मणिपुर के सीएम वीरेन सिंह का इस्तीफा क्या भाजपा की सरकार को बचाने की रणनीति का हिस्सा है?


तारिक आज़मी
डेस्क: मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के 21 महीने बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने रविवार को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। बीरेन सिंह के खिलाफ सोमवार से शुरू होने वाले विधानसभा के बजट सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी थी। इसके अलावा प्रदेश बीजेपी में भी पिछले कुछ महीनों से सीएम बदलने को लेकर लामबंदी हो रही थी। बीजेपी के कुछ वरिष्ठ विधायकों ने दिल्ली जाकर केंद्रीय नेतृत्व के सामने कई बार यह मांग रखी थी। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव से पहले बीरेन सिंह ने अचानक इस्तीफ़ा दे दिया है, जिससे कई सवाल भी खड़े हो रहें हैं।
मणिपुर में हिंसा की अंतिम घटना पिछले 4 जनवरी को कांगपोकपी जिले में हुई थी। जो पिछले 21 माह से चल रही है। जनवरी की 4 तारीख को हुई हिंसा में कुकी बहुल कांगपोकपी ज़िले में लोगों और सुरक्षाबलों के बीच हुई झड़प में पुलिस अधीक्षक समेत कई लोग घायल हो गए थे। लेकिन बीते दो महीनों में राज्य में हिंसा में किसी की जान नहीं गई है।
पिछले कुछ महीनों से बीरेन सिंह मीडिया के सामने यह दावा करते रहे कि उनकी सरकार राज्य में शांति बहाल करने की कोशिश कर रही है और कानून-व्यवस्था में लगातार सुधार हो रहा है। ऐसे में अगर प्रदेश में सब कुछ ठीक हो रहा था तो मुख्यमंत्री के इस्तीफ़े की नौबत क्यों आ गई? यह एक बड़ा सवाल सभी के दिमाग में कौंध रहा है। दरअसल हिंसा को लंबा वक्त हो गया है और समाधान के नाम पर कुछ भी सामने दिख नहीं रहा है। ऐसे में प्रदेश बीजेपी के अंदर ही काफी मतभेद शुरू हो गए थे।
बीजेपी के लोग ही मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहे थे और 10 फरवरी से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही थी। अगर इसमें बीजेपी के ज्यादातर विधायक सीएम के खिलाफ वोट करते तो पार्टी की काफी किरकिरी होती। बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने काफी सोच समझकर ही यह फैसला लिया है। अगर बीजेपी के ज्यादातर विधायक पार्टी के खिलाफ जाते तो क्या मणिपुर बीजेपी के हाथ से निकल जाता?
जिस तरह की स्थिति बन रही थी उसमें बीजेपी के लिए बीरेन सिंह को हटाने में ही फायदा था। क्योंकि सत्तापक्ष के विधायक दूसरी पार्टी के विधायकों से मिलकर नई लीडरशिप बना लेते और कोई तीसरा मोर्चा खड़ा कर देते तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती थीं। लिहाजा अब कम से कम अगला मुख्यमंत्री बीजेपी से ही बनेगा। कुकी-जो जनजाति के 10 विधायकों ने भी राज्य में तीन मई 2023 से शुरू हुई जातीय हिंसा के लिए बीरेन सिंह को जिम्मेदार ठहराया था और वो शुरू से सीएम को हटाने की मांग कर रहे थे।
इन 10 विधायकों में सात बीजेपी के विधायक हैं, जिनमें से दो मंत्री हैं। मुख्यमंत्री बदलने से अब दोनों समुदाय के बीच बातचीत की संभावना को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। लेकिन इसमें अभी वक्त लग सकता है, क्योंकि कुकी-जो जनजाति के ये 10 विधायक बीते 21 महीनों से विधानसभा के किसी भी सत्र में शामिल नहीं हुए हैं। इससे पहले मणिपुर में बीजेपी के 19 विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की थी।
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में विधानसभा अध्यक्ष थोकचोम सत्यव्रत सिंह, मंत्री थोंगम विश्वजीत सिंह और युमनाम खेमचंद सिंह शामिल थे। ऐसे में यह बात तो साफ़ है कि वीरेन सिंह द्वारा इस्तीफा देकर भाजपा की सरकार को कही न कही से सेफ ज़ोन में कर दिया है क्योकि अब अगला मुख्यमंत्री भाजपा का ही चेहरा होगा। ऐसे में भाजपा सरकार में वापस रहेगी। वही अगर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ होता तो भाजपा को सरकार जाने का नुक्सान उठाना पड़ गया होता।