मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित मानिसक रूप से बीमार चल रहे बच्चो के एक आश्रम में कुछ ही दिनों में पांच बच्चो की रहस्यमय स्थिति में हुई मौत, 44 का चल रहा अस्पताल में इलाज, जिनमे 6 आईसीयु में भर्ती

तारिक़ खान

डेस्क: मध्य प्रदेश के इंदौर में मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिये चल रहे है एक आश्रम में पिछले कुछ दिनों में पांच बच्चों की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हुई है। 44 बच्चे अब भी अस्पताल में भर्ती हैं। इनमें से 6 बच्चों को आईसीयू में रखा गया है। मौत की सही वजह न तो प्रशासन बता रहा है और न ही आश्रम संचालक। प्रशासन ने इस मामले में जांच के आदेश दे दिए हैं।

शहर के पंचकुइया में आश्रम युगपुरुष धाम है। यहां मंगलवार को सुबह बताया गया कि दो बच्चों की मौत हो गई है। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने का सिलसिला शुरू हुआ। लेकिन शाम तक पांच बच्चे दुनिया को अलविदा कह चुके थे। इस वक़्त आश्रम के 29 बच्चों का इलाज चाचा नेहरू अस्पताल में चल रहा है। इंदौर के कलेक्टर आशीष सिंह ने बताया कि प्रशासन की पहली प्राथमिकता बच्चों की जान बचाने की है।

उन्होंने बताया, ‘आश्रम में बच्चों के खाने पीने को देखा जा रहा है। लेकिन मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होने की वजह से उनकी बीमारी को समझने में दिक्क़त आ रही है।’ उन्होंने बताया कि आश्रम में जो घटना घटी है उसकी हर पहलू पर जांच की जा रही है ताकि पता चले कि आख़िर बच्चों के साथ क्या हुआ था। सब डिवीज़नल मजिस्ट्रेट ओमप्रकाश नारायण बड़कुल को हटा दिया गया है। इन्हें जांच के लिये भेजा गया था लेकिन उनका एक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें वो ठहाके लगाते हुए देखे गए। उसके बाद उनकी जगह प्रभारी डिप्टी कलेक्टर डॉ। निधि वर्मा को तैनात किया गया है।

जानकारी के मुताबिक़ जिन बच्चों की मौत हुई है उनमें से दो बच्चों को मिर्गी के दौरे आते थे। मरने वालों की उम्र 5 साल से 15 साल बताई जा रही है। अभी प्रशासन का मानना है कि उनकी मौत की वजह फूड पॉइजनिंग हो सकती है। इसलिये बच्चों को अब आश्रम में खाने और पीने पर रोक लगा दी गई है और उन्हें बाहर से खाना भेजा जा रहा है। वही माना जा रहा है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट जब तक नहीं आयेगी तब बता पाना मुश्किल है की आख़िर मौत की वजह क्या है। इस मामले में आश्रम की लापरवाही भी मानी जा रही है। जब पहले बच्चे की मौत 30 जून को हुई तो उन्होंने इसकी जानकारी प्रशासन को क्यों नहीं दी।

आश्रम को संचालित करने वाली डॉ। अनीता शर्मा ने किसी भी तरह की लापरवाही से इनकार किया है। उन्होंने यह भी कहा कि, ‘फूड पॉइजनिंग नहीं हो सकती है क्योंकि पूरे स्टाफ ने भी वही खाना खाया तो जो बच्चों ने खाया था।’ आश्रम में डॉक्टरों की टीम लगाई गई है जो हर बच्चे की जांच कर रही है। दिव्यांगता की वजह से बहुत से बच्चे बता नहीं पाते हैं कि उन्हें क्या तकलीफ़ है। मामला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने नगरी प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट को बच्चों के हाल चाल जानने के लिए अस्पताल भेजा है। दोनों ही मंत्रियों ने बच्चों से मुलाकात की, अस्पताल में मौजूद स्वास्थ्य सेवाओं का आकलन किया।

अस्पताल से निकलकर कैलाश विजयवर्गीय ने संस्था का बचाव किया। उन्होंने बताया, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि बच्चों को डायरिया था, इस वजह से यह हालात बनी है। इस तरह के बच्चों की यह एक मात्र संस्था है और इसे संभालने वाले लोग काफी कमिटेड हैं। इन बच्चों को संभालना आसान नहीं होता है। हमारी कोशिश होगी कि इस संस्था को अपग्रेड किया जाए और खाने की क्वॉलिटी को भी सुधारा जाए।’

जब उनसे इस मामले में संस्था की लापरवाही पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अभी पहली प्राथमिकता बच्चों को स्वस्थ करने की है। उन्होंने कहा कि, ‘आगे बच्चे ठीक हो जाए तो सीएसआर फंड से उन्हें अच्छी व्यवस्था करवाई जाएगी। अभी पूरे समय डॉक्टरों की मौजूदगी आश्रम में है ताकि बच्चों के बीमार होने की स्थिति में उन्हें फौरन स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जा सके।’

वहीं, एक बात यह भी सामने आयी है कि आश्रम में 200 बच्चों के रहने की व्यवस्था है लेकिन वहां पर 206 बच्चे रह रहे हैं। ज्यादातर बच्चे प्रदेश भर से लाए गए हैं। इन बच्चों को लावारिस हालात में मिलने पर यहां पर लाया गया था। कुछ ही बच्चे हैं जिनके अभिभावकों की जानकारी आश्रम को है। इस आश्रम की शुरुआत 2006 में युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज के सान्निध्य में हुई थी और तभी से यह चल रहा है। उसके बाद प्रदेश के दूसरे स्थानों से बच्चे आने की वजह से यहां पर बच्चों का आंकड़ा अब दो सौ के पार हो गया है।

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