सुनीता विलियम्स और बुच विलिमोर अंतरिक्ष में 286 दिन गुज़ारने के बाद धरती पर सुरक्षति लौटे, पढ़े अब धरती पर होगी उनके लिए क्या नई चुनौतियाँ और किसने सबसे अधिक अंतरिक्ष गुज़ारा वक्त

सबा अंसारी

डेस्क: सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर महज आठ दिनों के मिशन पर गए थे लेकिन तकनीकी समस्या के कारण यह मिशन नौ महीने तक फँसा रहा। यानी सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर अंतरिक्ष में 286 दिनों तक रहे। आज दोनों वापस धरती पर आ गये है। सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर दोनों नासा के चर्चित अंतरिक्ष यात्री हैं। नासा के मुताबिक़ मंगलवार को पृथ्वी पर लौटने से पहले इन्होंने पृथ्वी की 4,500 बार परिक्रमा की थी और 17,500 मील प्रति घंटा की गति से 12 करोड़ मील की यात्रा की।

लेकिन लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड रूसी अंतरिक्ष यात्री वलेरी पोल्याकोव के नाम है। न्यू मेक्सिको म्यूजिअम ऑफ स्पेस हिस्ट्री के अनुसार, वलेरी ने अंतरिक्ष में 437 दिन, 17 घंटे और 38 मिनट गुज़ारे थे। उन्होंने इस दौरान पृथ्वी की 7,075 बार परिक्रमा की थी। वलेरी पोल्याकोव ने मॉस्को इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एंड बायोलॉजिकल प्रॉब्लम्स में एस्ट्रोनॉटिकल मेडिसिन की पढ़ाई की थी। अंतरिक्ष में मानव शरीर पर कैसा प्रभाव पड़ता है, उसकी स्टडी के लिए पोल्याकोव को काफ़ी अहम माना जाता है।

62 साल के विलमोर और 59 साल की विलियम्स ने कहा है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से वे ख़ुश हैं। दोनों नेवी के रिटायर्ड कैप्टन हैं और इनके पास अंतरिक्ष का विशाल अनुभव है। सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर ने भले ही अंतरिक्ष से पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी कर ली है, लेकिन अभी सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे। अंतरिक्ष से वापसी के बाद एक मुकम्मल रिकवरी प्रक्रिया से गुज़रना होता है। दोनों को कैप्सुल से सीधे स्ट्रैचर पर लाया गया और मेडिकल निगरानी में भेज दिया गया था।

यह एक रूटीन प्रक्रिया है क्योंकि माइक्रोग्रेविटी में मांसपेशियां कमज़ो होने लगती हैं, शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है और शरीर में फ्लूड शिफ़्ट होने लगते हैं। माइक्रोग्रेविटी वैसी स्थिति है, जब कोई इंसान या वस्तु भारहीन हो जाती है। अंतरिक्ष में चूंकि गुरुत्वाकर्षण काम नहीं करता है, इसलिए अंतरिक्ष यात्री भारहीन हो जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने का असर स्वास्थ्य पर सीधा पड़ता है। अंतरिक्ष में महीनों रहने से इंसान के शरीर और मनोविज्ञान में बदलाव भी आते हैं।

सबसे बड़ा बदलाव तब आता है, जब अंतरिक्षयात्री माइक्रोग्रेविटी में होते हैं। इस स्थिति में अंतरिक्षयात्री स्पेसक्राफ़्ट के भीतर या बाहर तैरने लगते हैं। यानी हवा में लटके दिखते हैं। इस दौरान मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल नहीं होता है। आप ऐसी स्थिति में कोई एक्सरसाइज उपकरण का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते हैं। नासा का कहना है कि हड्डियां भी कमज़ोर पड़ने लगती हैं। हड्डियां शरीर के भार को संभालती हैं या सहारा देती हैं, लेकिन अंतरिक्ष में बिना पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के हर महीने हड्डियां औसत एक प्रतिशत से 1।5 प्रतिशत तक मिनरल डेनसिटी खो देती हैं।

इसके अलावा उचित खान-पान और एक्सरसाइज के बिना धरती की तुलना में माइक्रोग्रेविटी में अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियां ज़्यादा पतली होने लगती हैं। नासा का यह भी कहना है कि माइक्रोग्रेविटी में ख़ून और सेरेब्रोस्पााइनल फ्लूड नीचे से ऊपर शिफ्ट होने लगते हैं। ऐसे में आँख और मस्तिष्क के आकार में बदलाव की आशंका प्रबल रहती है। डीहाइड्रेशन या हड्डियों से कैल्सियम निकलने के कारण किडनी में स्टोन का ख़तरा भी रहता है।

लंबे समय तक माइक्रोग्रेविटी में रहने के बाद पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के साथ ताल-मेल बैठाना बहुत मुश्किल काम होता है। ऐसे में अंतरिक्षयात्रियों के पृथ्वी पर आते ही मेडिकल निगरानी में रखा जाता है। माइक्रोग्रेविटी से ग्रेविटी में शरीर का संतुलन बनाना और उसके हिसाब से व्यवहार करना मुश्किल इम्तहान होता है। इसके लिए सीधा चलना, सीधा खड़ा होना और शरीर का संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना हर दिन करना होता है।

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