Maha Kumbh 2025 तारिक आज़मी की मोरबतियाँ: मज़हबी सरहदों की बंदिशों के बावजूद भी, आई जब मुश्किलें तो मुस्लिमो ने ‘इलाहाबादियत’ को कायम रख लहराया ‘इंसानियत’ का परचम

तारिक आज़मी

डेस्क: महाकुम्भ 2025 भव्य तरीके से जारी है। प्रयागराज की सरज़मी पर आयोजित होने वाले इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन पर शुरू से ही मज़हबी सरहदे खीच दिया गया था। निजाम ने कुछ ऐसा निजाम किया कि मुस्लिमो को इस आस्था के महापर्व पर कुम्भ क्षेत्र से दुरी की दहलीज़ खीच दिया। हुकूमत की मंशा को प्रयागराज के निजाम ने पूरा किया, इस हुकूमत की मंशा को सिर्फ ऐसा नही कि सियासत की कु’अत मिली बल्कि निजाम के इस फैसले का साथ बाबाओं और शंकराचार्यों ने भी दिया।

इस मुताल्लिक शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने मेला शुरू होने से पहले बयान दिया कि ‘मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्क़ा शरीफ़ में हिंदुओं को 40 किमी पहले ही रोक देते हैं। क्यों रोकते हैं, वो इसीलिए न कि हमारा मुसलमानों का तीरथ है तुम्हारा क्या काम है। तो ठीक है हम भी यह कह रहे हैं कि ये हमारा कुंभ है तुम्हारा क्या काम है। ग़लत क्या है।’ उन्होंने आगे कहा था कि मुसलमान ‘धर्म को भ्रष्ट करना चाहते हैं। हमको अपवित्र बनाना चाहते हैं, इसलिए ‘इनको पास मत आने दो।’

फिर कुछ हुकूमत का निजाम ऐसा हुआ कि मुसलमान कुम्भ से दूर हो गए। मुनव्वर राणा का कलाम ‘गले मिलती हुई नदिया गले मिलते हुवे मज़हब’ बेमाइनी साबित होने लगे। मगर कुदरत के निजाम के आगे सारे निजाम फेल होते है। हुकूमत ने निजाम बनाया कि मुसलमान कुम्भ और गंगा की माटी से दूर रहे। मगर कुदरत ने निजाम बनाया कि वही माटी खुद मुस्लिमो तक पहुच गई। कहा जाता है कि शास्त्रों के अनुसार जब कोई गंगा स्नान करके घर आता है तो उसके पैरों में लगकर गंगा की माटी भी चली आती है, उन लोगों के लिए जो गंगा तक नहीं जा पाए।

जब महाकुंभ में भगदड़ की रात तमाम श्रद्धालु मेला क्षेत्र से निकलकर शहर में फंस गए तो आलिमो ने मस्जिदों के, दरगाहो के, इबादतखानों के और इमामचौको के दरवाज़े उनके लिए खोल दिए, इस तरह जिन मुसलमानों को कुंभ में हिस्सा लेने से रोका गया, कुंभ ख़ुद ही उनके घरों, उनकी मस्ज़िदों में चला आया। रोशन बाग़ से शुरू हुआ मजमा मुमताज़ महल नक्खास, करेली, मोती मस्जिद, जामा मस्जिद, खुल्दाबाद, बड़े ताजिया के मैदान तक इकठ्ठा हो गया।

जामा मस्जिद के पेश ईमाम रात में जब नमाज़-ए-ईशा के बाद मस्जिद से बाहर निकले तो सामने भूखी इंसानियत को देख कर उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा बल्कि खुद ही अपने जेब में पड़े चंद रुपयों से खाने पीने का सामान खरीदा और श्रद्धालुओ को तकसीम करना शुरू कर दिया। ईमाम की अजमत हर एक मोमिन समझता है। शुरू जामा मस्जिद के इमाम ने किया तो फिर अल्लाह की मखलूक के लिए खिदमत में इलाहाबाद और इलाहबादियत दोनों जाग उठी और देखते ही देखते, खिदमत-ए-खल्क शुरू हुआ और जिसके हैसियत में जो था सब वह कर रहा था। कोई कम्बल तो कोई चाय और कोई बिस्कुट तकसीम कर रहा है।

प्रयागराज में हमारे सहयोगी तारिक खान ने बताया कि ‘पुलिस वालों ने बैरिकेडिंग लगाकर गलियों को पैक कर दिया था। बाहर निकलने नहीं दे रहे थे। यहां वहां पुलिस बैठी हुई थी। लेकिन 29 जनवरी को जब माहौल खराब हुआ और तो सारे पुलिसवाले भीड़ के आगे नहीं रुक पाए। लोगों ने बैरिकेडिंग तोड़ दिया। मुस्लिम समाज के लोगो ने अपने घरों के दरवाज़े खोलकर उनका एहतेराम किया।’

तारिक खान ने टेलीफोन पर हमसे बातचीत में बताया कि उस रात बहुत मज़बूर और लाचार लोग इतना थक गए थे कि पैर पकड़कर बैठ जा रहे थे। जो औरते थीं वो और भी तक़लीफ़ों से गुज़र रही थीं। लोगो ने अपने घरों के दरवाज़े खोल दिए। स्त्रियां बच्चे आदमी सब अंदर आये। उन्होंने हमें इतनी दुआएं दी। उन लोगों की नज़र में उस वक़्त कोई हिंदू-मुस्लिम नहीं था। लोगो ने उनको अपने कंबल, चादर, बिछौने दिए। खाने-पीने ठहरने का इंतज़ाम किया। मंसूर पार्क, जामा मस्ज़िद, कचेहरी बाज़ार, रोशन बाग़, वसीउल्लाह साहेब की मस्ज़िद में गलियों में जितने घर थे सबने दरवाज़े खोल दिए। खुलदाबाद की मंडी में दुकानदार अधिकतर मुस्लिम समाज के है, उन्होंने अपनी दुकानों के आगे तिरपाल डाला और लोगो के रहने की व्यवस्था किया।

सीएए-एनआरसी के मुखालिफ अपने प्रदर्शन के लिए मशहूर हुआ रौशन बाग़ इलाका, उस रात गंगा-जमुनी तहज़ीब को सींचने के लिए रोशन हुआ। इलाहाबाद की बड़ी मस्जिद वसीउल्लाह मस्जिद के इमाम साहेब की अगुवाई में महाकुंभ के श्रद्धालुओं को रौशन बाग़ पार्क में पानी और खाने का इंतज़ाम किया गया। 29 और 30 जनवरी की रात शहर के चौक इलाके में यादगारे हुसैनी इंटर कॉलेज में 4-5 हज़ार श्रद्धालुओं के लिए इंतज़ाम किया गया। द वायर ने अपनी एक खबर में गौहर आज़मी जो यादगार-ए-हुसैनी इंटर कॉलेज के प्रबंधक की जानिब से लिखा है कि उन्होंने बताया कि ’30 जनवरी की रात भी हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु आए स्कूल में। उनके रहने के लिए पूरा कॉलेज खुलवा दिया है। चाय-बिस्किट, खाना-बिछौना सब इंतज़ाम किया है। केवल हम ही ने नहीं बहुत से स्थानीय लोगों ने पूरे इलाहाबाद में ग्रामीण इलाक़ों में भी सड़क किनारे सबके खाने,पानी ठहरने का इंतज़ाम किया।’

मुसलमानों के खिलाफ़ ऐसा प्रोपेगैंडा था कि हर साल कुम्भ में दूकान लगाने वाले मुस्लिमो को कुम्भ से दूर रखा गया। मगर कुम्भ की माटी उन मुस्लिमो के घर तक खुद पहुची ऐसा कुदरत ने इंतज़ाम कर दिया। पुरे मुस्लुम समाज के लिए हिकारत बोने वालो के मुह पर ताला शायद पड़ जाना चाहिए जब मुस्लिम समाज ने लोगों की मदद की और उस वक्त किसी ने भी नहीं पूछा कि हम मुसलमान के हाथ का खाना और पानी क्यों लें। यादगारे हुसैनी ,मजीदिया इस्लामिया, वसीउल्लाह मस्जिद के इमाम ने लंगर चला दिए। नूरुल्लाह रोड के मुस्लिम युवक जगह जगह चाय बिस्किट का फ्री स्टाल लगा दिए।

यही नहीं ईसाई समाज ने नाजरेथ हॉस्पिटल के सामने खाने आराम करने की व्यवस्था कर दी। फादर विपिन डिसूजा की अगुवाई में श्रद्धालुओं के लिए विशाल भंडारा लगाया गया। म्योराबाद चर्च कंपाउंड के पास चार्ली प्रकाश एडवोकेट ने लंगर लगा दिया। सच बताता हु कि यही हैं इलाहाबाद के मायने। यही है इलाहाबाद की तालीम-ओ-तरबियत और यही है इलाहाबाद की गंगा जमुनी तहजीब की जब ज़रूरत पड़ती है। जब मुश्किल वक़्त आता है, जब मुसीबत की घड़ी होती है, तो फिर न हिंदू न मुसलमान। फिर इलाहाबाद और इलाहाबादियत के साथ इंसानियत का परचम लहराता है।’

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