मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने छात्रो को निर्वस्त्र करके परेशान करने और मोबाइल की जांच के नाम पर आपत्तिजनक वीडियो बनाने के आरोपी शिक्षक की अग्रिम ज़मानत किया निरस्त
तारिक खान
डेस्क: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने छात्रों को निर्वस्त्र कर परेशान करने और मोबाइल फोन की जांच के नाम पर आपत्तिजनक वीडियो बनाने के आरोपी एक वरिष्ठ स्कूल शिक्षक की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की पीठ ने यह भी कहा कि अभियोजन एजेंसी पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में विफल रही और इंदौर के पुलिस आयुक्त को मामले की जांच करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने जय प्रकाश सिंह बनाम बिहार राज्य और अन्य (2012) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अग्रिम जमानत को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों का उल्लेख किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि अग्रिम जमानत एक “असाधारण विशेषाधिकार” है और इसे केवल “असाधारण मामलों” में ही दिया जाना चाहिए। अदालत ने अग्रिम जमानत से इनकार करते हुए कहा, ‘आवेदक का कृत्य प्रकृति में क्रूर है और एक शिक्षक के रूप में उसका कार्य अत्यधिक आपत्तिजनक है।‘
अदालत ने ज़मानत निरस्त करते हुवे कहा कि ‘यह उल्लेख करना उचित है कि अभियोजन की आपत्ति के बावजूद, संबंधित अभियोजन एजेंसी ने पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों पर विचार नहीं किया है और इस पहलू पर केस डायरी में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए, इंदौर के पुलिस आयुक्त को पॉक्सो अधिनियम, 2012 के मद्देनजर मामले की जांच करने और एक महीने के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।
आवेदक पर इंदौर के एक स्कूल में मोबाइल चेक करने के नाम पर नाबालिग बच्चों को परेशान करने का आरोप था। आरोपों में किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 और बीएनएसएस की धारा 76 और 79 के तहत अपराध शामिल थे। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आवेदक की हरकतें न केवल क्रूर थीं, बल्कि यौन अनुचित भी थीं, जिसके लिए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम, 2012 के आवेदन की आवश्यकता है।
आवेदक के वकील ने दलील दी कि वह निर्दोष हैं और उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया है। उन्होंने एक प्रतिष्ठित परिवार से एक वरिष्ठ शिक्षक के रूप में उनकी स्थिति पर जोर दिया, जिसमें कहा गया कि उनके पति सरकारी सेवा में कार्यरत हैं और उनका बच्चा चिकित्सा करियर का पीछा कर रहा है।