पिछले दो सदी से गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है वाराणसी के औरंगाबाद में स्थित ख्वाजा सुल्तान शहीद और बाबा हवा शाह का आस्ताना, बच्चे की मुराद लेकर आने वाली महिलाओं को मिलता है फैज़

तारिक आज़मी

वाराणसी:  नफरते लाख अपने पाँव पसार रही है। मगर इसी समाज में आज भी गंगा जमुनी तहजीबो को अपने अन्दर समेटे कई ऐसे आस्ताने है, जहाँ पर मज़हब की दीवारे धराशाही हो जाती है। अकीदत के आगे नफरते घुटने टेक देती है और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल सामने आती है। ऐसा ही एक आस्ताना हज़रात ख्वाजा सुल्तान शहीद और हवा शाह बाबा का है। जहाँ न कोई हिन्दू है और न कोई मुस्लमान, है तो सिर्फ और सिर्फ अकीदत से भरा हुआ इंसान।

वाराणसी के औरंगाबाद स्थित ख्वाजा सुल्तान शहीद और हजरत हवा शाह बाबा का आस्ताना ऐसे ही गंगा जमुनी तहजीब का एक मरकज़ है। जहा की देख रेख करने वाली कमेटी में एक नहीं कई हिन्दू समुदाय के लोग आज भी मौजूद है। करिश्मे की बात जहाँ तक है तो ऐसी मान्यता है कि यहाँ स्थित नीम के पेड़ से स्वतः गिरने वाली पत्तियाँ का टेस्ट कडवा नहीं बल्कि मीठा होता है, मान्यता है कि यहाँ बच्चे की मुराद लेकर आने वाली महिलाओं की मुराद पूरी होती है।

ऐसी मान्यता है कि अगर किसी को बच्चे नहीं हो रहे है तो इस आस्ताने पर 40 दिन हाजरी लगाने पर बच्चो की मुराद पूरी होती है। यहाँ जितनी अकीदत से मुस्लिम समाज के लोग आते है उतनी ही अकीदत के साथ हिन्दू समाज के लोग भी आते है। हर वर्ष आयोजित होने वाले सालाना उर्स के मौके पर व्यवस्था देखने वाली कमेटी में हिन्दू समाज के कई लोग है। आसपास के निवासी उर्स के मौके पर लंगर का आयोजन करते है। इसको गंगा जमुनी तहजीब ही कहेगे कि इस लंगर के आयोजक अधिकतर हिन्दू समुदाय के लोग है।

जब नफरते और धार्मिक रूप से मुस्लिम समाज को हाशिये पर रखने का काम चल रहा है ऐसे मौके पर यह आस्ताना उन सब नफरत के सौदागरों को यह बताते हुवे मुह चिढाता है कि इस आस्ताने का निर्माण एक ब्राह्मण और एक ठाकुर ने किया था। वर्ष 1992 के सांप्रदायिक दंगे की दंश झेल चुके समाज में इस आस्ताने का निर्माण शुरू हुआ और यह निर्माण 1994 में मुकम्मल हुआ। निर्माण करने वाले भोला सिंह और अवधेश चंद शुक्ला ने करवाया था।

इस वर्ष इस आस्ताने का 192वा उर्स कल हुआ है। छोटी ईद के मौके पर होने वाले इस उर्स की मान्यता काफी है। दूर दराज़ से अकीदतमंद मज़हबो की दीवार को तोड़ कर यहाँ आते है। पुरे रात यहाँ लंगर, गागर चादर और अन्य कार्यक्रम होते है। अकीदत से सराबोर लोग यहाँ मुरादे पूरी करवाते है। बताया जाता है कि ख्वाजा सुल्तान शहीद का सिजरा ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती से मिलता है। वही साथ ही मान्यता है कि उनके मज़ार को नाप कर अगर आप चादर लाते है तो चादर छोटी पड़ जाएगी। यहाँ देख रेख करने वाले पंडा शाह की कब्र इसी आस्ताने पर बनी हुई है।

इस आस्ताने पर देख रेख करने वाले पूर्व पार्षद बाबु अकेला और समाजसेवक मिथलेश कुमार ने बताया कि वह दोनों इस आस्ताने पर दशको से सेवा करते आ रहे है। मिथलेश कुमार ने यहाँ तक कहा कि ‘मुझे कभी कोई समस्या आती है तो यही बाबा को आकर उस समस्या को बता देता हु, समस्या का निराकरण खुद से हो जाता है।’ ऐसे आस्था के केंद्र को आप गंगा जमुनी तहजीब का मरकज़ कह सकते है। यहाँ आज भी गंगा जमुनी तहजीब अपनी सांसे ही नहीं ले रही है, बल्कि पूरी तरह खिलखिला कर हंस रही है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *