मुल्क भर में अकीदत और एहतराम से मनाई गई ‘शब-ए-क़द्र’, पूरी रात चला इबादतों का दौर, मस्जिदे रही गुलज़ार

फारुख हुसैन

लखीमपुर खीरी: हर साल की तरह इस साल भी मुस्लिम धर्म का माह-ए-शाबान का पाक और मुक़द्दस महीना शुरू हो चुका है और इसी महीने की 14वीं और 15वीं की दरमियानी रात को शब-ए-क़द्र मनाई जाती है, जो बीती हुई रात थी। पूरी रात इबादतों में हर एक मोमिन की गुजरी। बरकत, फजी़लत वाली रात, गुनाहों से बख़्शीश की रात, जाहन्नूम की आग से खु़लासी की रात, मुसीबत से छुटकारों से रात, रहमते खुदाबंदी से अपने दामन को भर लेने की रात, मग़फिरत तलब करने की रात, रब के हुजूर गिड़गिड़ाकर दुआएं मांगने की रात, मुनाजात की रात, हिसाब-ओ-किताब की रात।

जी हां, इस्लाम में इस रात की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह रात कितनी फजीलत वाली रात होती है। इस रात को मुस्लिम समुदाय बुजुर्ग, युवा हो या फिर बच्चे सभी लोग मस्जिदों, मदारिसो में पहुंचकर पूरी रात जागकर ख़ुदा की इबादत करते हैं और ख़्वातीन (औरतें) अपने घरों में पूरी रात जागकर ख़ुदा की इबादत करती हैं। तमाम आलम-ए-इस्लाम इस रात अपने किये गये गुनाहों से तौबा करते हैं और किए गए गुनाहों की माफी मांगते हैं।

आलिम-ए-दीन का कौल है कि हदीस में बताया गया है कि इमाम उल अमीन हज़रते आयशा सिद्दीक़ा रजी़अल्लाहु अन्हा यह बयान करती है कि एक रात पैग़म्बर-ए-रसूले, मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अचानक उठकर कहीं तशरीफ़ ले गए। अम्मा आयशा जब उनके पीछे गई तो देखा आप सल्लल्लाहु अलैहि वाले वसल्लम जन्नतुल बकी़ में मौजूद है। मुसलमान मर्दों ख़्वातीन (औरतें) के लिए दुआएं मग़फिरत (मोक्ष) कर रहे हैं। जिस पर वह वापस आ गई। रसूले ख़ुदा घर तशरीफ़ लाए तो अम्मा आयशा ने तमाम सूरते हाल (आंखों देखी) बयान फरमाए।

जिस पर आप सल्लल्लाहुअलेही वसल्लम ने फरमाया कि अभी जिब्रइल मेरे पास आए और फरमाया कि आज शाबानुल मुअज़्ज़म (एक मुबारक महीना है। यह रमज़ानुल मुबारक से जुड़ा हुआ है) की 15वीं रात है और इस रात अल्लाह पाक बकरियों के बालों से भी ज्यादा लोगों की मग़फिरत फरमाता है। लेकिन देखा जाए तो दिल में बोझ रखने वाले, रिश्तेदारियां खत्म करने वालों, तकब्बुर (घमंड) करने वालों, वालिदैन (माँ–बाप, माता–पिता) की नाफ़रमानी (आज्ञा न मानना, बात न मानना) करने वालों, शराब नोशी (पीना) करने वालों कि तरफ़ भी इस रात तवज्जों (गौर न करना) नहीं फ़रमाता कि जब तक वह दिल से तौबा ना कर ले।

इसके अलावा आयशा सिद्दीक़ा रजी़अल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि इस रात हुज़ूरे-ए-अकरम सल्लल्लाहो-अलेही-वसल्लम नमाज़ के लिए खड़े हो गए और उन्होंने दुआ फरमाई कि ए अल्लाह मैं तेरे उफ़ुक़ (दुनिया भर के हर एक कोना, क्षीतिज) के साथ तेरे अज़ाब (दुःख, पीड़ा दर्द) से पनाह चाहता हूं, तेरी रज़ा के साथ, तेरे गज़ब सबसे पनाह चाहता हूं, तेरे करम के साथ तेरी नाराज़गी से पनाह चाहता हूं। मैं तेरी तारीफ बयान तो नहीं कर सकता लेकिन तू ऐसा ही है जैसे तूने ख़ुद अपनी तारीफ़ बयान फरमाई है। अम्मा आयशा एक और रिवाय़त (सुनी हुई बात बयान) करती है।

उन्होंने नबी उल करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना है। अल्लाह ताला खास तौर पर चार रातों में भलाइयों के दरवाजे खोल देते हैं। पहली बकरीद की रात, दूसरी ईद-उल-फित्र की रात, तीसरी अरफा की रात और चौथी शाबनुल मुअज़्ज़म की 15वीं रात यानी कि आज की रात। इस रात में इबादत किया करो और दिन में रोज़ा रखा करो। इस रात सूरज गुरुब़ (डूबते) ही अल्लाह ताला अपने बंदों की तरफ मुतवज़्जह (ध्यान देना) होते हैं और ऐलान फरमाते हैं कौन है जो गुनाहों की बख़्शीश करवायें। कौन है जो रिज्क में बोशा तलब करें। (ईश्वर के करीब होना) कौन मुसीबत ज़दा (परेशानी में होना) है जो मुसीबत से छुटकारा हासिल करना चाहता हो।

उल्माये करीम (मौलाना) बताते हैं कि इस रात में तीन काम किया जाए पहला कब्रिस्तान जाकर मुर्दों के लिए इसाल ए सवाब और मग़फिरत की दुवायें की जाये ।दूसरा तन्हाई में नवाफिल नमाज़ पढ़े और कुरान की तिलावत करें और तीसरा दिन में रोज़ा रखा जाए। गौरतलब है कि इस्लाम में रमजान की तरह ही माह-ए-शाबान को भी बेहद पाक और मुबारक महीना माना जाता है। शाबान इस्लामिक कैलेंडर का 8वां महीना है, जिसकी 14वीं और 15वीं दरमियानी रात को मुसलमान शब-ए-बरात का त्योहार मनाते हैं।

मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए शब-ए-बरात खास त्योहारों में एक है। ।इस दिन लोग विशेषकर अल्लाह की इबादत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि शब-ए-बारात की रात की गई इबादत का शवाब बहुत ज्यादा मिलता है। इस मौके पर ज्यादातर घरों में मीठे पकवान हलवा वगैरा बनाया जाता है। जिसे फतिहा दिलाकर सभी को तक्सीम (बांटा)किया जाता है। इसके साथ ही जगह-जगह पर जलसों का आयोजन भी किया जाता है जिसमें उलेमाओं के द्वारा आज के दिन की हर फजी़लत के बारे में बताया जाता है। ‌

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