीजेआई केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों का जवाब दे रहे थे, जिनका कहना था कि यह योजना राजनीति से काले धन, जिससे हर देश जूझ रहा था, को खत्म करने के लिए उठाए गए कई कदमों का हिस्सा थी।
पीठ में सीजेआई के साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। मेहता ने पीठ से कहा, ‘यह पहला कदम था। दूसरा चरण शेल कंपनियों का पंजीकरण करना था। 2018-2021 के बीच भारत सरकार ने 2,38,223 शेल कंपनियों की पहचान की और कार्रवाई की गई। यह उन तरीकों में से एक है जिनके माध्यम से काला धन गुजरता है।’ मेहता ने कहा, ‘योजना में कोई गुमनामी या अस्पष्टता नहीं है बल्कि ‘यह एक प्रतिबंधित, सीमित गोपनीयता है जिसे उजागर किया जा सकता है और अदालती निर्देश पर इस परदे को हटाया जा सकता है।’