माह-ए-रमजान: द अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लीनिकल न्यूट्रिशन का शोध बताता है कि रमजान के रोज़े फेफड़े, आंत और स्तन कैंसर के ख़तरों को कम करते है, पढ़े विज्ञान के अनुसार रोज़ा रखने के फायदे


तारिक आज़मी
डेस्क: इस्लामिक कैलेंडर का सबसे मुक़द्दस महीना रमज़ान का रविवार से शुरू होने वाला है। आलम-ए-इस्लाम में इस महीने की आमद के मद्देनज़र खुशियाँ दिखाई दे रही है। तमाम मुसलमीन आमद-ए-रमजान के इस्तकबाल की तैयारी में जुटे हुवे है। इस मुकद्दस महीने को अल्लाह का महीना माना जाता है। इस पुरे महीने मुसलमान रोजा रखते है। यानि सुबह-ए-सादिक (सूर्योदय से पूर्व) से लेकर तुलूब-ए-आफताब (सूर्यास्त तक) मुस्लिम समाज के लोग न कुछ खाते है और न ही पीते है। इस रोज़े (उपवास) की सख्ती ऐसी है कि गले के नीचे एक कतरा थूक का भी नहीं जाता है।
विज्ञान की माने तो आम तौर पर रोज़ा सेहत के लिए फ़ायदेमंद होता है और इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग (दिन में कुछ समय के लिए कुछ भी न खाना) वज़न कम करने का लोकप्रिय तरीक़ा होता जा रहा है। क्या खाना है इस पर फ़ोकस करने की बजाय इंटरिटेंट फ़ास्टिंग में खाने के समय को लेकर बात होती है। इसमें हर दिन कुछ निश्चित घंटों के लिए खुद को भूखा रखना शामिल है। इसके पीछे का विचार है कि आपका शरीर एक बार शरीर में पूरी शुगर को इस्तेमाल कर लेता है, तो इसके बाद यह फ़ैट का इस्तेमाल करता है और इससे वज़न कम होता है- इस प्रक्रिया को ‘मेटाबोलिक स्विचिंग’ के नाम से जाना जाता है।
अध्ययनों ने दिखाया है कि इंटरमिटेंट फ़ास्टिंग से सेहत को जो फ़ायदा होता है उसमें है ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राल का कम होना, शरीर के अंदर सूजन में कमी आना, इंसुलिन रेस्पांस में सुधार और टाइप 2 डायबीटीज़ का ख़तरा कम होना। रमज़ान के रोज़ा में ये सारे फ़ायदे होते हैं। द अमेरिकन जर्नल ऑफ़ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में हाल ही में छपे एक अध्ययन में रमज़ान के दोरान रखे जाने वाले रोज़ा को फ़ायदेमंद मेटाबोलिक बदलावों और गंभीर बीमारियों के ख़तरे में कमी आने से जोड़ा गया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष में बताया गया है कि रमज़ान का उवपास फेफड़े, आंत और स्तन कैंसर के ख़तरों को कम करता है।
न्यूट्रशनिस्ट कहते है कि आम तौर पर रमज़ान में लोगों का वज़न एक किलोग्राम तक कम हो जाता है, लेकिन वह चेतावनी भी देती है, ‘अगर आप इफ़्तार में अधिक भोजन लेंगे तो वज़न बढ़ भी सकता है। उनके मुताबिक़, इंसानों में अधिक खाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। हमें जितने ही पकवान दिए जाएं हम उतना ही खाते हैं और स्वाभाविक है कि इफ़्तार के दौरान खानों से सज़ी एक बड़ी मेज इसका सटीक उदारहण है। आपके सामने जो कुछ भी आए, सब खाने की ज़रूरत नहीं है। इसलिए चुनिंदा चीजें खाएं और धीरे धीरे।