उत्तर काशी टनल हादसे रेस्क्यू के असली हीरो: 10 दिन लगातार अमेरिकन आगर मशीन चलाने वाले नौशाद अली, रेट माइनर टीम लीडर वकील हसन, मुन्ना कुरैशी सहित एनडीआरऍफ़ टीम का था महत्वपूर्ण योगदान
तारिक़ आज़मी
डेस्क: मशहूर शायर राहत इन्दौरी साहब का एक कलाम है कि ‘अपने जान के दुश्मन को हम अपनी जान कहते है, मुहब्बत के इसी मिटटी को हिन्दुस्तान कहते है।’ शायद इसी मुहब्बत के कारण हमारा लोकतंत्र दुनिया का एकलौता ऐसा लोकतंत्र है, जो हर दुःख मुसीबत को अलग अलग नही एक दुसरे के कंधे से कन्धा मिला कर खड़े दिखाई देते है। भले चंद लोग अपनी मुफायत के खातिर नफरतो का ज़हर बोते रहे। मगर हकीकत ये है कि आज भी हमारे मुल्क की मुहब्बत दुश्मनों के जलन की वजह बनती है।
जब गोर थे तो भगत सिंह और अशफाकउल्लाह खान एक साथ खड़े थे। गोरो के दांत खट्टे कर डाला। अपने नापाक इरादों के साथ पेटेंट टैंक लेकर हमारे मुल्क में घुसने की हिमाकत किया। ऐसे वक्त पर अब्दुल हमीद ने अपनी बहादुरी दिखाई और पाकिस्तान के नापाक इरादों के सहित उसके टैंको को मिटटी के खिलौनों की तरह तोड़ डाला। शायद हमारे मुल्क की यही एकता दुश्मनों के आँखों में तीर के तरह चुभती है। ऐसे में बेचैन अमन के दुश्मन बाते अलग बनाया करते है। मगर हमारे मुल्क की सांझी वरासत हर मुश्किल लम्हात में एक दुसरे के कंधे से कंधा मिला कर खडी रहती है।
ऐसा ही मुश्किल वक्त आया 12 नवम्बर को जब उत्तराखंड के उत्तर काशी में बन रही स्ल्कियारा सुरंग धंस गई और अन्दर 41 मजदूर फंस गये। ऐसे मुश्किल हालात में चले रेस्क्यू आपरेशन ने भी सांझी वरासत की वह मिसाल पेश कर दिया जिसको देख कर हमारे मुल्क के दुश्मन एक बार फिर अपने मुह की खा बैठे है। जिस वक्त कोई मशीन काम नही कर रही थी, उस वक्त ‘रेट माइनर’ ही काम आये। ये टीम चूहों की तरह सुरंग खोदती है। टीम के लीडर थे वकील हसन। टनल के अन्दर सबसे पहले जाने वाले थे इसी टीम के सदस्य मुन्ना कुरैशी। ये वह टीम थी जिसके सदस्य में किसी ने अपनी बीमार माँ को छोड़ कर कर्तव्य निभाया, तो किसी ने अपनी बहन की शादी छोड़ कर अपने फर्ज पुरे किये, तो किसी ने अपने बिन माँ के बच्चो को अकेला अपने फ़रायज़ के लिए छोड़ा।
जिस ऑगर मशीन ने सबसे ज्यादा काम किया, उस मशीन को 10 दिनों तक लगातार चलने वाला कौन था? जिसने बिना आराम किये 10 दिनों तक मशीन चलाया। उस आगर मशीन को चलाने वाले थे नौशाद अली। नौशाद अली ने पुरे 10 दिनों तक लगातार इस मशीन को चालाया। इस मशीन को दिन रात चलाने वाले नौशाद अली को कम ही लोग जानते हैं। उत्तर प्रदेश में ग़ाज़ियाबाद स्थित मसूरी में रहने वाले नौशाद होरिजेंटल डायरेक्शन ड्रिलिंग के काम पिछले 23 सालों से कर रहे हैं।
41 वर्षीय नौशाद अली ने मीडिया को बताया कि अमेरिकन ऑगर मशीन यहाँ आई थी, उसको मैं ऑपरेट करता हूँ। मैंने 10 दिनों तक लगातार 24 घंटे ऑगर मशीन को ऑपरेट किया। मुझ पर एक तरह का दबाव तो था कि इस ऑपरेशन को किसी भी तरह से कामयाब करना है। लेकिन हमारी पूरी टीम मेरा हौसला बढ़ाने के लिए थी।’ उन्होंने बताया कि सुरंग में काम करके उन्हें थकान महसूस हो रही थी लेकिन मज़दूरों के सुरक्षित बाहर आने के बाद वो थकान अब दूर हो गई है। नौशाद अली बताते हैं कि ‘सुरंग में काम करते वक़्त न नींद आती थी और न भूख लगती थी। ड्रिल करते समय बीच में कभी-कभी कई रुकावटें भी आती थी। कभी-कभी काम आसानी से चलता था और कभी-कभी अचानक मलबे में लोहे का जाल आ जाता था जिससे दिक़्क़तें पेश आती थीं। ड्रिल करते वक़्त पाँच बार लोहे के जाल का सामना करना पड़ा। जिसके बाद हमने जाल काट कर पुशिंग का काम चालू किया।’
नौशाद अली ने मीडिया को दिए अपने बयान में इस बचाव अभियान से जुडा अपना अनुभव साझा करते हुवे बताया कि ‘ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड के साथ काम करते हुए छह साल हो चुके हैं। अमेरिकन ऑगर से पहले वो वेर्मीयर मशीन चलाते थे और अब वह अमेरिकन ऑगर और एचके हेरीकनेक्ट दोनों मशीनें चलाते हैं। टनल में जिस ऑगर मशीन को चलाना पड़ा वो 600 टन की थी। कंपनी को यह लगा था कि मैं ही इस ऑपरेशन में बेस्ट परफ़ॉर्मेंस दे सकता था। मुझे ख़ुशी है कि ऑपरेशन कामयाब रहा। यह मेरी ज़िंदगी का अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन भी रहेगा।’
रेट माइनिंग टीम की मेहनत
जब सारी मशीनें नाकाम हो गईं, तो रैट माइनिंग तकनीक से काम करने वाली टीम को बुलाया गया और इस टीम ने पुशिंग तकनीक से काम करते हुए मज़दूरों तक पहुँचने का रास्ता बनाया। इस टीम के लीडर वक़ील हसन ने पूरे अभियान के बारे में बताया कि ‘जब सारी मशीनें नाकाम हो गईं, तब हमें बुलाया गया और हमने मज़दूरों को बचाने के लिए ना केवल अपना काम किया बल्कि खुद को साबित भी किया। मुझे मिलाकर हमारी टीम में कुल 12 लड़के थे और हम सब ने लगातार 24 घंटे काम किया है।’ टीम के एक अन्य सदस्य मुन्ना क़ुरैशी ने बताया कि ‘हमें बताया गया था कि हमें क़रीब 12 मीटर पाइप मलबे में डालना है। जब हम काम पर लगने जा रहे थे, तो इन्होंने ऑगर मशीन लगाई, जो अंदर जाकर फँस गई।’
मुन्ना कुरैशी ने बताया कि ‘उसकी वजह से हम तीन दिन बैठे रहे। जब हमारा काम शुरू हुआ तो हमने इनको 24 घंटे का समय दिया था। जिसके बाद हमने 26 घंटे में पाइप डाल भी दिया। जब हमारे लड़के अंदर पहुँचे, तो अंदर मौजूद 41 लोगों से मिले, तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई। उन लोगों ने कहा कि हमें एक मुन्ना भाई से मिलना है, जिसके बाद मैं उनसे मिला। उन लोगों ने मुझे गले से लगाया और एक चॉकलेट भी दी।’ तसल्ली की मुस्कान लिए मुन्ना क़ुरैशी बताते हैं कि ‘उन्होंने मुझसे बोला कि आपको क्या चाहिए? उन्होंने कहा कि आपको जान चाहिए, दौलत चाहिए या भगवान का ओहदा चाहिए। मैंने उनकी बात का जवाब देते हुए कहा कि मुझे बस आपका प्यार चाहिए। उस वक़्त मुझे ऐसा अहसास हो रहा था कि न जाने मुझे क्या मिल गया।’
इसी टीम टीम में शामिल मोहम्मद नसीम ने बताया कि ‘सुरंग में काम करने के दौरान मलबे में दबे सरिए, पाइप और लोहे की चीज़ें आईं। लेकिन रास्ते में आए लोहे और पत्थरों को हमने काटा।’ वहीं मोहम्मद राशिद ने बताया कि उनके सामने मज़दूरों को बचाने का लक्ष्य था। उन्होंने कहा, ‘हमारे मन में लोगों को बाहर निकालने का जज़्बा था। पाइप तो हमने 15 मीटर ही डाला, अगर 50 मीटर भी डालना होता, तो वह भी डाल देते।’