कमिश्नर साहब..! हकीकत ये है कि डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त से फरार इनामिया अपराधी जावेद को गिरफ्तार करने के लिए आपके आदमपुर इस्पेक्टर उदासीन है

तारिक आज़मी

वाराणसी: अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए वाराणसी पुलिस कमिश्नर अक्सर अपने मतहतो को सख्त हिदायत देते रहते है। मगर एक हकीकत ये भी है कि उनके मातहत अपराधियो की धरपकड़ में सिर्फ कागज़ी घोड़े दौड़ने में ही लगे रहते है। शहर के कई ऐसे अनसुलझे मामले है, जिसमे पुलिस अपराधियों को पकड़ना तो दूर की बात रही, उसकी पूंछ भी तलाश नहीं कर पाई है। मगर हमारे पुलिस कमिश्नर साहब अपने मातहतो के चश्मे से अपराध की दुनिया को देखा करते है और उनके ही नज़रिए से शहर को देख रहे है।

ऐसा ही अनसुलझी गुत्थी जैसा मामला है वाराणसी के आदमपुर थाने का फरार इनामिया अपराधी जावेद खान। हकीकत जाने तो पुलिस उसकी पूछ छोड़े साहब आज डेढ़ दशक बाद भी उसके परछाई तक नहीं पहुच पाई। मगर उच्चाधिकारियों से कभी जावेद मर चूका है तो कभी जावेद नेपाल भाग गया और कभी जावेद बिहार भाग गया जैसी कहानियो को सुना कर खुद को ‘गुड जॉब’ जैसे शब्दों का तमगा लगवा लेते है। मगर हकीकत ये है कि अपराध पर काम करना और सिर्फ अपनी वाहवाही लूटना दो अलग सी बाते है।

हुआ करता होगा वह ज़माना जब पुलिस अपराधियो की कुंडली रखती थी। क्राइम पर काम करने वाले हमारे जैसे पत्रकारो से चाय पर ऐसे ही चर्चा करती थी। मगर अब ज़माना और पुलिसिंग बदल गई है। सर्विलांस सेल न हो तो आधे से अधिक अपराध का शायद पुलिस खुलासा ही न कर पाए क्योकि लगभग हर बड़े अपराध में इसी विभाग की भूमिका सबसे सक्रिय होती है। धरातल पर पुलिस की जानकारी शुन्य ही होगी। दावे के साथ कमिश्नर साहब कह सकता हु कि आपके अधिकतर दरोगा और इस्पेक्टर युपी के टॉप वांटेड इनामिया अपराधी बीकेडी का नाम नहीं सुने होगे। अज़ीम को पकड़ना तो दूर की बात रही अज़ीम की क्राइम हिस्ट्री तक ढंग से नहीं पता होगी।

आज ऐसे ही एक अपराधी की बात करते है, जो आज डेढ़ दशक से अधिक समय से पुलिस के लिए सिर्फ कागजों में एक नाम है। वह नाम है ‘जावेद खान’। आदमपुर थाने का 25 हज़ार का इनामिया अपराधी जिसकी जानकारी इस्पेक्टर आदमपुर और उनके अधिनस्थो को महज़ इतनी है कि कभी वह उच्चाधिकारियों से कहते है कि जावेद नेपाल भाग गया, तो कभी कहते है कि जावेद मर गया। अब एक नया टर्न आया है इस रस्ते में जिसमे कहा जाता है कि जावेद बिहार भाग गया।

कौन है जावेद

जावेद खान पड़ाव का कथित रूप से निवासी बताया जाता है। बाप का नाम गुलाम रसूल और उम्र वर्त्तमान में लगभग 40-42 वर्ष होगी। वर्ष 2008 में क्राइम नम्बर 64 दर्ज होता है जिसमे आरोप है कि दुर्दांत अपराधी बंटी अफरोज अपने साथ चंद साथियो को लेकर स्थानीय एक व्यापर से रंगदारी लिए थे। पुलिस ने शिकायत दर्ज किया और इस मामले में एक आरोपी बंटी अफरोज का साथी जावेद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका। बकिया सभी फाइली गिरफ्तार भी हुवे, जेल भी गए और ज़मानत पर छुट भी गए। इनमे बंटी अफरोज पुलिस शूट आउट में मारा जा चूका है, मगर पुलिस के लिए जावेद अबूझ पहेली आज भी है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसकी गिरफ़्तारी पर 25 हजार का ईनाम घोषित कर रखा है।

हमने विभागीय सूत्रों से जब थोड़ी थोड़ी करके जानकारी इकठ्ठा किया तो बात निकल कर सामने आई कि जावेद खान पर मुगलसराय और अलीनगर कोतवाली में भी मामले दर्ज हुवे है। उन सभी फाइल में जावेद के संबध में जब हमारी लीगल टीम ने पता किया तो दस्तावेज़ सब कुछ है मगर बस जावेद की तस्वीर नहीं है। इसको कहते है जुगाड़। जब तस्वीर ही नहीं है तो फिर तलाशोगे कैसे ? अब अगर आदमपुर थाने का वह कुख्यात वांटेड आकर थाने पर बैठ जाए तो पुलिस पहचान भी नहीं पाएगी। हाल ऐसी है कि इसके अपराधिक इतिहास पर धुल की एक मोटी परत चढ़ चुकी है। जिसको उतरना काफी मुश्किल है। इसके अपराधिक मामले में कुछ इसके फाइली जौनपुर के है तो कुछ मुगलसराय के है। कुछ आदमपुर के है। मगर पहचानेगा कोई भी नहीं। क्योकि पहचानना इसको कोई नही चाहता है।

तब फिर रास्ता एक ही बचता है कि अपने साहब लोगो को यही सब बता कर काम चला लिया जाये कि कभी जावेद नेपाल भाग गया तो कभी जावेद मर गया और कभी जावेद बिहार भाग गया। आखिर कौन ये सवाल पूछे कि साहब आपके अनुसार जावेद अगर बिहार भाग गया तो इसकी जानकारी देने वाले ने किया कभी ये भी बताया कि जावेद बिहार भाग गया तो तुम्हे कैसे पता और पता है तो जावेद बिहार में कहा है? कौन सा सात समदर पार है बिहार इस्पेक्टर आदमपुर साहब….? अगर गिरफ्तार करना होगा तो आप वहाँ से भी कर सकते है।

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