सौरभ राजपूत हत्याकांड पर तारिक आज़मी की मोरबतियाँ: इश्क, मुहब्बत, प्यार, वफ़ा और सुकून….?, मज़ाक बढ़िया है….!

तारिक आज़मी

डेस्क: मेरठ में मर्चेंट नेवी के पूर्व कर्मी एनआरआई सौरभ राजपूत हत्याकांड ने पुरे देश में एक खलबली मचा दिया है। सभी के पास कोई न कोई बड़ा सवाल है जिसका जवाब तलाशना चाहता है। कोई पूछ रहा है कि आखिर साहिल शुक्ला जो शक्ल से चरसी लगता है में मुस्कान रस्तोगी ने ऐसा क्या देख लिया ? तो किसी का सवाल है कि एक मुहब्बत जो शादी में तब्दील हुई, उसमे इतनी नफरत कहा से आ गई।

वैसे हमारे काका एक शेर बड़ा खुबसूरत कहते है। उर्दू के जानकारों को इसका मायने समझ में आ जायेगा। जिसको नहीं समझ में आये तो काका कहते है कि वह बैठ कर ‘पोगो’ चैनल देखे। खैर साहब आपको शेर पहले सुनाता चलता हु उसके बात तो अपने पास बतिया ढेर है, कर्तुतिया नाही। शेर कुछ इस तरीके से है कि ‘इश्क… मुहब्बत… प्यार…. वफ़ा…. और सुकून….? इन्नल इल्लाहे व इन्नल एलही रजियुंन’ (अरबी के शब्द मुस्लिम समाज में किसी के देहांत की खबर सुनने के बाद पढ़ा जाने वाला कुरआन का लफ्ज़ है।)

बहरहाल साहब, आइये कुछ तफसील से तस्किरा करते है सौरभ राजपूत और उनकी कातिल मुहब्बत मुस्कान रस्तोगी पर। सौरभ के भाई बब्लू की बात माने तो मुस्कान रस्तोगी एक निम्न माध्यम वर्गीय परिवार से आती है और सौरभ से उसको मुहब्बत हो गई थी। सौरभ मर्चेंट नेवी में काम करता था। तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सौरभ की आर्थिक स्थिति मजबूत रही होगी। मुस्कान के पिता एक सर्राफा के यहाँ काम करते है तो इससे आर्थिक स्थिति मुस्कान के परिवार की भी साफ़ हो जाती है।

बब्लू जो सौरभ का भाई है उसकी माने तो दोनों ने लव मैरेज किया था। मुहब्बत को रिश्ते का नाम देकर सौरभ जीवन जी रहा था। दोनों की एक मासूम सी बच्ची भी है जो अब अनाथ हो चुकी है। सौरभ का परिवार कहता है कि सौरभ ने मुस्कान से शादी के बाद अपनी नौकरी छोड़ दिया था और परिवार में कलह के कारण सौरभ अपनी पत्नी मुस्कान के साथ किराय के मकान में रहता था। शायद गरीबी जब दरवाज़े पर दस्तक दे रही थी तो मुहब्बत दोनों की खिड़की से बाहर भाग चुकी होगी।

इसी दरमियान बताया जाता है कि साहिल शुक्ला की इंट्री मुस्कान के जीवन में होती है और इसकी भनक सौरभ को पड़ जाती है। जिसके बाद मामला तलाक तक आ जाता है। मगर सौरभ ने बच्ची के भविष्य को लेकर समझौता कर लिया और लन्दन दुबारा नौकरी करने चला गया। यह घटना इस बात को भी इंगित करती है कि पैसो की कमी फिर मुस्कान को नहीं रही होगी। सौरभ के भाई बब्लू की माने तो मुस्कान के परिजनों ने उसी के पैसो से मकान खरीदा था। इस दावे को हल्के में लेना गलत होगा ख़ास तौर पर उस वक्त जब मुस्कान की माँ के खाते में सौरभ के पैसे आये हो और मुस्कान के भी खाते में।

तारिक आज़मी
सम्पादक
PNN24 न्यूज़

सब मिला कर इस रिश्ते को पैसे और ज़रूरत का नाम दिया जा सकता है, न कि मुहब्बत का नाम। अगर मुस्कान की मुहब्बत सौरभ था तो फिर साहिल कौन….? मुहब्बत इंसान के लिए एक लाइफ टाइम एक्टिविटी होती है या फिर कपडे की तरह मुहब्बत भी बदल जाती है, ये एक बड़ा यक्ष प्रश्न है। क्योकि आज की भाग दौड़ वाली सोशल मीडिया जेनरेशन की मुहब्बते भी बदला करती है। उनके लिए मुहब्बत भी चीनी सामान के तरह होता है जो वक्त के साथ बदलना पड़ता है।

बहरहाल, मुस्कान और सौरभ के रिश्ते को ज़रूरत, पैसे का नाम दिया जा सकता है, मगर मुहब्बत का नाम तो नही दे सकते है। अब सवाल ये है कि आखिर साहिल में मुस्कान ने ऐसा क्या देखा होगा कि साहिल उसकी मुहब्बत बन बैठा। जबकि साहिल शक्ल सूरत में एक नशेडी जैसा दिखाई देता है। तो जवाब बस इतना है कि ‘दिल आया चुड़ैल पर तो परी क्या चीज़ है।’ मगर एक सवाल ये ज़रूर है कि आखिर मुस्कान रस्तोगी की मुहब्बत इतनी सख्त नफरत में कब तब्दील हुई कि ऐसा बेरहमी से क़त्ल उसने कर डाला। जिसमे गर्दन अलग, चाक़ू सीना चीर कर दिल के पार हो गया और पाँव धड के तरफ मुड़े हुवे है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स तो ये भी दावा करती है कि सौरभ का सर पास में रख कर मुस्कान साहिल के साथ सोई थी।

अगर ये दावा सच है तो मुहब्बत की शिद्दत तो नहीं बल्कि नफरत की शिद्दत ज़रूर बयां हो रही है। आज मुस्कान के माता पिता अपने दामाद की तारीफ कर रहे है और मुस्कान के लिए फांसी मांग रहे है। मगर अगर यही माता पिता मुस्कान को उस वक्त समझाते जब वह साहिल शुक्ला की मुहब्बत में दीवानी हो रही थी तो शायद एक मासूम के सर से बाप का साया उठा नही होता। क्योकि साहिल के साथ मुस्कान के सम्बन्धो को लेकर सौरभ और मुस्कान में नौबत तलाक तक की आ चुकी थी, इससे यह बात तो ज़ाहिर है कि इसकी जानकारी मुस्कान के माता पिता को ज़रूर रही होगी।

अब जब सौरभ का भाई बब्लू इस बात का दावा कर रहा है कि सौरभ लाखो रूपये लेकर आया होगा, तो दावा कहा से गलत है। एक वक्त था जब लोग बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते थे। मेरठ के एसपी सिटी इस बात की पुष्टि कर चुके है कि सौरभ 6 लाख लेकर आया था और एक लाख मुस्कान के खाते में और कुछ पैसे उसके माता पिता के खाते में गए है। तो फिर कैसे माँ बाप थे जो दामाद के पैसे ले रहे थे। बेटी को समझाने और नेक रहा दिखाने के बजाये शायद वह भी अपने रिश्तो की बुनियाद पैसे के ऊपर ही टिकाये हुवे थे।

साफ बात तो ये है कि मुस्कान और सौरभ के बीच शायद कभी प्यार था ही नहीं। सब कुछ सिर्फ पैसो का आकर्षण था। आज कल की जेनरेशन में मुहब्बत भी पैसो से ही होने लगी है। अच्छा पहन ले, बड़े होटल में खा ले और कार से घूम ले की लालसा ही आज कल के सुपर फ़ास्ट स्पीड जेनरेशन की मुहब्बत है। मगर सच ये है कि मुहब्बत इसका नाम नही है। वैसे सुना है कि पुलिस तंत्र मंत्र का चक्कर भी तलाश रही है। शक्ल सूरत में तो साहिल कोई फर्जी किस्म का बाबा ही नज़र आ रहा है, तो ये एंगल भी समझ आने वाली बात हो सकती है कि छू मंतर करके अंगूर को तरबूज बना देने का दावा करता हुआ साहिल मुस्कान की ज़िन्दगी में आया हो और फिर उसके दिल में परमानेंट फ़्लैट ले बैठा हो।

ध्यान रखे, रिश्ता अगर नहीं निभ रहा है तो उसके लिए अलगाव जैसे भी शब्द और तरीके होते है। रिश्ता अगर सिर्फ महंगे गिफ्ट, अच्छे कपड़ो की डिमांड और बड़े होटलों में खाने के लिए मुन्तजिर रहे तो वह रिश्ता सब हो सकता है बस मुहब्बत नहीं हो सकती है। आज की जेनरेशन को सहयोग और डिमांड में फर्क समझ आना चाहिए। वही पेरेंट्स को भी कम से कम इस बात के लिए अपने बच्चो को जागरूक करना चाहिए कि कही रिश्ते के नाम पर कोई ‘कलाइंट’ तो नही काट रहा है। अमा सीधी सी बात है कि इतने समझदार हो कि फटी जीन्स को फैशन का नाम दे सकते हो, तो क्या रिश्ता और ‘कलाइंट काटना’ में फर्क नही समझ रहे हो।

सौरभ की सबसे बड़ी गलती मुस्कान को तलाक नही देना थी। तलाक तक नौबत आने के बाद कदम पीछे बच्चे के भविष्य को सोच कर खीचा था। अब तो बच्चे का भविष्य उससे भी ज्यादा चौपट हो गया क्योकि बाप का साया उसके मर जाने से उठ गया और माँ के जेल जाने से माँ का भी साथ छुट गया। दादा दादी, ताऊ-ताई और चाचा चाची मुहब्बत दे सकते है, मगर वह माँ बाप की जगह तो हरगिज़ नही ले सकते है।

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