कमाल है वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस…..! अदालत में विचाराधीन 2023 के कथित अपराधिक प्रकरण में दर्ज किया नए सिरे से सिगरा थाने में ऍफ़आईआर, बड़ा कन्फ्यूजन है साहब आरोपी सच में आरोपी है या फिर पीड़ित…?


तारिक आज़मी
वाराणसी: वैसे लोग कहते है कि पुलिस रस्सी का सांप बना देती है। ऐसी बातो पर वैसे मेरा विश्वास नहीं है, क्योकि हमारा मानना है कि हम एक भी सुरक्षित पल बिना पुलिस के सोच भी नहीं सकते है। फिर भी कुछ बाते ऐसी सामने आ जाती है। जिसको देख कर समझ नहीं आता कि आखिर आरोपी कौन और पीड़ित कौन? वैसे तो बचपन से संविधान की अजमत समझाया गया जो दिल दिमाग में पत्थर की लकीर की तरह बैठा है। अदालत का सम्मान सर्वोपरी है।
मगर वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस ने अदालत से भी शायद खुद को आगे समझ रखा हुआ है। नामालूम किस मुगालते के तहत अदालत में विचाराधीन एक कथित अपराधिक घटना की ऍफ़आईआर दर्ज कर एक ही कथित घटना में नामज़द कथित आरोपियों को दुबारा आरोपी बना दिया है। ऍफ़आईआर दर्ज होने के बाद अब उस मामले में नामज़द लोग अपने कागज़ात लेकर दौड़ लगा रहे है। मगर अब भला सुने कौन ? क्योकि इस मामले में वादिनी कुछ ज्यादा ही तेज़ रफ़्तार से दौडाते हुवे उसके कथित शिकायती प्रार्थना पत्रों पर सत्य रिपोर्ट लगाने वाले पुलिस वालो पर ही आरोप लगा कर उनको घुसखोर साबित करने लगती है। दूसरी तरफ वादिनी की शिकायत पर पुलिस कथित आरोपियों की गिरफ़्तारी हेतु दबिशे दे रही है, और इस एफआईआर में नामज़द अब पीड़ित बनकर पुलिस से भागे भागे फिर रहे है।
हालत ये है कि अब उस वादी परिवार से पुलिस कर्मी भी डरने लगे है। कभी थकान के बाद अगर कोई पुलिस वाला एक कप चाय भी किसी दूकान पर पीता दिखाई देता है तो वादी परिवार में एक विकलांग युवक बरामदे पर बैठ कर उनका फोटो खीच कर उस पुलिस वाले को ही बदनाम करना चालू कर देता है। रही अधिकारियो की बात तो अधिकारी जब अदालत में विचाराधीन मामले में नए सिरे से ऍफ़आईआर दर्ज करने का आदेश दे सकते है। तो फिर यह उम्मीद कैसे किया जा सकता है कि वह इन झूठी शिकायतों पर सख्त कार्यवाई शिकायत करने वाले के खिलाफ कर सके।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल सिगरा थाना क्षेत्र के लल्लापुरा में एक कथित घटना दिनांक 26/27 अप्रैल 2023 की मध्य रात्रि की बताते हुवे मुन्नी देवी नामक खुद को पीड़ित बताते हुवे संपत्ति विवाद जिसमे अदालत ने स्थगनादेश मुन्नी देवी के विपक्षी के पक्ष में दे रखा है को लेकर एक आरोप लगाया जिसमे उसने अपने घर में मारपीट और लूट की शिकायत पुलिस से किया। तत्कालीन विवेचक से लेकर थाना प्रभारी, एसीपी और एडीसीपी वोमेन ने मामले में जांच किया और मामला उनके जाँच में संपत्ति विवाद का निकला जो अदालत में विचाराधीन है। मुन्नी देवी ने जिनको आरोपी बनाया था, उनके पास अदालत का आदेश था।
इन सबके बाद मुन्नी देवी ने उस कथित अपराधिक घटना के सम्बन्ध में वाद अदालत में दाखिल किया जिसमे अदालत ने परिवाद के तहत दर्ज किया और मामला अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अष्टम के अदालत में केस नंबर 87293/2023 दर्ज कर अंतर्गत धारा 307, 392, 394, 504,506 आईपीसी सुनवाई चालु किया, जिसमे प्रतिवादियो को अदालत ने दिनांक 28/08/2023 को ज़मानत भी प्रदान कर दिया और मामला अब अदालत में विचाराधीन है।
इधर दूसरी तरह कथित पीडिता मुन्नी देवी ने देखा कि ये मामला अब अदालत में आ चूका है और उसके प्रतिवादियो को ज़मानत भी मिल गई है। तो तेज़ तर्रार वादिनी ने दुसरे तरफ पैतरा खेला और उच्चाधिकारियों को उसी कथित घटना जो 26/27 अप्रैल 2023 की मध्य रात्रि की बताया को लेकर नवागंतुक अधिकारियो को ये बताया होगा कि साहब दो साल के बाद भी मेरी शिकायत थाने पर दर्ज नहीं हुई। अब कार्यवाई के क्रम में गुड वर्क का 100 में से 100 नंबर की होड़ में शायद उच्चाधिकारियों ने मामले में जाँच की भी आवश्यकता नही समझी सीधे ऍफ़आईआर का आदेश दे डाला और इसके बाद दिनांक 4 दिसंबर 2024 को कथित पीडिता के द्वारा दिली कथित अपराधिक घटना की शिकायत थाना सिगरा में क्राइम नम्बर 414/2024 अंतर्गत धारा 457, 323, 395, 504, 506 आईपीसी दर्ज कर लिया।
अब बात इतनी बची कि जो मामला पहले से अदालत में विचाराधीन है, उसी कथित घटना की ऍफ़आईआर भी दर्ज हो गई। अदालत से ज़मानत मिलने के बाद राहत की सांस लेने वाले दुसरे पक्ष के लिए अब एक और मुसीबत सामने खडी है। अब दूसरा पक्ष अधिकरियो के सामने गुहार लगा रहा है कि ‘साहब मामला तो पहले से अदालत में विचाराधीन है। फिर ये नए तरीके से नया मामला एक ही कथित घटना में क्यों?’ मगर बात तो ये है साहब कि सुनेगा कौन? गुड वर्क के लिए 100 में पुरे 100 नम्बर की जद्दोजेहद भी तो है। ‘गुड जॉब’ जैसे शब्दों के लिए पीठ तो है। फिर क्या है दबिश पर दबिश जारी है। आरोपी पीड़ित बन चुके है और पुलिस के डर से भागे भागे फिर रहे है।
अब हद तो तब ख़त्म है जब एक एक पल के पुलिस गतिविधि पर नज़र अपने विकलांग बेटे के ज़रिये रखते हुवे फोटोबाज़ी करते हुवे अधिकारियों के सामने निरीह प्राणी बनकर खडी है और गुहार लगा रही है कि ‘साहब पुलिस घुस खाकर कार्यवाई नहीं कर रही है।’ अब आप खुद फैसला करे कि मामले में पीड़ित कौन और आरोपी कौन ? दरअसल आरोपियों के नाम मोहम्मद असलम वगैरह है, जबकि पीड़ित खुद को साबित करके अधिकारियों के सामने खड़े होने वाले के नाम में कुमार और देवी लगा हुआ है। ऐसे में मामले में दुसरे एंगल की भी बाते चर्चा बनने के राह में है।
मगर हकीकत साफ़ साफ़ बताये कि आरोपी कौन इसका फैसला तो अदालत करेगी, क्योकि मामला पहले से ही अदालत में वर्ष 2023 से विचाराधीन है। मगर फिलहाल असली पीड़ित तो वह पुलिस है जो भूख लगने पर एक चाय और एक बिस्कुट भी अपने क्षेत्र में नहीं खा पा रहा है, क्योकि पता नहीं कब ऊपर से फोटो खीच जाए। पीड़ित तो वह विवेचक है जो निष्पक्ष जाँच करे तो उसके ऊपर तत्काल आरोप घुसखोरी का लग जाए। पीड़ित तो थाना प्रभारी है जो एक एक मामले में सफाई अधिकारियों को देते रह रहे है। पीड़ित तो वह परिवार है जो एक कथित अपराधिक घटना को लेकर दो दो मामले झेल रहा है। फिलहाल पुलिस की तफ्तीश जारी है, असलम मिया का परिवार घर छोड़ कर भागा भागा फिर रहा है। बकिया सब खैरियत है। सभी 100 में 100 नम्बर पाने की होड़ में लगे हुवे है।
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