वाराणसी: अल्लाह की इबादत में गुजरी शब-ए-बारात की रात, गुलज़ार रही ‘इलाही आलम-ए-बाला ये कैसी बस्ती है, जमी आबाद हो जाती है वीरानी नहीं जाती’

सबा अंसारी

वाराणसी: इस्लाम के प्रमुख दिनों से से एक शब-ए-क़द्र (शब-ए-बारात) पूरी अकीदत के साथ शहर बनारस और आसपास मनाया गया। इस मौके पर मुस्लिम समाज के लोगो ने पूरी रात जाग कर अल्लाह की इबादत किया। तमाम मस्जिदों में इबादत का एहतमाम किया गया था। मस्जिदे रात भर गुलज़ार रही।

इस्लामी कलेंडर के अनुसार रमज़ान माह के ठीक पहले का माह शाबान होता है। इस्लाम के अनुसार शाबान का यह माह बहुत ही मुक़द्दस और इबादतों का माह है। इस माह 14 तारीख यानि 14-15 की रात शब-ए-क़द्र की रात होती है। इस रात आलम-ए-इस्लाम पूरी दुनिया में पूरी रात इबादत-ओ-रियाज़त में गुजारता है। इस मौके पर शहर बनारस की तमाम मस्जिदों में इबादत करने वालो के लिए ख़ास एहतेमाम किया गया था।

पूरी रात मस्जिदे और मुस्लिम इलाके गुलज़ार रहे। विभिन्न जगह शबीना (तिलावत-ए-कुरआन) हुआ। कुरआन की मुक़द्दस आयते पूरी रात कानो में शकर घोल रही थी। तमाम मुस्लिम समाज के लोग इस मुक़द्दस मौके पर अपने उन बुजुर्गो की कब्रों पर गए जो इस दुनिया-ए-फानी से रुखसत हो चुके है। कब्रस्तानो पर ख़ास तौर पर रौशनी का इंतज़ाम किया गया था।

अमूमन कब्रस्तान के लिए एक बड़ा मक्सुस शेर है कि ‘इलाही आलम-ए-बाला ये कैसी बस्ती है, ज़मी आबाद हो जाती है, वीरानी नहीं जाती’, मगर कल की रात यह बानगी भी कम हुई और कब्रस्तान पूरी रात गुलज़ार रही। बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग तक कब्रस्तान पर अपने दुनिया-ए-फानी से रुखसत हो चुके अज़ीज़-ओ-करीब की कब्र पर गये और अकीदत के फुल पेश किये। ऐसे ही एक नन्हे बच्चे ज़ुहैब से हमारी एक मुलाकात हुई जिससे हमने आने की वजह पूछी तो प्यारे से बच्चे कहा कि ‘दादा दादी से मुलाकात करने आया था, उन्होंने मुझे दुआ दिया है।’

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